Joshimath Crisis: उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धसाव और पानी के रिसाव के बाद जिंदगी खतरे में है। लगातार राहत और बचाव का दौर चल रहा है। जोशीमठ के दौरे से लौटने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बड़ा बयान आया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अब सभी हिल स्टेशन की बियरिंग कैपासिटी का आंकलन कराया जाएगा और यदि कोई शहर अपनी बियरिंग कैपासिटी को पार कर गया है तो वहां निर्माण कार्यों पर व्यवस्थित तरीके से रोक लगाई जाएगी। जोशीमठ में घरों में दरारों और धंसती जमीन के पीछे एक वजह ये भी मानी जा रही है कि वहां अनियंत्रित निर्माण हुआ है। बेतरतीब और अनियोजित निर्माण का दंश आज जोशीमठ झेल रहा है।
आलम यह है कि अब यह पूरा इलाका जमींदोज होने की कगार पर है। ऐसे में मांग उठने लगी है कि समय रहते कुछ गंभीर कदम उठा लिए जाने चाहिए। वैज्ञानिकों को आशंका है कि बढ़ती आबादी, टूरिस्ट का दबाव और अनियंत्रित निर्माण से हिल स्टेशन नैनीताल, मसूरी समेत पहाड़ के कई और शहरों पर भी ये खतरा मंडरा सकता है। इसका संज्ञान लेते हुए सरकार ने अब बियरिंग कैपासिटी के आंकलन के साथ ही सभी हिल स्टेशन का ड्रेनेज और सीवर प्लान तैयार करने के भी निर्देश जारी कर दिए हैं। रंजीत सिन्हा, सचिव, आपदा प्रबंधन इस बात की पुष्टि की है।
जोशीमठ भू-धंसाव और भू-स्खलन की जद में हैं और मुख्य तौर पर कारण अनियोजित निर्माण ही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि देर से ही सही, जोशीमठ से सबक जरूर लिया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में किसी और शहर को ये दिन न देखना पड़े। लूज मलबे और बोल्डर के ढेर पर बसा जोशीमठ में परियोजनाओं के निर्माण, अंधाधुंध होटल, भवनों के अनियोजित निर्माण से ये शहर अपनी बियरिंग कैपासिटी को पार कर गया और उसने शहर को बरबादी के कगार पर ला खड़ा कर दिया। भू-गर्भ विज्ञानी एसपी सती का कहना है कि पहाड़ के कस्बे इसी तरह टाइम बॉम बने बैठे हैं। लिहाजा, अब समय आ गया है कि पहाड़ में विकास के लिए पूरे अध्ययन के साथ एक समग्र नीति बनाई जानी चाहिए।