उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां चार धामों के अलावा कई देवी देवताओं का वास है। जो कि स्वयं में ही अद्भुत रहस्य, चमत्कार और इतिहास को समेटे हुए है। ऐसी ही एक देवी टिहरी जिले की दुध्याड़ी देवी। जो कि टिहरी के पौनाडा गांव के मंदिर में रहती हैं। खास बात ये है कि देवी 12 साल तक तपस्या करने के बाद भक्तों के दर्शन को बाहर निकली है। इसके बाद टिहरी और उत्तरकाशी के सैकड़ों गांव में कई दिनों तक पैदल रास्ता तय करती हैं। दुध्याड़ी देवी का उत्तरकाशी जिले में मायका बताया जाता है। दुध्याड़ी देवी का उत्तराखंड ही नहीं पूरे देशभर में मान्यता है। जो कि अपने मंदिर और उसमें बनी गुफा में 12 साल तक तपस्या पूरी करने के बाद दिसंबर माह में भक्तों को दर्शन देने को बाहर निकलती हैं। इस दौरान पौनाड़ा गांव में भव्य मेला आयोजित किया जाता है।
इस बार भी देवी की डोली बाहर निकलने के बाद अपनी यात्रा पर निकली है। मेले के बाद देवी क्षेत्र के बालगंगा, आगर, बासर पट्टी के गांव होते हुए करीब 37 दिन की पैदल यात्रा के बाद अपने मायके यानी उत्तरकाशी जिले में पहुंच गई है। उत्तरकाशी में प्रवेश करने पर देवी का स्थानीय देवी दुध्याड़ी की डोली, गुरु चौरन्गीनाथ, नर्सिंग देवता, जगदेऊ देवता, नागराजा देवता के निशान के साथ देवी के मायके ब्रह्मपुरी में भक्तों ने भव्य स्वागत किया। इस दौरान गांव में देश- विदेश से जुटे सैकड़ों की संख्या में भक्तों ने देवी की पूजा अर्चना, मंडाण लगाया और पिटाई लगाकर देवी को विदा किया। पंचायती चौक पर देवी के दर्शन को गाजणा पट्टी के कई गांव से भक्तों का सैलाब उमड़ा।
उत्तरकाशी के प्रवेश द्वार के ब्रह्मपुरी गांव पहुंचने बाद दुध्याड़ी देवी की डोली यात्रा गांव भर में भक्तों के दर्शन के लिए गई। गांवों में भ्रमण के बाद अब देवी की डोली मकर संक्रांति के पर्व पर उत्तरकाशी के मणिकर्णिका घाट पर माघ मेले में गंगा स्नान करेगी। स्थानीय लोगों ने बताया कि इस दौरान देवी की डोली अपने आप ही गंगा में उतरकर पार करती है। जो कि माता का चमत्कार है। इसके बाद देवी उत्तरकाशी बाजार में भक्तों को दर्शन देगी और उजेली होते हुए गाजणा पट्टी के दिखोली गांव, सिरी गांव होते हुए अपने मंदिर की तरफ बढ़ेगी। जहां देवी भगवात महायज्ञ के बाद पुनः देवी 12 साल के लिए मंदिर में विराजमान हो जाएगी। इसके बाद 12 साल के उपरांत मंदिर के गर्भगृह से भक्तों के दर्शन को बाहर आती है।