देहरादून: उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बुधवार को अचानक दिल्ली दौरे पर पहुंच गए। त्रिवेंद्र सिंह रावत का यह अचानक दौरा कई राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दे रहा है. त्रिवेंद्र ने बुधवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। इस मुलाकात की तस्वीर साझा करते हुए त्रिवेंद्र सिंह ने जो लिखा वह हलचल बढ़ाने वाला है। त्रिवेंद्र ने लिखा कि… ”आदरणीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा जी से नई दिल्ली में आत्मीय भेंट हुई। प्रदेश के समसामयिक विषयों पर चर्चा हुई। अपना अमूल्य समय प्रदान करने के लिए कोटिश: आभार अध्यक्ष जी। हालांकि इस दौरान त्रिवेंद्र रावत बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यालय भी पहुंचे। साथ ही बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और सांसद अनिल बलूनी से भी उनकी लंबी मुलाकात रही। त्रिवेंद्र सिंह रावत की इन मुलाकातों के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
त्रिवेंद्र ने जेपी नड्डा से मुलाकात के बाद जिस समसामयिक विषयों पर चर्चा की बात की है उसकी व्याख्या त्रिवेंद्र के विरोधी और राजनीतिक समर्थक दोनों ही अपनी-अपनी तरह से कर रहे हैं। त्रिवेंद्र समर्थकों का मानना है कि जल्द ही पार्टी उन्हें कोई बड़ा पद दे सकती है। जबकि विरोधी इसे किसी बड़ी राजनीतिक हलचल के तौर पर देख रहे हैं। राजनीतिक जानकार भी मान रहे हैं कि उत्तराखंड बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं है और त्रिवेंद्र का यह दौरा बेहद अहम है। यह माना जा रहा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत पार्टी के कुछ नेताओं से नाराज हैं, जो लगातार अपने समर्थकों के जरिए त्रिवेंद्र सिंह की साफ छवि को खराब करने की कोशिश में लगे हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक त्रिवेंद्र की सबसे बड़ी नाराजगी यूकेएसएससी घोटाले में शामिल हाकम सिंह को उनका करीबी बताए जाने को लेकर है।
वैसे तो हाकम सिंह की हर बीजेपी नेता के साथ तस्वीर है। लेकिन बीजेपी से जुड़े हुए ही कुछ लोग हाकम सिंह को त्रिवेंद्र का सबसे खास करार दे रहे हैं। फोटो भी हाकम सिंह और त्रिवेंद्र सिंह के साथ वाली ही वायरल की जा रही है। जबकि अन्य नेताओं के साथ फोटो को ज्यादा तूल नहीं दिया जा रहा है। यानी साफ है यूकेएसएससी घोटाले में किसी तरह से विरोधी त्रिवेंद्र सिंह रावत का नाम घसीटना चाहते हैं। हैरानी की बात यह है कि यह विरोधी कोई और नहीं बल्कि पार्टी के भीतर ही हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पार्टी आलाकमान के सामने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की है।
कुछ सियासी जानकार यह भी मानते हैं कि दरअसल जिस तरह पिछले साल बजट सत्र आहूत होने के दौरान अचानक बड़े आबरू होकर त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी गँवानी पड़ी, उसके बाद से वे लगातार अलग-थलग कर दिए गए। न उनको चुनाव लड़ाया गया और न ही उसके बाद राज्यसभा सीट या संगठन में कोई अहम पद देकर कोई अहम ज़िम्मेदारी सौंपी गई। जाहिर है इससे वो कहीं न कहीं आहत महसूस कर रहे हैं और भर्तियों पर बवाल के दौरान बढ़ चढ़कर बयानबाजी कर उन्होंने पार्टी नेतृत्व तक संदेश भेजने की कोशिश की है कि उनकी भी सुनी जाए। ज़ाहिर है टीएसआर चाहेंगे कि उनका राजनीतिक पुनर्वास किया जाए और यह हरिद्वार से लोकसभा टिकट देकर 2024 में किया जा सकता है या फिर वे संगठन से लंबे समय तक जुड़े रहे है और 2014 में यूपी के सह प्रभारी से लेकर झारखंड प्रभारी भी रह चुके हैं। लिहाजा अब जब हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज रहा तो उनको कोई ज़िम्मेदारी मिले।