उत्तराखंड को बने 22 साल का वक्त पूरा हो चुका है, लेकिन लापता लोगों को ढ़ूंढ़ना पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई है। राज्य में लापता लोगों की संख्या अभी तक 7,741 पहुंच चुकी है। वहीं इन 22 सालों में पुलिस ने 5,723 लापता लोगों को ढूंढा भी है। ये मिसिंग के मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं। उत्तराखंड जैसे शांत प्रदेश में बड़ी संख्या में लोगों के लापता होने से विभिन्न तरह के अपराध होने की आशंकाएं हैं। इन मिसिंग लोगों में महिला, पुरुष और बड़ी संख्या में बच्चे भी शामिल हैं।
उत्तराखंड में सबसे ज्यादा लापता लोग हरिद्वार जिले में 2495 हैं, देहरादून में 2264 लोग लापता हैं। राज्य के तेरह जिलों में लापता लोगों की संख्या की बात करें तो अल्मोड़ा 54, बागेश्वर 69, चमोली 489, चंपावत 43, देहरादून 2264, हरिद्वार 2495, नैनीताल 378, पौड़ी 174, पिथौरागढ़ 221, रुद्रप्रयाग 125, टिहरी 108, उधम सिंह नगर 1247 और उत्तरकाशी में 80 लोग लापता हैं। ये आंकड़ा जोनल इंटीग्रेटेड पुलिस नेटवर्क का है। जोनल इंटीग्रेटेड पुलिस नेटवर्क के आंकड़ो को देखें तो उत्तराखंड में वर्तमान तक 7,741 लोग मिसिंग चल रहे हैं। ये आंकड़ा उत्तराखंड बनने की तिथि से अभी तक का है।
बड़ी संख्या में उत्तराखंड से लोगों का लापता होना बड़ी चुनौती है. ऐसे में इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इसका संबंध कई अपराधों जैसे, देह व्यापार, भिक्षावृत्ति, मानव तस्करी से जुड़ा हुआ हो। एक्सपर्ट भी मानते हैं कि जब तक लापता लोगों की खोज नहीं हो जाती इसमें मानव तस्करी की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। बड़ी संख्या में लोगों के लापता होने से देह व्यापार, भिक्षावृत्ति और मानव तस्करी का क्राइम इनसे जुड़ा हो सकता है. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो बिना बताए घर छोड़कर चले गये होंगे, लेकिन ये बात अपने आप में गंभीर है।