रात में निकला जुलूस बिगड़ने लगा माहौल! जी हां हरिद्वार के ग्रामीण इलाकों में एक बार फिर वही डर लौट आया है, जो कुछ ही दिन पहले काशीपुर की गलियों में हिंसा और तनाव बनकर फूटा था। अब धनपुरा और घिसुपुरा गांवों की सड़कों पर रात के अंधेरे में निकल रहे जुलूस, सिर्फ जुलूस नहीं—बल्कि एक खतरनाक साजिश की परछाईं जैसे लगने लगे हैं। पूरी खबर बताने जा रहा हूं कौन हैं वो लोग जिन्हें अपने उत्तराखंड की शांति पसंद नहीं आ रही है। दगड़ियो अपने उत्तराखंड को न जाने किसकी नजर लग गई है, हाल में हुए पंचायत चुनाव के बाद की तस्वीरें डराने वाली हैं। पहले याद होगा आपको चुनाव के दौरान क्या क्या हुआ, फिर आपदा और अब दो मामले खूब चर्चा में हैं एक है नकल या कहूं पेपरलीक और दूसरा वो मामला जिसकी तरफ अभी शायद किसी का ध्यान गया नहीं है, आ अंदेखा किया जा रहा है। दोस्तो चार दिन से लगातार हजारों की भीड़ बिना अनुमति के सड़कों पर, गांवों में डर और खामोशी और हिंदू समाज का सवाल—’क्या काशीपुर की आग अब हरिद्वार तक पहुंच चुकी है? प्रशासन कहां है? पुलिस क्या कर रही है? और ये भीड़ आखिर क्या साबित करना चाहती है?आज की हमारी खास रिपोर्ट में हम खोलेंगे इस रात के जुलूसों की परतें, जानेंगे इस ‘ताकत प्रदर्शन’ की असली मंशा और समझेंगे कि क्या सच में किसी बड़ी साजिश की पटकथा लिखी जा रही है। बंधन से ब्रह्माण्ड तक — ग्रामीण हरिद्वार में गूंज रही खामोशी, साजिश की परतें खुलतीं?रात की आड़ में ताकत का प्रदर्शन: धनपुरा-घिसुपुरा की सड़कों पर उठे सवाल काशीपुर की छाया हरिद्वार ग्रामीण में — जुलूस या जाल? दंगा की आहट।
दोस्तो हरिद्वार के ग्रामीण इलाकों में अचानक से रात के अंधेरे में निकले जुलूसों ने सभी को हिलाकर रख दिया है। एक ओर जहां प्रशासन ने इन घटनाओं को “बिना अनुमति का जुलूस” बताया है, वहीं ग्रामीणों और हिंदू समाज ने इसे माहौल बिगाड़ने और दंगा भड़काने की साजिश करार दिया है। दोस्तो धनपुरा और घिसुपुरा जैसे गांवों में चार दिन से निरंतर जा रहे इन जुलूसों ने सामाजिक असुरक्षा, सामुदायिक संदेह और राजनीति की हलचल को बढ़ा दिया है। इस रिपोर्ट में वीडियो में मैं कई बिंदुओं पर बात करने जा रहा हूं । 1. रात के जुलूस: सामान्य प्रदर्शन या सामूहिक आतंक? दोस्तो चार रातों तक मध्यानरात्र करना जुलूस निकालना, वह भी बिना अनुमतिपत्र—यह सहज घटना नहीं लगती। भीड़ की संख्या हजारों में बताई जाती है — एक सामान्य धार्मिक या सांस्कृतिक जुलूस इतनी बड़ी संख्या में बिना सूचना-आधार कैसे चलाया जाता? इन जुलूसों के निकलने का समय और दिशा यह संकेत देते हैं कि यह सिर्फ प्रदर्शन नहीं, बल्कि “शक्ति प्रदर्शन” का इशारा था—जिसका उद्देश्य समाज को भय में दौड़ाना हो सकता है। अनुमति व चेतावनी के बावजूद अगर जुलूस आगे बढ़ता रह जाए, तो यह संकेत है कि पीछे कोई सुपरिंग प्रेरणा (सैन्य-तरीका) हो सकती है। 2. ग्रामीणों की घबराहट: घरों में कैद, डर का माहौल, कई हिंदू परिवार रात होते ही घर में कैद हो गए—दरवाजे बंद किए, खिड़कियों से बाहर न गए। यह डर सिर्फ हिंसा से नहीं, अनजान अफवाहों, अनियंत्रित तर्कों और सामूहिक दबाव से भी जुड़ा है।
