60 साल पहले उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल को लेकर क्या हुआ था | Uttarakhand Tunnel Collapse

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60 साल पहले उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल को लेकर क्या हुआ था… जिसे सुनेंगे तो यही कहेंगे ऐसा नहीं होना चाहिए था
जानकारी तो जानकारों को रही होगी… लेकिन अब सिलक्यारा में जो हुआ उससे यही लग रहा वो जानकर अंजान रह गए
सिलक्यारा टनल धंसा… धंसने की असल वजह जानिए… अब भी अपनी जगह पर सिलक्यारा सुरंग है फिर भी क्यों धंसी?

उत्तरकाशी में सिलक्यारा टनल धंसने से 41 मजदूर 15 दिन से फंसे हैं… इसका लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन दुनियाभर में सुर्खियों में है… हादसे के बाद सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने कहा कि देश में बन रही सभी 29 टनल का सेफ्टी रिव्यू कराया जाएगा…लेकिन सबसे जरूरी सवाल अब भी अपनी जगह पर है फिर सिलक्यारा टनल क्यों धंसी?… इस सवाल पर जाने से पहले यह जान लेते हैं कि दुनिया की 30% लैंडस्लाइड की घटनाएं हिमालय में होती हैं। प्राकृतिक और मानवीय दोनों वजहों से और ऐसा हर मौसम में होता है… 6000 लोगों की जान लेने वाली 2013 की केदारनाथ आपदा गर्मियों में आई थी, तो 200 लोगों की मौत की वजह बना 2021 चमोली हादसा सर्दियों में हुआ था…सिलक्यारा में जहां टनल बन रही है। वहां पर करीब 60 साल पहले भी टनल बनाने के लिए सर्वे किया गया था… हालांकि, पानी का स्रोत मिलने की वजह से तब इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया था फिलहाल, इस टनल के धंसने की दो बड़ी वजहें सामने आई हैं…
gfx in पहली वजह, इस इलाके से होकर फॉल्ट लाइन का गुजरना… दूसरी, टनल के ऊपर के पहाड़ का गंगा-यमुना का कैचमेंट एरिया होना gfx out
19 नवंबर को केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी उत्तरकाशी आए… उन्होंने टनल के अंदर जाकर रेस्क्यू ऑपरेशन देखा… इस दौरान कहा कि वो महाराष्ट्र से हैं उनके मन में यही परसेरप्शन था कि पहाड़ मतलब पत्थर, क्योंकि उनके यहां पहाड़ ऐसा ही होता है… ‘दक्कन का पठार’ ठोस पत्थर का है…लेकिन जब वो मनाली गए, तो मेरे ध्यान में आया कि हिमालय छोटे-छोटे पत्थरों और मिट्टी से मिलकर बना है… हिमालय में किसी भी तरह से निर्माण के वक्त हमेशा दो बड़े आश्चर्य या कहिए चैलेंज देखने को मिलते हैं…
पहला- यहां थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चट्टानों का स्वरूप और उनकी स्ट्रेंथ बदल जाती है… यहां से कई फॉल्ट भी होकर गुजरते हैं
 दूसरा- यहां जगह-जगह पर पानी मिलता है… निर्माण से कई बार पानी का स्रोत टूट जाता है
जैसा कि 2009 में तपोवन प्रोजेक्ट में हुआ था… यहां काम करने वालों को ये दोनों बातें पता रहती हैं… फिर भी ये हादसा होना कई सवाल खड़े करता है…हिमालयी क्षेत्र का अध्ययन करने वाले भूगर्भशास्त्री केएस वल्दिया ने अपनी किताब ‘हाई डैम्स इन द हिमालय’ में उत्तरकाशी में टनल वाले इलाके में फॉल्ट लाइन्स होने का जिक्र किया है… आइए, समझते हैं कि फॉल्ट लाइन क्या होती हैं, और ये क्यों खतरनाक हैं…
जमीन के नीचे एक साथ दो टेक्टोनिक प्लेट मौजूद हैं… उनके एक-दूसरे के खिलाफ जोर लगाने-घिसटने से फॉल्ट लाइन बनती है… 
