जो बाघ एक शिकार के लिए एक दूसरे से लड़ते थे…अब ऐसा नहीं कर रहे हैं…आखिर क्यों ?
अब झुंड बनाकर शिकार कर रहे हैं बाघ…टाइगर के भीतर बदले स्वभाव से लोग हैरान !
धीरे धीरे बाघों की संख्या में हो रहा इजाफा…यही हाल हुआ तो उत्तराखंड में बरपेगा कहर !
बाघों को लेकर एक हैरान करने वाली रिपोर्ट सामने आई है…ऐसी रिपोर्ट जिसके बारे में जो भी सुन रहा है हैरान है…क्योंकि बाघों ने अपना गुट बना लिया है…जो बाघ कभी एक साथ नहीं चलते थे…वो बाघ साथ साथ और गुट बनाकर चलने लगे हैं…आखिर क्यों..एक बाघ के हमले से संभलना कितना मुश्किल होता है…यहां तो गुट गुट बाघ हमले कर रहे हैं…शिकार और बाघ के बीच का मुकाबला तो बरसों पहले खत्म हो गया है…लेकिन अब ये रिपोर्ट बताती है कि…आने वाला खतरा कितना बड़ा है…और किस स्तर से संकट भारी होने वाला है….बाघों को लेकर उत्तराखंड हमेशा से परेशान रहा है…पहले बाघों की आबादी कम थी तो इक्का दुक्का बाघ दिखते थे..लेकिन अब आबादी इनती बढ़ गई है कि..बाघ झुंड में दिख रहे हैं…इसके पीछे की असल वजह जो है.,,,वो अब सामने आ चुकी है…उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में मौजूदा समय में कोर और बफर जॉन मिलाकर कुल 260 बाघ यानी टाइगर मौजूद है….जबकि कॉर्बेट पार्क का कुल क्षेत्र 1288 किलो मीटर है….यहां एक टाइगर की टेरिटरी 3 से 5 किलोमीटर की हो गई है…जब की बाघ की अमूमन टेरिटरी 20 से 25 किलोमीटर मानी जाती है..कॉर्बेट पार्क में ये सब क्यों हो रहा है…इसकी वजह भी सामने आई है….कर्बेट पार्क में बाघों की संख्या क्षमता से कहीं अधिक हो चुकी है…जबकि कॉर्बेट नेशनल पार्क की बाघों की धारण क्षमता 120 से लेकर 160 के बीच है…..ऐसे में लगातार बाघों की बढ़ती संख्या बाघों के व्यवहार में बदलाव ला रही है….और हो भी क्यों ना..,जितनी जमीन बाघों के लिए दीजाती है…क्षमता से ज्यादा बाघ जब वहां होंगे तो उनके व्यवहार में बदलाव को देखने को मिलेगा ही.,.,,
कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के आतंक को लेकर लोग बेहद परेशान है….कॉर्बेट नेशनल पार्क के आसपास के गांव में बाघों के द्वारा लगातार इंसानों को निशाना बनाया जा रहा है….. इसको लेकर न केवल इंसान बल्कि कॉर्बेट नेशनल पार्क और वन विभाग के अधिकारी भी बेहद परेशान है…. लेकिन ये लंबे समय तक काम नहीं कर पाएगा….. इसके लिए एक बड़े शोध की जरूरत है .जिसे भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के द्वारा किया जा रहा है…..इसमें बाघों के बदलते स्वभाव और कॉर्बेट पार्क में केयरिंग कैपेसिटी यानी धारण क्षमता को लेकर शोध किया जा रहा है….कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत का सबसे पुराना नेशनल पार्क है…. 1937 में इसकी स्थापना हेली नेशनल पार्क के रूप में हुई थी…. जिसे बाद में आजादी के बाद गंगा नेशनल पार्क बना दिया गया….. लेकिन बाघों के संरक्षण के लिए काम करने वाले एक अंग्रेज अफसर जिम कॉर्बेट के नाम पर बाद में इसे तब्दील कर जिम कॉर्बेट पार्क बना दिया गया…. कॉर्बेट नेशनल पार्क में शुरू से ही बाघों के संरक्षण के लिए बेहतरीन काम होता रहा है….. जिसका नतीजा है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत का इकलौता नेशनल पार्क है जहां पर सबसे ज्यादा बाघों की संख्या पाई जाती है….
लेकिन फिर आखिरकार ये संकट कैसे धीरे धीरे गहराता जा रहा है..और अगर यही स्थिति रही तो आने वाले वक्त में क्या होगा..इसका भी खुलासा हो चुका है..जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के डायरेक्टर धीरज पांडे का कहना है कि..यह बात सही है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क का 1288 स्क्वायर किलोमीटर का क्षेत्र इन बाघों के लिए काम पड़ता जा रहा है….इसको लेकर के भारतीय वन्य जीव संस्थान एक शोध कर रहा है….शोध का परिणाम सामने आने के बाद ही इस विषय पर कुछ किया जा सकता है….अमूमन देखा जाता था कि टाइगर टेरिटरी के लिए लड़ाई लड़ते थे …और इसमें उनकी मौत हो जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है…अब बाघ झुंड बनाकर शिकार कर रहें है….बाघों का बदलता स्वभाव एक बड़ी चिंता का विषय है. यह अपने आप में एक शोध का विषय है..