इस तरह का डर समुदाय के संयुक्त विश्वास को डिगा सकता है, जहां हर व्यक्ति अपनी पहचान और सुरक्षा को देख रहा हो, घरों में कैद रहने की स्थिति बताती है कि जनता ने स्वयं को असुरक्षित महसूस किया — और यह संकेत है कि स्थिति तुरंत नियंत्रित न हुई तो बड़े दुष्परिणाम संभव हैं। 3. चार दिन की लकीर — एक पैटर्न, एक साजिश लगातार चार दिन जुलूस निकलना कोई आकस्मिक घटना नहीं है — यह लॉजिक बताता है कि यह पहल से योजनाबद्ध गतिविधि हो सकती है। दोस्तो यदि ऐसा पैटर्न ठीक उसी इलाके या पड़ोसी इलाकों में चलता रहा है, तो यह संकेत हो सकता है कि नक्शे की तरह जुलूसों को संचालित किया जा रहा हो, संभवतः राजनीतिक या फंडामेंटल एजेंडा से। 4. फेरूपुर चौकी घेराव: विरोध की आग दोस्तो जब स्थानीय हिंदू समाज के लोगों ने फेरूपुर चौकी घेरकर विरोध किया, तो यह दिखाता है कि जनता मौन नहीं रही। चौकी घेरने का मतलब है प्रशासन को दबाव देना, यह कहना कि “हमने देखा है, हम जवाब मांगेंगे,ऐसे आंदोलन स्थानीय न्याय और जवाबदेही की चिंगारी बन सकते हैं. 5. बजरंग दल और सुरक्षा की आवाज़ बजरंग दल पदाधिकारियों ने इस घटना को धार्मिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण बताया — बहन-बेटियों की सुरक्षा, हिंदू समाज पर दबाव आदि।
दोस्तो ये घटना कभी काशीपुर में होती हैं कभी हरिद्वार में होती है। इस तरह की धार्मिक-संस्कृतिक संगठनों की आवाज़ें जनता की भावनाओं को और ज़्यादा तूल देती हैं। प्रशासन और पुलिस के लिए ये एक चेतावनी है कि यदि सुरक्षा ठोस नहीं होगी, तो सामाजिक तनाव और बड़े आंदोलन पैदा हो सकते हैं। अब वो सवाल कि कौन चाहता है माहौल बिगाड़ना? क्योंकि काशिपुर में जो हुआ उसने कई सवालों को जन्म दिया किसी भी सामाजिक या सांस्कृतिक घटना में राजनीति घुस जाती है — इस घटनाक्रम में भी राजनीतिक तत्वों की भूमिका अछूती नहीं लगती। विपक्ष या संगठनों द्वारा यह आरोप लगाया जा सकता है कि एक पेड़ की जड़ से जंगली जड़ें हैं — यानी यह साजिश कहीं बड़ी ताकतों की भी हो सकती है। प्रशासन के सामने बड़ी चुनौती है कि पहले से अलर्ट रहना, संदेहों पर निगरानी करना, और तत्काल कार्रवाई करना। दोस्तो जुलूस पहले ही निकालने की योजना है, तो सूचना तंत्र, निगरानी, और पुलिस तैनाती — ये सभी सक्रिय रहने चाहिए।जानकारी तंत्र जनता के बीच खुलना चाहिए, ताकि जो भी कुछ देखे — वो बताए। अगर यह साजिश है — तो उद्देश्य क्या हो सकता है? दोस्तो हरिद्वार के ग्रामीण इलाकों में जो जुलूस निकलने का सिलसिला शुरू हुआ है, वह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं है — यह समाज, सुरक्षा और राजनीति का धमाका है। धनपुरा से लेकर घिसुपुरा तक, हर रात का जुलूस एक चौकाने वाला संदेश है — कि यदि प्रशासन समय रहते कदम न उठाए, तो माहौल डर, विभाजन और अराजकता का बन सकता है। अब सरकार, पुलिस और न्याय प्रणाली का उत्तरदायित्व है — बहती हवा को रोके, जनता को विश्वास दिलाए, और अपराधी को सजा दिलाए। नहीं तो ये रातें और जुलूस सिर्फ शुरुआत बन जाएंगे।