Video: The voice of faith echoed in the forests of Uttarkashi, unique Dudh Gaddu fair

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सीमांत जनपद उत्तरकाशी अपनी लोक वेशभूषा तीज त्यौहारों और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पहचाना जाता है। यहां के त्योहार की एक अलग ही पहचान है ऐसा ही एक त्यौहार है दूध गड्डू मेला मिल्क फेस्टिवल यह त्यौहार गमरी और धनारी पट्टी के ग्रामीण 10 किलोमीटर पैदल जाकर बेडथात नामक जगह नेर थुनेर के जंगलों के बीच जाकर मनाते हैं। Dudh Gadu Fair Uttarkashi यहां ग्रामीण बीते सावन और लगते भादों की संक्रांति में हर साल मनाते है। खास बात यह है कि ग्रामीण अपने घरों से दूध दही, मक्खन, चावल, फल और फूल लेकर इस स्थान पर जाकर अपने परिवार और खेती व पशुओं की खुशहाली के लिए अपने आराध्य देव नागराज और हूण देवता से खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं। ग्रामीणों की पूजा से खुश होकर देवता दूध दही और मक्खन से नहाते हैं और ग्रामीणों को आशीर्वाद देते हैं। पहाड़ों में संक्रांति जिसे ओलगिया उत्सव के रूप में भी जाना जाता है, उत्तराखंड में भादो (अगस्त का महीना) के पहले दिन मनाया जाता है। यह राज्य में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जो कि अति प्राचीन काल से बहुत उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाता है। राज्य में यह प्राचीन त्यौहार उस समय मनाया जाता है जब फसल अच्छी तरह से विकसित होती है और दूध देने वाले जानवर भी स्वस्थ होते हैं। यही नहीं, यहां तक कि पेड़ भी फलों से लदे होते हैं।

यह मूल रूप से एक त्योहार है जो स्थानीय लोगों और खेती के व्यवसाय में लिप्त परिवारों की कृतज्ञता को दर्शाता है। इस त्योहार के उत्सव का कारण फसल कटाई के मौसम को चिह्नित करना और समृद्धि के लिए आभार प्रकट करना है। धनारी और गमरी पट्टी के ग्रामीण इस स्थान पर आकर देवताओं को दूध दही और मक्खन से नहलाते हैं। आयोजन के बाद ग्रामीण अच्छे-अच्छे पकवान बना कर इस उत्सव को बड़े ही सौहार्दपूर्ण ढंग से मनाते हैं । जिसका मनोहर दृश्य देखते ही बनता है। दूध दही और मक्खन की अनोखी पूजा के लिए ग्रामीण हर साल काफी उत्साहित रहते और इस दिन का पूरे साल भर ग्रामीण इंतजार करते हैं। वहीं अब स्थानीय ग्रामीण चाहते हैं कि इस प्राचीन मेले को सरकार की सहायता से आगे बढ़ाया जाए अगर सरकारी मदद मिले तो यह मेला बेहतर हो सकता है और आने वाले पीढ़ियों के लिए यह संस्कृति भी जिंदा रह सकती है इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि और सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए। उत्तरकाशी अपने मेले त्योहारों एवं विभिन्न संस्कृति के लिए पहचाना जाता है यहां खूबसूरत घाटियों के साथ खूबसूरत लोग और संस्कृति का भी वास है। बहुत सारे मेले और त्यौहार ऐसे हैं जो अभी भी सरकार की नजर से दूर हैं जरूरत है इस पौराणिक संस्कृति को सवारने और संरक्षित करने की सरकार को चाहिए छोटे-छोटे मेले त्योहारों को चिन्हित कर इनका संरक्षण करें, जिससे हमारी पौराणिक संस्कृति जिंदा रह सके।