सियासी जानकारों का मानना है कि पिछले दो-तीन दिन से नई दिल्ली में डेरा जमाये हरक को एहसास नहीं था कि भाजपा उन्हें बाहर का रास्ता दिखा देगी। अचानक पार्टी से निकाले जाने के बाद हरक अभी अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन मोड पर खड़े माने जा रहे हैं। लेकिन जो लोग उन्हें करीब से जानते हैं, उन्हें मालूम है कि सियासत के सबसे बुरे दौर में जब-जब हरक फंसे उन्होंने रुदाली दांव से हालात बदलने की कोशिश की। अभी तक तो उनका यह रुदाली दांव कभी खाली नहीं गया है।
2012 के विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है। कांग्रेस ने हरक सिंह को रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट पर उनके साढू भाई मातबर सिंह कंडारी के खिलाफ उतार दिया था। इस सीट पर कंडारी खासे कद्दावर माने जा रहे थे। लेकिन हरक ने चुनावी दांवपेंच के साथ ही निर्णायक वक्त में ऐसा रुदाली दांव चला की चुनाव पलट गया। उनका यह विलाप उस दौरान खूब चर्चाओं में रहा। चर्चित जैनी प्रकरण रहा हो या भाजपा सरकार पर राजनीतिक दबाव बनाने का अवसर, हरक अपनी छलछलाती आंखों से भावनाओं के तीर छोड़ने से नहीं चूके।