उत्तराखंड में सावधानी जरूरी… एक बार फिर से केदारनाथ हादसे जैसी ही बन रही है पूरी कहानी
वैज्ञानिकों ने दिया ऐसा संकेत… सुनेंगे तो यही करेंगे सवाल… क्या फिर से आने वाली है वही आफत
उत्तराखंड में केदारनाथ हादसे जैसी घटना की आशंका… हाई अलर्ट पर उत्तराखंड, गंगोत्री ग्लेशियर की निगरानी शुरू
ये खबर डराने के लिए नहीं है… बल्कि सर्तक होने के लिए है… सावधान करने के लिए है… आने वाले खतरे को बेहतर तरीके से निपटा जा सके… केदारनाथ हादसा तो याद होगा… उस हादसे में क्या हुआ था… ये किसी से छिपा नहीं है… ना जाने कितनों की जान गई… कितने लापता हो गए… 2013 को उत्तराखंड में हुई वो दर्दनाक प्राकृतिक अब तक कोई नहीं भूला है… अब फिर से वैज्ञानिकों ने दावा किया है… एक ऐसा संकेत दिया… उत्तराखंड में प्रकृति फिर से 2013 वाले रूप में कभी भी आ सकती है… वैज्ञानिकों को फिर से उत्तराखंड में केदारनाथ हादसे जैसी घटना होने का डर सताने लगा है… उत्तराखंड को लेकर वैज्ञानिक अलर्ट मोड पर है… यहां तक की गंगोत्री ग्लेशियर की निगरानी भी शुरू हो गई है….
उत्तराखंड के 968 ग्लेशियर है… जिनमें से 13 ग्लेशियर कभी भी बड़ा खतरा बन सकते हैं…. वैज्ञानिक इनकी मॉनिटरिंग करने की बात कह रहे हैं लेकिन सवाल ये है कि आखिर ग्लेशियर पिघलने की वजह क्या हो सकती है? उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलें खतरे की जद में आने की बात जैसे ही सामने आई… सरकार ने इनकी मॉनिटरिंग तेज़ कर दी है… वैज्ञानिक मानते हैं कि उत्तराखंड की 2 झील सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. इनमें पहली वसुंधरा ताल और दूसरी भिंलगना है… इन झीलों का फैलाव तेज़ी से बढ़ रहा है जो भविष्य में केदारनाथ आपदा जैसा रूप दिखा सकता है… इसी डर की वजह से दावा किया जा रहा है कि गंगोत्री ग्लेशियर की निगरानी की जा रही है… ऐसी बहुत सी झीलें हैं जो ज्यादा जोखिम ला सकती है… उनके सामने दिक्कत यह भी है कि वहां तक पहुंचना आसान नहीं है…. वैज्ञानिको का कहना है कि लगातार निगरानी की जा रही है और हर बार आशंका बढ़ती जा रही है… ये चिंताजनक है….वैज्ञानिक तो यहां तक दावा कर रहे हैं… न सिर्फ 13 ग्लेशियर बल्कि सभी ग्लेशियर के पैटर्न में बदलाव आ रहा है. किसी में भी पॉजिटिव रिस्पॉन्स नहीं दिख रहा…
2013 की केदारनाथ त्रासदी, 2021 में धौलीगंगा की बाढ़ और 2023 में सिक्किम के लोहनक झील के टूटने के बड़े हादसों से मिले सबक के बाद उत्तराखंड सरकार अलर्ट है… सरकार ने ग्लेशियरों को लेकर निगरानी बढ़ा दी है… प्रदेश की 347 ग्लेशियर झीलों में से 17 को जोखिम संभावित श्रेणी में रखा है….ग्लेशियर के किस हिस्से में और कहां तक फैलाव है? इसको चिन्हित करना जरूरी है… वहीं, ग्लेशियर पिघलने की बड़ी वजह क्लाइमेट चेंज माना जा रहा है… बर्फबारी के पैटर्न से लेकर मॉनसून में पिछले कुछ सालों का बदलाव भी ग्लेशियर में आये बदलाव की वजह के तौर पर देखे जा रहे हैं….वैज्ञानिको का मानना है कि ग्लेशियर के बदलते पैटर्न पर अब डिटेल्ड स्टडी और अभी से ही एहतियात बरतने जरूरी है… ताकि भविष्य के बड़े खतरे को लेकर अभी से तैयारी रहे…