पहाड़ की महिलाओं की जिंदगी में इस 7 पारंपरिक परिधान का विशेष स्थान | Uttarakhand News

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उत्तराखंड के पारंपरिक पहाड़ी परिधान… जो महिलाओं के आकर्षण में लगा देते हैं चार चांद
देवभूमि में पहाड़ की महिलाओं का ये है विशेष परिधान… आधुनिकता के दौर में आज भी महिलाएं अपने पारंपरिक परिधान पर करती है विश्वास
उत्तराखंड की संस्कृति की पहचान है ये परिधान… गजब का देते हैं लुक.. जानिए खासियत

उत्तराखंड, जिसे अक्सर अपनी लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के कारण देवताओं की भूमि कहा जाता है…ये भारत का एक उत्तरी राज्य है… हिमालय की तलहटी में बसा, उत्तराखंड विविध परिदृश्यों, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों की जगह है… ऊंची चोटियों, हरे-भरे जंगलों और प्राचीन नदियों सहित इसकी अनूठी भौगोलिक विशेषताओं ने सदियों से यात्रियों, तीर्थयात्रियों से लेकर एंडवेंचर को चाहने वालों को आकर्षित किया है… किसी भी देश और राज्य की पहचान उसकी संस्कृति के आधार पर होती है… वहां की संस्कृति और रहन सहन के आचरण से ही किसी लोक स्थान के बारें में जान पाते है… उत्तराखंड के पोशाक राज्य की संस्कृति का एक अंग है जो की उसे सदियों से ही जीवंत रखता आ रहा है…यहां पहने जाने वाले परिधान अपने आप में अलग हैं… साथ ही भौगोलिक स्थिति को देखते हुए इन वेशभूषाओं का इस्तेमाल किया जाता है…. उत्तराखंड की कुछ ऐसी वेशभूषायें हैं, जिनका प्रयोग यहां की जनजातियां और पहाड़ी परिवेश के लोग करते हैं… चलिए उससे आपको वाकिफ कराते हैं…
धोती
धोती पहाड़ी महिलाओं का मुख्या परिधान है… साड़ियों की तरह दिखने वाली धोती सूती कपड़ें से बनी हुई होती है… धोती न सिर्फ एक पहनावा है बल्कि ये उत्तराखंड के परम्परागत वस्त्रों में से एक है…जो की उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान का एक हिस्सा है… उत्तराखंड की महिलाओं की ओर से धोती को ही अधिक पहना जाता है
 घाघर
घाघर कमर पर बांधे जाना वाला घेरदार वस्त्र है… धोती, पाखुला पहनते समय इसका इस्तेमाल पहाड़ की महिलायें करती है… ग्रामीण परिवेश में आज भी रोजमर्रा की दिनचर्या में महिलायें इसे अपने परिधान में शामिल करती है… ये महिलाओं को कार्य करने के दौरान कमर पर सर्पोट भी देती है… घाघर उत्तराखंड में महिलाओं का मुख्या परिधान है… उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की ओर से धारण किया जाने वाला ये वस्त्र सर्दियों में पहना जाता है… इसमें सात पल्ले होते है
 पिछौड़ा
पिछौड़ा कुमाऊं मंडल का एक प्रसिद्ध परिधान है, जिसे लोक मान्यताओं से भी जोड़ा जाता है… इसे विवाहित महिलाएं धारण करती है, लेकिन मार्डन कल्चर के साथ इसके प्रयोग में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं… पारंपरिक पिछौड़ा में कई प्रतीक चिह्नों को भी उकेरा जाता है… पुराने समय में घर में ही इनका निर्माण होता था, लेकिन अब पिछौड़ा के लोकप्रिय होने के बाद इनका वृहद स्तर पर निर्माण हो रहा है…
 पाखुला
पाखुला उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पहने जाना वाला पारंपरिक परिधान है… ये कंबल की तरह होता है जिसे पहनने का एक विशेष तरीका होता है… खासतौर पर सर्दियों के दौरान पहाड़ की महिलायें इसे पहनती हैं… ये महिलाओं को एक पहाड़ी लुक देने के साथ ही सर्दी में गर्मी का एहसास दिलाता है
आंगड़ी
आंगड़ी महिलाओं की ओर से ब्लाउज की तरह पहना जाने वाला वस्त्र है… ये महिलायें अपने ड्रेस के ऊपर पहनती है जो दिखने में काफी आकर्षक लगता है… खासतौर पर आंगड़ी उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्रों में पहने जाने वाला परिधान है… ये गर्म कपड़े का बना होता है… साथ ही इसमें जेब भी बनी होती है
 दोखा
दोखा एक तरह का ऊनी वस्त्र है जो पहाड़ के उच्च हिमालय क्षेत्र और जनजातीय लोगों की ओर से पहना जाता है… ये शरीर को गर्म रखता है…. भेड़ की ऊन से बना ये जैकेट नुमा वस्त्र हर किसी को भाता है… पर्यटक इसे पहन फोटो खिंचवाना भी पसंद करते हैं पहाड़ों में अक्सर भेड़ पालक चरवाहों को यह वस्त्र पहने देखा जा सकता है
कनटोप
ठंड में कान और सिर को ढकने के लिए धारण किये जाने वाले वस्त्र को कनटोप या सिरोवस्त्र भी कहते है… कनटोप ऊन से निर्मित किया जाता है और ये महिलाओं और बच्चों की ओर से इस्तेमाल में लाया जाता है