पूरे देश में कल 14 मार्च को होली है। होली से पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका दहन से पहले होलिका माता की पूजा की जाती है। होलिका दहन की कहानी जो फेमस है उसके मुताबिक होलिका राक्षस हिरण्यकश्यप की बहन थी। Holika aur Prahlad ki Asli Kahani राक्षस कुल का राजा हिरण्यकश्यप किसी भी तरह से बेटे प्रह्लाद को मारना चाहता था, और उसके इस काम में मदद करने की कोशिश उसकी बहन होलिका ने की थी। अब प्रह्लाद की जान लेने के चक्कर में उसकी खुद जान चली गई। तब से दोस्तों आग में जली होलिका को बुराई का प्रतीक मानकर हर साल सांकेतिक तौर से होलिका दहन किया जाता है लेकिन इस प्रचलित कहानी से अलग बहुत ही कम लोग होलिका की प्रेम कहानी के बारे में जानते हैं। हिमाचल की लोक कथा के अनुसार होलिका ने अपने प्यार की वजह से अपनी जान की परवाह नहीं की। आइए, जानते हैं होलिका की लव स्टोरी..
राक्षस कुल के राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था, लेकिन प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप को भगवान विष्णु फूटी आंख नहीं सुहाता था। जो भी विष्णु भक्त होता उसे वो खत्म कर देता था। ऋषिण मुनियों पर विष्णु भक्ति के कारण ही वो कहर बरपाता था। अब ऐसी स्थिति उसके घर एक ऐसे बच्चा आया। जिसके आने पर बहुत खुश था, लेकिन बच्चे की जुबां पर भगवान विष्णु का नाम चढ़ गया। हिरण्य ने उसे प्रह्लाद से दूर करने का भरपूर प्रयास किया। लेकिन वक्त के प्रह्लाद के रोम रोम भगवान विष्णु समा गए। हिरण्यकश्यप प्रह्लाद की भक्ति से खुश नहीं था इसलिए विष्णु भक्त होने के कारण हिरण्यकश्यप अपने बेटे को दंडित करता था। समय बीतने के साथ ही हिरण्यकश्यप का धैर्य का बांध टूट गया, तो उसने प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई। इस योजना को पूरा करने के लिए उसने अपनी बहन होलिका को अपने राज दरबार में आमंत्रित किया। होलिका का जल्द ही विवाह होने वाला था। इस कारण से भाई के बुलावे पर बहन बहुत खुश हुई।
होलिका अग्निदेव की उपासक थीं, होलिका को अग्निदेव से एक विशेष वस्त्र वरदान में मिला था। ये वस्त्र उसे आग से बचाता था। हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से बहुत क्रोधित था। उसने प्रह्लाद को मारने के कई असफल प्रयास किए थे, और अंत में उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठे। अपने भाई के मुख से अपने से पुत्र की हत्या के षड्यंत्र की बात सुनकर होलिका बहुत दुखी और क्रोधित हुई लेकिन हिरण्यकश्यप ने अपनी बातों से उसे बहलाने-फुसलाने का प्रयास किया। हिरण्यकश्यप की बात सुनकर क्रोधित होलिका ने कहा कि जल्द ही उसकी शादी होने वाली है इसलिए वो अपने नए जीवन की शुरुआत करेगी और इस पाप की भागीदार नहीं बनेगी। जब हिरण्यकश्यप को होलिका के प्रेम राजकुमार इलोजी के बारे में पता चला, तो उसने एक और चाल चली और होलिका को धमकी दी कि अगर वो प्रह्लाद को लेकर चिता में नहीं बैठी, तो वो होलिका के होने वाले पति की हत्या करा देगा। होलिका हिरण्यकश्यप की बात सुनकर डर गई और प्रह्लाद को लेकर चिता में बैठने के लिए राजी हो गई।
होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई अग्नि में बैठ गई लेकिन ईश्वर की कृपा से उस समय तेज हवा चली। हवा से होलिका का सुरक्षा कवच, वो दिव्य वस्त्र, उड़कर प्रह्लाद के ऊपर जा गिरा। होलिका उस समय वस्त्र को खींचकर अपने शरीर को ढक सकती थी लेकिन उसने एक बालक की जान लेने से अच्छा अपनी जान देना ही बेहतर समझा। होलिका जानती थी कि अगर वो प्रह्लाद को नुकसान पहुंचाए बिना बच गई तो उसका भाई हिरण्यकश्यप उसके प्रेमी इलोजी की जान ले लेगा इसलिए उसने प्यार की वजह से अपनी जान दे दी। इस तरह अग्निदेव के दिव्य वस्त्र की कृपा से प्रह्लाद आग से बच गया, लेकिन होलिका जलकर राख हो गई। हिमाचल और आसपास की जगहों पर होलिका को प्रेम की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। यहां होलिका दहन की आग होलिका देवी के बलिदान को याद करने के लिए जलाई जाती है, जिन्होंने अपने प्यार को जिंदा रखने के लिए खुद अपनी जान दे दी थी।
प्यार में ऐसी ही शक्ति होती है। जो असली प्यार की जद में होता है वो कुछ भी कर सकता है। लेकिन आज के वक्त में इस तरह के प्यार बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। इसके साथ ही दोस्तों अगर होलिका को एक वैम्प की तरह देखते आए है, तो उसे अपने दिमाग से बाहर निकालिए। क्योंकि हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए होलिका एक ऐसी प्रेमिका रही, जो अपनी अपनी प्रेमी की जिंदगी के लिए खुद की कुर्बानी दे दी। इसके साथ एक बच्चे की हत्या के पाप से भी खुद को बचाया। हिमाचल प्रदेश के लोगों के दिलों में होलिका के लिए जो सम्मान है, उससे ये तो साबित हो जाता है। होलिका एक देवी है, जो अपने राक्षस भाई के सामने नहीं झुकी, झुकने के बजाए खुद को खत्म करना ही बेहतर समझा।