दुनिया की सबसे बड़ी फॉल्ट लाइन में से एक अमेरिका के कैलिफोर्निया से होकर जा रही ‘सैन एंड्रियास’ है… 1200 किमी लंबी ये फॉल्ट लाइन अंतरिक्ष से भी देखी जा सकती है। ऐसे इलाके भूकंप के लिए अति संवेदनशील माने जाते हैं…प्रोफेसर वल्दिया के अध्ययन में सिलक्यारा के नीचे मौजूद फॉल्ट लाइन को भी एक्टिव बताया गया है… यानी दो प्लेटें आज भी एक-दूसरे के खिलाफ जोर लगा रही हैं… इससे जमीन के नीचे एनर्जी जमा हो रही है… ये फॉल्ट लाइन ‘राड़ी डांडा’ को यमुना से लेकर गंगा तक काटती है… यमुना को नौगांव के पास तो गंगा को धरासू के पास। धरासू के पास ही राड़ी डांडा है, जहां सिलक्यारा टनल बन रही है… टोंस फॉल्ट को दो और छोटे फॉल्ट भी काट रहे हैं। यानी यहां जमीन के नीचे काफी हलचल है…शीयर जोन के दबाव की वजह से पहाड़ और चट्टानें धीरे-धीरे अपना आकार भी बदलते हैं… ऐसी जमीन में भारी हलचल से शीयर जोन के खुलने का डर भी रहता है, जिससे जमीन में दरार पड़ने, चट्टानें टूटने या धंसने के उदाहरण सामने आते हैं…सिलक्यारा में 15% पुअर और 15% वेरी पुअर कैटेगरी की चट्टानें हैं… टनल बनाने में इन चट्टानों से टैल्कम पाउडर जैसा बुरादा निकल रहा था… इसलिए यहां खुदाई के लिए काफी सावधानी की जरूरत होती है…टनल के रास्ते में फायलाइट रॉक है, जो क्ले रिच होती है… ये काफी कमजोर चट्टान होती है… अगर इसमें पानी मिल जाए तो यह फूलकर क्रैक भी हो सकती है… यानी टनल धंसने की पहली और दूसरी वजह मिल जाएं, तो ये और खतरनाक स्थिति बनाती हैं… सिलक्यारा टनल से 200 मीटर अंदर जहां से मलबा गिरा है, वहां भी पानी आने की शिकायत मिली थी… इस वजह से वो पैच छोड़ दिया गया था… 25 नवंबर को टनल के मुहाने पर पानी का रिसाव साफ नजर आने लगा। यानी यह पहाड़ कैचमेंट एरिया है…राड़ी पर्वत श्रृंखला गंगा और यमुना दोनों ही नदियों का कैचमेंट एरिया है… यानी सालभर इस पहाड़ में पानी रहता है… यही इलाका गंगा और यमुना को पानी उपलब्ध कराता है… इसी क्षेत्र से निकलकर छोटी नदियां स्यांसू, नगुण, खुरोमला और नाकुरी भी भागीरथी में मिलती हैं…बता दें कि गंगा-यमुना हों या फिर नैनीताल की नैनी झील, पहाड़ के सभी जल स्रोतों को ग्लेशियर से कहीं ज्यादा पानी पहाड़ों से मिलता है…ये असल में बारिश का ही पानी होता है, जो पूरे साल रिस-रिसकर नदियों में पहुंचता है
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की रिसर्च के मुताबिक, भागीरथी और अलकनंदा के संगम देव प्रयाग में ग्लेशियर से सिर्फ 27% पानी आता है… बाकी सारा पानी कैचमेंट एरिया से ही आता है… इसी तरह नैनी झील में बारिश का पानी केवल 13% है और बाकी कैचमेंट एरिया से आता है 
चारधाम प्रोजेक्ट के तहत उत्तरकाशी से बड़कोट के बीच टनल बन रही है… गंगोत्री और यमुनोत्री से गंगा-यमुना के निकलने के बाद लाल घेरे वाला इलाका ही गंगा और यमुना का कैचमेंट एरिया है, जो इन नदियों को पूरे साल पानी उपलब्ध कराता है..सिलक्यारा में जहां टनल बन रही है, वहां पर आज से करीब 60 साल पहले भी टनल बनाने के लिए सर्वे किया गया था… तब पानी का स्रोत मिलने की वजह से तब इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया था… इसके बाद यमुनोत्री के लिए रास्ता बनाया गया… बहरहाल ये जानते हुए भी ये कहना गलत होगा… कि हिमालय पर निर्माण संभव नहीं है… जब हम थ्रस्ट के पास इतना ज्यादा वजन वाला टिहरी डैम बना सकते हैं, तो ये टनल तो महज 4.5 किलोमीटर लंबी है… सावधानी बरतते हुए इसे आसानी से बनाया जा सकता था… टनल अक्सर अपने मुहाने पर ही धंसती है…ये हादसा टनल के मुहाने से 200 मीटर अंदर हुआ है… ऐसा होना आश्चर्यजनक है… मान लिया जाए कि प्रोजेक्ट की DPR बनाते समय यहां की जियोलॉजिकल स्टडी हुई होगी… लेकिन सवाल है कि काम कर रही एजेंसी और ठेकेदार ने इसे लेकर कितनी सावधानी बरती, इनकी जांच का क्या सिस्टम है?…