Uttarakhand BJP: कहते हैं सियासत में न रिश्ते बदलते वक्त लगता है और ना ही नए समीकरण बनते! पहाड़ पॉलिटिक्स में युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी और पूर्व सीएम व हरिद्वार सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के बीच ऐसा ही कुछ दिखाई दे रहा है। देहरादून हो चाहे दिल्ली दोनों नेता मुलाकात का मौका बन रहा हो तो अकेले में बैठने से चूकते नहीं हैं। सीएम धामी जब दिल्ली दौरे पर थे और डॉ निशंक भी तो फिर मुलाकात लाजिमी थी। मंगलवार को दोनों नेताओं की बंद कमरे में चली लंबी बैठक सियासी पंडितों को नए बनते बिगड़ते समीकरण तलाशने को मजबूर कर गई है।
मुख्यमंत्री धामी दिल्ली दौरे में इधर प्रधानमंत्री और कई केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करते हैं, उधर निशंक के साथ उनकी लंबी मंत्रणा हो जाती है। भले के जमाने में सीएम धामी भगतदा कैंप के सिपाही रहे हों और डॉ निशंक खुद में एक अलग कैंप के अगुआ। लेकिन आज पॉलिटिकल परिस्थितियां बदल चुकी हैं। भगतदा को महाराष्ट्र राजभवन से घर भेज दिया गया है। जबकि हरिद्वार सांसद डॉ निशंक के सामने सियासी चुनौती है हरिद्वार से जीत की हैट्रिक के लिए टिकट लेकर चुनावी ताल ठोकना।
तो क्या जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुलकर सियासी दांव पेंच आजमा रहे हैं और अपने इर्द गिर्द मौजूदा राजनीतिक सत्ता और संगठन से असंतुष्ट चल रहे नेताओं कार्यकर्ताओं का जमावड़ा भी बढ़ात जा रहे तब क्या धामी – निशंक की नजदीकियां नए संकेत दे रही हैं? आखिर पुष्कर धामी आज सत्ता सिरमौर हैं और उनकी कुर्सी को हिलाने की कोशिशें बीजेपी के भीतर मौजूद कुछ तबकों द्वारा शुरू कर दी गई हैं, तब युवा मुख्यमंत्री भी अपने पत्ते खेलते हुए समर्थकों का कुनबा बड़ा करने में जुट गए हैं। जाहिर है इस लिहाज से निशंक को साधने की उनकी रणनीति TSR कैंप के लिए एक जवाब हो सकती है।
सीएम धामी के साथ नजदीकियां बढ़ाना हरिद्वार सांसद डॉ निशंक के लिए भी सियासी लिहाज से फायदेमंद साबित होगा क्योंकि जिस हरिद्वार की नुमाइंदगी आज वे संसद में कर रहे, उस सीट पर 2024 की चुनौती के लिहाज से वहां आज न केवल TSR बल्कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक जैसे धुर विरोधी भी ताल ठोक रहे हैं। त्रिवेंद्र और कौशिक की जुगलबंदी भी है लिहाजा धामी और निशंक मिलकर इसका जवाब बनते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में निशंक और धामी की जल्दी जल्दी होती मुलाकातों और लंबी बैठकों को नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए।