नैनीताल पुलिस की अंधेरगर्दी से वरिष्ठ अधिवक्ता इस्तीफा देने को हुए मजबूर, पत्र में बयां किया दर्द। अब सवाल ये है कि ऐसा क्या हुआ होगा कि वकील ने ही इस्तीफा दे दिया। बताउंगा आपको अंदर खाने क्या चल रहा था। Why did the Advocate General resign अपने उत्तराखंड में तो गजबे हो रहा है। पहले पंचायत चुनाव में हाई वोल्टेज ड्रामा अब कोर्ट कचहरी जहां एक तरफ कोर्ट ने लगाम सख्ती से क्या पकड़ी बड़े चिचिहाने लगे। अब ऐसा क्या कर दिया उत्तराखंड की मित्र पुलिस ने की एक काबिल वकील को इस्तीफा तक देना पड़ा। जी हां नैनीताल पुलिस की कार्यशैली के चलते उत्तराखंड के काबिल वरिष्ठ अधिवक्ता को अपनी जिम्मेदारियों से इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा है लेकिन क्या सरकारी वकील के इस्तीफे की सिर्फ एक ही वजह रही होगी बल ऐसा कैसे हो सकता है। हां वैसे एक आद तो इमानदार तो निकल ही जाते हैं। ये एडवोकेट जनरल ने जो इस्तीफा दिया है वो क्या इमानदारी को काम रखते हुए दिया या फिर इन्होंने कोर्ट में कुछ ऐसा कह दिया जिससे पुलिस और सरकार तक को मिर्ची लग गई और कह दिया दिया इस्तीफा दो कोई दूसरा वकील लड़ेगा। ताकि हर जानकारी मै आप तक पहुंचाने में कामयाब रहूं दगड़ियों मै आपको अंदरखाने की खबर बताउं उससे पहले ये भी देख लीजिए उत्तराखंड हाईकोर्ट में पिछले 20 सालों से जिला पंचायत के अधिवक्ता की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे रवींद्र सिंह बिष्ट ने सोमवार शाम दुखी मन से इस्तीफा दे दिया।
दगड़ियो अपने इस्तीफे में उन्होंने जिला पंचायत सदस्यों के अपहरण के दौरान नैनीताल पुलिस की चुप्पी और नाकामी का जिक्र भी किया है। बात सही कही वकील साहब ने अब तक लेकिन आगे क्या हुआ होगा बल। 14 अगस्त को हुए अपहरण कांड से दुखी वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र सिंह बिष्ट ने नैनीताल पुलिस की सुस्ती ढीलाई के चलते हाईकोर्ट में जिला पंचायत की तरफ से केस लड़ने में असमर्थता जताई। दोस्तो ये इस्तीफा तब हुआ जब 18 तारीख को दिन में मामले में सुनवाई थी और फिर अगले दिन यानि की 19 अगस्त को फिर सुनवाई होनी थी, लेकिन दगड़ियो 19 अगस्त को जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव और अपहरण मामले में सुनवाई से पहले ही बिष्ट ने एक पत्र के माध्य से इस्तीफा दे दिया। हां उस पत्र में और भी बहुत कहा गया है लिखा गया है। आगे आपको बताउंगा उसके बारे में भी बीच सुनावई ऐसे में जिला पंचायत के वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र सिंह बिष्ट के इस्तीफे ने हलचल मचा दी है। अब उस पत्र का जिक्र करने जा रहा हूं दगड़ियो फिर इसके पीछे की असल वजह भी बताउंगा। पहले उस पत्र का जिक्र करता हूं जिस पत्र में वकील रवींद्र सिंह बिष्ट ने अपना दर्द बयां किया है।
दगड़ियों अपने इस्तीफे में अधिवक्ता रवींद्र सिंह बिष्ट ने लिखा है कि 14 अगस्त को चुनाव के दिन पुलिस के सामने सदस्यों को हथियारबंद बदमाश उठा ले गए लेकिन पुलिस खामोश तमाशबीन बनी रही अब ये अपने आप में सवाल है कि क्यों पुसिस इतनी सुस्ती दिखा रही थी किसके कहने पर दिखा रही थी और इन सदस्यों के मतदान में गैरहाजिर होने से किसको फायदा होता वैसे ये बात आपको समझ आ रही हो तो आप कमेंट कर बता सकते हैं लेकिन पत्र में इतना भर नहीं लिखा था पत्र तो लंबा चौड़ा ठैरा बल तो सुनिये दगड़ियो बिष्ट ने अपने इस्तीफे में साफ लिखा है कि घटना पुलिस के सामने होती रही, लेकिन पुलिस ने न तो कोई कार्रवाई की और न ही कोई हस्तक्षेप किया। यह स्थिति न केवल चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठाती है, बल्कि कानून-व्यवस्था पर भी गहरे प्रश्न खड़े करती है। अधिवक्ता रवींद्र सिंह बिष्ट ने डीएम और जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी को इस्तीफा भेज दिया है। यहां बता दूं दगड़ियो कि मामले की सुनवाई के दौरान 14 अगस्त और 18 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश भी एसएसपी प्रहलाद नारायण मीणा को कड़ी फटकार लगा चुके हैं। इस पूरे मामले में पुलिस की लापरवाही और अपराधियों को बचाने की मंशा उजागर होने पर मुख्य न्यायाधीश ने एसएसपी के तत्काल ट्रांसफर की बात भी कही।
सोमवार को मुख्य न्यायाधीश की फटकार के बाद एसएसपी ने 24 घंटे में अपहरण में शामिल सभी आरोपियों की गिरफ्तारी की बात कही वैसे इसे देख लीजिए गुरुवार 14 अगस्त को हुए जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के दौरान पुलिस की मौजूदगी में मतदान स्थल से कुछ ही दूरी पर कांग्रेस सदस्यों डिकर सिंह मेवाड़ी, प्रमोद कोटलिया, तरुण कुमार शर्मा, दीप सिंह बिष्ट और विपिन सिंह जंतवाल को रेनकोट पहने हथियारबंद लोगों ने जबरन उठा लिया था जिसकी मै आपको पहले तस्वीर भी दिखा चुका हूं और इस पर कई सवाल भी उठा चुका हूं वो आप मेरे उत्तराखंड न्यूज के पेज पर जा कर देख भी सकते हैं। वैसे मै इस बात का जिक्र पहले ही कर चुका हूं कि इस पूरे मामले में पुलिस चुप थी क्यों तत्काल कार्रवाई नहीं हुई। ये वो तमाम सवाल मेने किये और आप लोगो ने भी कमेंट कर बहुत सवाल पूछे थे। वहीं सवाल आज कोर्ट पूछ रह है दगड़ियो और ये बात वरिष्ठ अधिवक्ता बिष्ट जी ने भी मानी कि पुलिस से चूक हुई। यहां मेरा सवाल ये भी था कि ये चूक हुई है या फिर जानबूझकर की गई है। मैने ये कहा था इस घटना ने अपराधियों के साथ पुलिस की मिलीभगत को बेनकाब किया है। दोस्तो इस पूरी घटना के बाद तब कांग्रेस ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान कर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद तल्लीताल पुलिस ने एसआई सतीश उपाध्याय की तहरीर पर अज्ञात आरोपियों के खिलाफ अपहरण और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था।
वहीं भाजपा की ओर से इस पूरी वारदात का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा गया। कांग्रेस प्रत्याशी दीपा देवी की शिकायत पर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या, उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी, विधायक सुमित हृदयेश, पूर्व विधायक संजीव आर्या के खिलाफ तहरीर दी गई थी। भाजपा प्रत्याशी दीपा देवी दर्मवाल ने 14 अगस्त को तल्लीताल थाने में दी शिकायत में बताया था कि उनके चार समर्थक जिला पंचायत सदस्य मतदान के लिए पहुंचे थे, तभी कांग्रेस नेताओं और कुछ अज्ञात लोगों ने उनके समर्थकों से मारपीट की और उन्हें जबरन उठाने का प्रयास किया पर पुलिस ने शनिवार को नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश, विधायक भुवन कापड़ी और पूर्व विधायक संजीव आर्य के खिलाफ भी केस दर्ज किया। इन पर मारपीट और अपहरण का आरोप है हालाकि एक सच ये भी है कि नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या के फेसबुक लाइव वीडियो में सिर्फ और सिर्फ रेनकोट पहने बदमाश और भाजपा नेता ही भागते नजर आ रहे हैं। यही वजह है कि अब माननीय हाईकोर्ट की फटकार के बाद नैनीताल के एसएसपी ने 19 अगस्त को सभी आरोपियों को गिरफ्तार करने की हामी भरी है। अब देखना होगा हाईकोर्ट में की अपने बयान पर एसएसपी कितना खरा उतरते हैं, इस पर न केवल नैनीताल जिले बल्कि उत्तराखंड भर के लोगों की निगाहें टिकी हैं। यह आरोप केवल लापरवाही नहीं बल्कि मिलीभगत की आशंका भी पैदा करता है।
अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या पुलिस जानबूझकर चुप रही, या फिर किसी दबाव में कार्रवाई नहीं की? जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव वैसे ही बेहद संवेदनशील माना जा रहा है। ऐसे में चुनाव के दौरान अपहरण जैसी घटना और फिर जिला पंचायत के वरिष्ठ अधिवक्ता का इस्तीफा, मामले को और भी संगीन बना रहा है। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज है कि इस्तीफा कहीं प्रशासन पर दबाव बनाने की रणनीति तो नहीं है। दूसरी ओर विपक्ष इस पूरे मामले को लेकर सरकार और प्रशासन पर हमलावर हो सकता है। यह मामला केवल एक व्यक्ति के इस्तीफे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों और जनता के भरोसे पर भी सीधा प्रहार है। जब एक वरिष्ठ अधिवक्ता यह कहता है कि पुलिस के सामने अपहरण हुआ और उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की, तो जनता का विश्वास कानून-व्यवस्था पर डगमगाना स्वाभाविक है। नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव पहले से ही विवादों और सियासी खींचतान का गवाह बन चुका है। अब अधिवक्ता रवींद्र सिंह बिष्ट के इस्तीफे ने इस विवाद को और गहरा दिया है।यह इस्तीफा केवल एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि लोकतंत्र और कानून-व्यवस्था की नाकामी का आईना है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि प्रशासन इस पर क्या रुख अपनाता है और क्या इस मामले की निष्पक्ष जांच होती है या फिर यह मुद्दा भी सियासी शोरगुल में दबकर रह जाएगा।