एक सैनिक शहीद होता है तो पूरा देश उसको नमन करता है। शहीद के माता-पिता और पत्नी को जवान की शहादत के लिए सम्मान दिया जाता है, Compensation Amount For Martyr लेकिन वीरता पुरस्कार और मुआवजा राशि को लेकर होने वाला झगड़ा परिवारों को समाज के सामने अपमान भरी स्थिति में लाकर खड़ा कर देता है। शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह की पत्नी और माता-पिता के बीच हाल ही में हुए विवाद के बाद यह बात और भी जोर-शोर से उठने लगी है। मामला तब उठा जब शहीद अंशुमान के माता-पिता ने मीडिया के सामने आकर बहू पर सरकार द्वारा दी गई सहायता राशि ले जाने और उन्हें कोई भी हिस्सा दिए बगैर घर छोड़ देने का आरोप लगाया। इस बहस पर संज्ञान लेते हुए उत्तराखंड सरकार ने बड़ी कवायद शुरू की है। सरकार की कवायद धरातल पर उतरी तो शहीदों के माता-पिता के लिए ऐसा करने वाली उत्तराखंड सरकार देश की पहली सरकार होगी।
वर्तमान में, राज्य सरकार सशस्त्र बलों के “निकटतम रिश्तेदार” नियम का पालन करती है, जो यह निर्धारित करती है कि यदि शहीद सैनिक विवाहित था तो मुआवजा पूरी तरह से उसके पति या पत्नी को दिया जाएगा। अविवाहित होने पर मुआवजा उसके माता-पिता या अन्य आश्रितों को दिया जाता है। सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने कहा, ‘इस मुद्दे पर कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों के साथ बैठक की गई है और मामले पर विस्तार से चर्चा की गई है।’ मंत्री गणेश जोशी ने कहा, ‘वर्तमान में, राज्य सरकार सशस्त्र बलों के मानदंडों के अनुसार निकटतम रिश्तेदार (पत्नी, अगर सैनिक शादीशुदा है) को 25 लाख रुपये की पेशकश करती है। हालांकि, हम उस राशि को पत्नी और माता-पिता के बीच विभाजित करने की योजना बना रहे हैं।’ इसके अलावा उन्होंने कहा कि एक और बैठक आयोजित करने के बाद इस मुद्दे पर जल्द ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।