उत्तराखंड में बदला माहौल तीसरे से बीजेपी-कांग्रेस में हलचल है। उत्तराखंड में बदला बदला सियासी मौसम है। क्यों कहा जा रहा है कि ये २७ के लिए बजी खतरे की घंटी है। प्रदेश में जनता बेहद समझदार है कांग्रेस कह रही है कि उत्तराखंड पंचायत चुनाव ने फूंकी कांग्रेस में जान तो उधर बीजेपी खुशी से आसमान पर है लेकिन दोस्तो सच्चाई ये है कि बीते पंचायत चुनाव ने इन दोनों दलों के लिए खतरे की घंटी है ये मैं क्यूं कह रहा हूं वो मै आपको आगे बताउंगा। Nainital Panchayat Election Bawal इस वीडियों देख कर आप समझ जाएंगी की आज की सियासत में बीजेपी और कांग्रेस दोनों कैसा खेल खेल रहे हैं वीडियो में बिन माइक के भाषण देते इन नेता जी के बारे में भी बताउंगा लेकिन इनकि एक एक बात पर गौर कीजिए। वैसे नहीं बात नहीं है जो ये कह रहे हैं। पंचात चुनाव के समापन में जिस तरह की तस्वीर प्रदेश भर में देखने को मिली वो बताने के लिए काफी है कि अब पहाड की राजनीति का कलेवर बदल रहा है लेकिन दोस्तो ये भी सच है कि पहाड ऐसी राजनीति के साथ खडा होने वाला नहीं है जहां धनबल बाहूबल का इस्तेमाल हो इनकी बातों को समझने की जरूरत है। दोस्तो उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा और चौंकाने वाला बदलाव दिखाई देने लगा है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 के नतीजों ने न सिर्फ सत्ता पक्ष को चौंकाया, बल्कि विपक्ष को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है क्योंकि इस बार बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों ने विजय हासिल की है। ना किसी पार्टी का झंडा, ना कोई संगठन की ताकत — सिर्फ जनता के मुद्दों के साथ उतरे ये उम्मीदवार जीतकर आए है।
अब वो बात अलग है कि जीत के बाद कुछ बीजेपी के साथ चले गए तो कुछ कांग्रेस के साथ लेकिन जो वीडियो मेंने आपको शुरूआत में दिखाया। ऐसे लोग भी कम नहीं जो कहीं नहीं गए अब दोस्तो बड़ा सवाल ये है कि क्या ये लहर 2027 के विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिलेगी? क्या उत्तराखंड की राजनीति अब ‘तीसरे विकल्प’ की तरफ बढ़ रही है? क्या बीजेपी और कांग्रेस के पारंपरिक वोटबैंक में सेंध लग चुकी है? आज मै आपको इसी विषय पर विस्तार से बताने जा रहा हूं। दोस्तो उत्तराखंड के हालिया पंचायत चुनावों में, राज्य के 11 में से कई जिलों में निर्दलीयों ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया। कई ज़िलों में जिला पंचायत सदस्य, बीटीसी, और ग्राम प्रधान के पदों पर निर्दलीयों ने भाजपा और कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशियों को हरा दिया। पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, ऊधमसिंह नगर जैसे क्षेत्रों में निर्दलीय मजबूत होकर उभरेते दिखाई दिये। कई स्थानों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को ग्रामीणों का समर्थन सिर्फ इसलिए मिला, क्योंकि वो सीधे जनता से जुड़े मुद्दों को उठा रहे थे — सड़क, पानी, स्वास्थ्य, और शिक्षा तो क्या अब विधानसभा चुनाव २०२७ में मामला बीजेपी-कांग्रेस के लिए खतरा पैदा होने लगा है। दोस्तो आपके जहन में यहां सवाल ये भी होगा कि बीजेपी नहीं काग्रेस नही फिर तीसरा कौन कैसे आज में सब बताउंगा क्योंकि दोस्तो कुछ बाते तो पंचायत चुनाव के दौरान देखने को मली ही जहां जनता ने निर्दलीय उम्मीदवारों भरोसा किया। दूसरा वो जो दो रोज पहले हुआ गोलिया चली तलवारे निकली किंडनैपिंग धनबल बाहुबल ये बताने के लिए खाफी है। ये दो ही दोलों के लिए झलक दिखाने वाला है कि आगे राह आसान नहीं है।
खैर जहां पार्टी प्रत्याशी जहां प्रचार में पार्टी की योजनाओं और नेताओं की छवि के सहारे आगे बढ़ रहे थे, वहीं निर्दलीय उम्मीदवार “स्थानीय चेहरों और ज़मीन के काम” की वजह से जनता से सीधे जुड़ गए। अगर दोस्तो ये जुडाव आगामीविधानसभा चुनाव तक रहा तो ये दोनों ही दल कहीं के नहीं रहने वाले हैं। इस बार जो संदेश साफ तौर पर आया है, वह है — “जनता अब सिर्फ पार्टी देखकर वोट नहीं दे रही। दगडियो बीजेपी की बात करूं तो सरकार में होने के बावजूद कई इलाकों में उनके प्रत्याशी हार गए। ये छोटी बात नहीं है वो तब जब कांग्रेस कह रही थी बीजेपी सरकार इस चुनाव को अपने तरीके से करा रही है। सरकारी तंत्र का इस्तमाल अपने पाले में जीत करने के लिए किया जा रहा है। कई जगहों पर स्थानीय मुद्दों की अनदेखी और पार्टी संगठन में गुटबाज़ी का नुकसान हुआ। कांग्रेस की बात करें, तो: विपक्ष में होने के बावजूद ज़मीनी पकड़ कमजोर दिखी। प्रत्याशियों के चयन में गुटबंदी और अनुभवहीन चेहरों पर दांव भारी पड़ा। अब इन दोनों राष्ट्रीय दलों के सामने खतरे की घंटी बज चुकी है क्योंकि अगर निर्दलीय प्रत्याशियों ने पंचायत से लेकर विधानसभा तक अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर ली, तो 2027 में “तीसरी ताकत” का उदय तय है। दोस्तो अब सवाल उठता है — इन निर्दलीयों का क्या असर होगा? जरा इसको ऐसे भी समझिये कि राजनीतिक सौदेबाज़ी में बढ़ेगा इनका महत्व। जैसे जिला पंचायतों में सरकार बनाने या समर्थन के लिए बीजेपी और कांग्रेस को निर्दलीयों की ओर देखना पड़ा वैसा कुछ स्थानीय विकास के लिए बड़ी जिम्मेदारी। जितने भी निर्दलीय जीते हैं, उन पर अब जनता की उम्मीदें हैं। अगर ये प्रतिनिधि वाकई ज़मीन पर काम करते हैं, तो जनता का भरोसा इन्हीं पर टिकेगा ये सच है और ये दोस्तो विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर उतर सकते हैं। जो निर्दलीय पंचायत स्तर पर जीत चुके हैं, वही 2027 में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए।