हरिद्वार वैसे तो एक धर्म नगरी है, लेकिन धर्म से ज्यादा यहां पर अपराध पनप रहा है। वैसे हरिद्वार धर्म और अध्यात्म की राजधानी होनी चाहिए थी, लेकिन हरिद्वार में धड़ल्ले से हो रहे अपराध और यहां के गली मोहल्लों में बिकने वाले मादक पदार्थ यहां की मान और मर्यादा को जरूर कलंकित करने के साथ पुलिसिया रुआब पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। हर की पैड़ी जैसा पौराणिक और पवित्र स्थान होने के कारण इस पूरे इलाके को मांस मदिरा के लिए प्रतिबंधित किया गया है। लेकिन आलम यह है कि यहां पर न केवल शराब सुल्फा और गांजा धड़ल्ले से बिकता है, बल्कि हर की पैड़ी के आसपास के इलाकों में कई बार मांस बेचे जाने की भी पुष्टि हो चुकी है।
इस बात का खुलासा कुछ दिन पूर्व उस समय हुआ जब कनखल थाने से चंद कदमों की दूरी पर एक शराब माफिया ने दूसरे को गोली मार दी थी। गनीमत यह रही कि उसकी जान बच गई, लेकिन इस घटना ने पुलिस की कार्यशैली और इलाके में उसके रुतबे को जरूर सवालों के घेरे में ला दिया। सर्वाधिक संवेदनशील माने जाने वाले कोतवाली ज्वालापुर के इलाके में भी पुलिस की ढिलाई का यही हाल है। यहां पर दिनदहाड़े अराजक युवक गोलियां चलाने से भी परहेज नहीं करते। ऐसे ही एक ताजा मामले में नगर विधायक के घर से कुछ दूरी पर ही भाजपा के ही कुछ नेताओं के बीच हुई कहासुनी के बाद एक पक्ष ने दूसरे पक्ष पर गोलियां चला कर पूरे इलाके में सनसनी फैला दी थी। इस मामले में 16 लोगों को आरोपी बनाया गया था।
हरिद्वार के शहरी इलाकों को छोड़ दें तो रानीपुर, सिडकुल, बहादराबाद, कलियर, लक्सर, खानपुर, मंगलौर, भगवानपुर और झबरेड़ा आदि इलाकों में भी अपराधियों के हौसले शहरी इलाकों से कम बुलंद नहीं हैं। इनमें से कई इलाकों में जहां दिन में गोलीकांड हो जाता है, वहीं रात में भी अपराधी सड़कों पर बेखौफ घूमते हैं। यह बात अलग है कि कई घटनाओं के बाद पुलिस इन वारदातों को खोल अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचा देती है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर जिले में अपराधियों के हौसले इतने बुलंद क्यों होने दिए जाते हैं कि वह आपराधिक वारदातों को अंजाम दें। यदि समय रहते अपराधियों पर नकेल कसी जाए तो उनमें से किसी की भी हिम्मत अपराध को अंजाम देने की ना हो।
चेन लूट की 2, लूट की 6, गृह भेदन की 3, वाहन चोरी की 24, अन्य चोरी की 28 घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह आंकड़ा बीती एक अगस्त से पंद्रह अगस्त के बीच का है। 15 दिनों के बीच दर्ज की गई इन आपराधिक घटनाओं से इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे साल में यह आंकड़ा कितना बड़ा हो जाता होगा। आपराधिक घटना होने पर अब उन्हें फटकार तो पड़ती नहीं, उल्टा शाबाशी मिलती है। यह हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि कई थानों के प्रभारी अब आपराधिक घटना होने पर मुकदमा ही दर्ज नहीं करते। लेकिन उस पर वर्कआउट जरूर कर लेते हैं। आपराधिक घटना जैसे ही खुलती है तो यह प्रभारी अधिकारियों की गुड बुक में आने के लिए 1 दिन पहले घटना को हुआ बता कर तत्काल उसे खोल देते हैं। जिले में भले अपराधियों के हौसले बुलंद हों और लगातार आपराधिक घटनाएं भी बढ़ रही हों, लेकिन इसके बावजूद जिले में होने वाले अधिकतर बड़े मामले पुलिस एसओजी की मदद से खोलने में कामयाब रही है। चाहे लूट हो या फिर डकैती या फिर राहजनी, पुलिस ने वारदात के बाद आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने का काम जरूर किया है।