दोस्तो सावन का महीना चल रहा है, शिवभक्तों में उल्लास है। ये भी मान्यता है कि जब सावन माहिने में देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था और इस समुद्र मंथन से काल-कूट विष निकला था तो शिवजी ने संसार की रक्षा करने के लिए इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था और इस विषपान से उनका ताप काफी बढ़ गया था और इसी के बाद देवराज इंद्र ने जल वर्षा करके शिवजी के ताप को कम किया था। लेकिन यहां तो सावन के महिने में कावंड़ यात्रा में कावड़ियों का ताप इतना बढ़ रहा है, कि किसी चीज से कम नहीं हो रहा है। सवाल हो रहा है आस्था के नाम पर ये हो क्या रहा है। और दूसरा सवाल ये भी हो रहा है कि सिस्टम क्या कर रहा है। लोग पुलिस समेत सरकारों को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। वैसे दोस्तो हर साल सावन के महीने में कांवड़ियों को लेकर दो तरह की खबरें आती हैं और इन खबरों के साथ हमारा देश भी दो भागों में बंट जाता है।
एक तरफ राइट में वो लोग होते हैं, जो कांवड़ियों को बदनाम करने का आरोप लगाते हैं और ये कहते हैं कि छोटी मोटी घटनाओं को जानबूझकर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है ताकि हिन्दू धर्म को बदनाम किया जा सके। दूसरी तरफ लेफ्ट में वो लोग होते हैं, जो कांवड़ियों पर हिंसा और गुंडागर्दी का आरोप लगाते हैं और ये कहते हैं कि कांवड़ यात्रा पर रोक लगनी चाहिए। अब दोस्तो इन सब के बीच एक बात तो सोचने वाली है कि शिव के भक्त ऐसे तो नहीं होते। इन दोनों तरह की खबरों को लेकर हर साल राजनीति होती है और इस राजनीति के कारण बीच में जो असली मुद्दा है, उसे कोई नहीं देखता। ये मुद्दा है कि हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान हिंसा और मारपीट की घटनाएं क्यों होती हैं और कैसे इन घटनाओं को राजनीति की नहीं बल्कि एक समाधान की ज़रूरत है।
क्या इन तांडव मचाने वालों का इलाज सिर्फ ये ही हो सकता है, या फिर कुछ और भी है । दोस्तो अब जिस कांवड़ के बिना कांवड़ यात्रा पूरी नहीं हो सकती, अगर वही कांवड़ किसी वजह से खंडित हो जाए या अपवित्र हो जाए तो कांवड़ियों को ऐसा लगता है कि उनकी आस्था के साथ अपमान हुआ है और इस वजह से वो अपनी कांवड़ को खंडित करने वालों से लड़ने-झगड़ने लगते हैं। दोस्तों ज्यादातर कांवड़िये एक ग्रुप में गंगा जल लेने के लिए जाते हैं इसलिए जब झगड़ा और विवाद होता है तो उसमें एक से ज्यादा कांवड़िये शामिल हो जाते हैं और इस तरह मारपीट और तोड़फोड़ की घटनाएं ज्यादा होती हैं। यहां कांवड़ियो का तर्क ये होता है कि उनकी कांवड़ खंडित हुई है जबकि दूसरे पक्ष का तर्क ये होता है कि उन्होंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया और यहां दोनों पक्ष अपनी-अपनी जगह पर सही हैं, लेकिन दोस्तो आप आस्था लेकर कावंड़ को ला रहे हैं।
जरा सोचिए जब आप घर से कावंड निकलते हैं तो आपको क्या जरूरत है कि आप बड़े-बड़े लठ लेकर निकलते हैं आप हॉकी और ना जाने क्या क्या लेकर चलते हैं। वैसे किसी भी आस्था में मन साफ होना चाहिए। यहां लाठी-ड़ंडों की जरूरत नहीं होती है, लेकिन ये कावड़िए रूपी उद्रवी पहले से प्लांनिग कर चलते हैं ऐसा लगता है। असल में ये पूरी समस्या ट्रैफिक से जुड़ी है। भारत में हर साल लगभग 5 करोड़ हिन्दू कांवड़ यात्रा में शामिल होते हैं और जब ये कांवड़ लेने के लिए जाते हैं तो इन्हें उन्हीं सड़कों से पैदल या गाड़ियों में हरिद्वार और दूसरे स्थानों पर जाना होता है, जहां आम गाड़ियां भी गुजरती हैं। अब जब एक ही सड़क पर एक ही समय में लाखों कांवड़िये और लाखों गाड़ियां एक साथ गुज़र रही होती हैं तो ऐसी स्थिति में पूरी सम्भावना होती है कि कोई गाड़ी, ट्रक या मोटरसाइकिल, किसी कांवड़िये से टकरा जाए और इस हादसे में कांवड़िये की कांवड़ खंडित हो जाए।
जब ऐसी ही होता है और कोई कांवड़ खंडित हो जाती है और कांवड़ियों और आम राहगीरों के बीच झगड़ा बढ़ा जाता है और बात हिंसा और मारपीट तक पहुंच जाती है। अब ये कहा जा सकता है ये एक पक्ष की राय हो सकती है। लेकिन दूसरे पक्ष की बातों में दम दिखाई देता है। कांवड़िए हरिद्वार, गंगोत्री सहित अन्य पवित्र स्थानों से गंगा जल लेकर अपने गंतव्य तक पैदल यात्रा करते हैं, और इस जल को शिवलिंग पर चढ़ाते है। यह यात्रा आस्था, भक्ति और समर्पण का प्रतीक मानी जाती है। कांवड़ यात्रा को लेकर कई विवाद सामने आए हैं। कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि सरकार कांवड़ियों को ‘गुंडागर्दी’ का लाइसेंस दे रही है, जिसके कारण दुकानों पर अराजकता, और असामाजिक गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है।
साथ ही, कुछ हिंदू संगठनों पर सिस्टम की चुप्पी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। आपको बता दू, कि कांवड़ यात्रा का इतिहास प्राचीन है और इसे भगवान शिव की भक्ति से जोड़ा जाता है। सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु गंगा नदी से जल लेकर सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करते हैं। इस दौरान कांवड़िए रंग-बिरंगे कांवड़ लेकर चलते हैं। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को भी दर्शाती है। इस यात्रा को और अधिक व्यवस्थित और सुरक्षित बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। सरकार ने कांवड़ मार्गों पर सुरक्षा, स्वच्छता और सुविधाओं को बढ़ाने के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। हालांकि, कुछ लोग इस बात की आलोचना करते हैं कि इन इंतजामों के बावजूद, कांवड़ यात्रा के दौरान कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा अराजकता फैलाई जा रही है। कांवड़ियों द्वारा आए दिन दुकानों में तोड़फोड़, मारपीट और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है।
बता दें कि कावंडिया कावड़ लेकर रोड पर चलते है और किसी भी तरह की कोई भी बात होने पर तुरंत लड़ाई, झगड़ा तोड़ फोड़ करना शुरू कर देतें हैं, मौके पर पुलिस भी मौजूद रहती है, लेकिन पुलिस भी मूक दर्शक बनी रहती है। हाल के वर्षों की कांवड़ के दौरान कुछ घटनाओं ने सुर्खियां बटोरीं, और आम जनता ने कांवड़ियों पर गुंडागर्दी के आरोप लगाए। अब कहने वाले तो कहते हैं कि उन्हें गुंडागर्दी, लूटमार, गाड़ियों की तोड़फोड़, और ढाबों में तोड़फोड़ करने की खुली छूट दे रखी है और कांवड़ियों को धर्म के भेष में छुपे गुंडे करार दिया गया और सरकार औ सिस्टम को भी लोग जमकर आड़े हाथ ले रहे हैं अब सड़क पर सब दिखाई दे रहा है। कई जगह पर पुलिस के होते हुए ये सब हो रहा होता है। ताजुब की बात ये है कि ऐसी किसी भी घटना पर कोई गिरफ्तारी नहीं होती। या यूं कहें कोई कार्रवाई नहीं होती।
वहीं इन आरोपों के पीछे कुछ बड़ी और गंभीर घटनाएं भी सामने आई हैं। मसलन, कुछ जगहों पर कांवड़ियों द्वारा दुकानों पर तोड़फोड़ ढाबों पर विवाद, और स्थानीय लोगों के साथ झगड़े की खबरें आई हैं। खासकर, मांस और शराब की दुकानों को लेकर विवाद की खबरें सुर्खियों में रही हैं। जिसे कुछ लोग धार्मिक आधार पर पक्षपातपूर्ण मानते हैं। जिसको लेकर दावा किया गया कि यह नीति फूट डालो और राज करो की रणनीति का हिस्सा है। सरकार ने कांवड़ यात्रा को शांतिपूर्ण और व्यवस्थित बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। हवाई सर्वेक्षण किया और अधिकारियों को श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान सख्त नियम लागू किए हैं। जैसे कि कांवड़ को खंडित करने वालों के खिलाफ तीन साल तक की सजा का प्रावधान।
इसके अलावा, यात्रा मार्गों पर मांस की दुकानों को बंद करने और शराब की बिक्री पर नियंत्रण जैसे कदम उठाए गए हैं। ताकि यात्रा की पवित्रता बनी रहे, लेकिन इन सब के बावजूद तस्वीर डराने वाली है। आपको बता दें कि कांवड़ यात्रा और उससे जुड़े विवादों का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी गहरा है। एक ओर, योगी सरकार का दावा है कि वह कांवड़ यात्रा को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाकर धार्मिक भावनाओं का सम्मान कर रही है। दूसरी ओर, विपक्षी दल और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता इसे धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने और समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश के रूप में देखते हैं। वहीं कांवड़ यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जो लाखों लोगों की आस्था से जुड़ा है।