जी हां दोस्तो वैसे अपनी देवभूमि में देवी-देवताओं के चमत्कार कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन जब देवता के पहुंचने का संकेत एक देव बकरा देता है, तो इस महा चमत्कार कहा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन दुनिया इस चमतकारी देव बकरे में जानती है। क्या आप जानते हैं। कैसे एक बकरा खुद चल कर बता देता है देवता का प्रवास स्थान, ये एक बार नहीं कई बार हो चुका है। आज में बताने के लिए आया हूं दोस्तो इस चमत्कारी देव बकरे के बारे में। जी हां दोस्तो उत्तराखंड से हिमाचल तक एक चमत्कारी घटना चर्चा में है। ‘देव बकरा’ नामक इस अद्भुत प्राणी ने स्थानीय लोगों को चकित कर दिया है और अब ये घटना लोगों के बीच रहस्य का रूप ले रही है। चालदा महासू महाराज के इस देव बकरे के व्यवहार और संकेत में कोई विशेष संदेश छिपा हुआ होता है। दोस्तो इसको लेकर मै बताने जा रहा हूं अपनी इस रिपोर्ट में चमत्कारी बकरे के रहस्य और उसके द्वारा दिए गए संकेत की पूरी कहानी। दोस्तो देवभूमि हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा से सटे जिला सिरमौर का शिलाई क्षेत्र चालदा महाराज जी की भक्ति में डूबा रहा, लोग बड़ी बेसब्री से उनका इंतजार कर रहे हैं। ये इतिहास में पहला मौका है जब देवता का आगमन हिमाचल में हो रहा है। उनके स्वागत के लिए लाखों की संख्या में लोग जुटे हैं। देवता 14 दिसंबर को शिलाई के पश्मी गांव में पहुंचेंगे, उनके आने से पहले ही गांव में 2 करोड़ का मंदिर बनकर तैयार हुआ है। इस में देवता एक साल तक रुकेंगे।
दोस्तो देव बकरे के चमत्कारी संकेत के बारे में बताउं उसे पहले ये जान लीजिए, कि चालदा मुख्य रूप से उत्तराखंड के जौनसार-बाबर क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश के सिरमौर और शिमला जिलों के कुछ हिस्सों में पूजे जाने वाले आराध्य देवता हैं। उनकी मुख्य विशेषता ये है कि वह एक “चलने वाले देवता” हैं, यानी उनका कोई स्थायी मंदिर नहीं है। वो समय-समय पर भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर (उत्तराखंड और हिमाचल के बीच) यात्रा करते हैं और जहां जाते हैं वहीं उनका नया मंदिर बन जाता है। दोस्तो देवता इससे पहले कभी हिमाचल नहीं आए थे। ये पहला मौका है जब वो पहली हिमाचल आएंगे. हिमाचल प्रवास के संकेत उन्होंने कुछ साल पहले दे दिए थे। लोग इसकी तैयारियों में जुटे थे. पश्मी मंदिर समिति के सदस्य नितिन चौहान सहित पश्मी गांव के ग्रामीणों ने बताया कि, जब चालदा महासू महाराज उत्तराखंड के मोहना में विराजमान थे, तभी एक दिन 2020 में लॉकडाउन के दौरान अचानक पश्मी गांव में एक भारी-भरकम, असाधारण रूप से सुंदर बकरा (घांडवा) दिखाई दिया। ग्रामीणों के अनुसार या बकरा न तो गांव का था, न ही किसी ने इसे पहले देखा था। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार दोस्तो जब कोई दैवीय बकरा किसी क्षेत्र में बार-बार लौटकर आता है, तो वह देवता के आगमन का संकेत माना जाता है। गांव वालों ने उस बकरे को दो बार पास के कोटी स्थित महासू महाराज मंदिर में छोड़ा, लेकिन हैरानी की बात ये रही कि हर बार वो बकरा कुछ ही समय बाद वापस पश्मी गांव लौट आया। तीसरी बार उसे उत्तराखंड की ओर टौंस नदी के पार छोड़ा गया, लेकिन इस बार भी वो सीधे पश्मी मंदिर की ओर आ पहुंचा। उसके इस रहस्यमयी व्यवहार ने ग्रामीणों को ये विश्वास दिला दिया कि ये कोई साधारण पशु नहीं, बल्कि देवता का भेजा हुआ देव-चिन्ह है।
मै आगे की कहानी बताउं उससे पहले आपको ये बता दूं कि मई 2023 से चालदा महासू महाराज दसऊ मंदिर में विराजमान रहे। उन्होंने यहां पर करीब 2 साल 10 महीने का समय बिताया। इससे पहले जौनसार के समाल्टा, कोटी-कनासर में भी प्रवास पर रहे थे। दसऊ में चालदा महाराज के दर्शन के लिए पिछले कई दिनों से ग्रामीणों की भीड़ देखी गई। क्योंकि लोगों को मालूम था कि अब महाराज हिमाचल के पश्मी गांव के लिए रवाना होंगे। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के पश्मी में प्रवास के लिए चालदा महासू महाराज दसऊ (उत्तराखंड) मंदिर से सिरमौर के लिए रवाना हो गए हैं। इसके चलते जहां सिरमौर में ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी है। वहीं, उत्तराखंड के जौनसार के दसऊ गांव और आसपास के दर्जनों गांव के ग्रामीणों के चेहरे पर मायूसी दिखी और रोते रोते लोगों ने अपने प्रिय देवता को ना चाहते हुए भी विदाई दी।
नियम के अनुसार चालदा महाराज विदा होने से पहले गांव की सभी महिलाओं से मिल कर जाते हैं, इसबार अधिक भीड होने के कारण वो बिना मिले चले गये फिर क्या आधे रास्ते से वापिस लौट कर महिलाओं के पास आना पडा,महाराज सबकी सुनते है ये दृश्य देखके आंखे नम हो, उधर दोस्तो हिमाचल में चालदा महासू महाराज की स्वागत की तैयारी है। यहां एक साल तक देवता प्रवास करने वाले हैं, लेकिन आपको बता दूं कि जो देव बकरा, जिसे “देव-चिन्ह” कहा जाता है, खास तौर पर उत्तराखंड और हिमाचल के जौनसार-बावर क्षेत्र में, छत्रधारी चालदा महासू महाराज जैसे देवताओं के आगमन का संकेत देता है; यह बकरा खुद चलकर अपनी मंजिल चुनता है, और जहां ये रुकता है, वहीं देवता भविष्य में प्रवास करते हैं, जिससे उस स्थान को देवता के आने की पूर्व सूचना मिल जाती है और ग्रामीण वहां तैयारियां शुरू कर देते हैं।
दोस्तो चालदा महासू महाराज उत्तराखंड के दसऊ से हिमाचल के पश्मी गांव तक पहली बार टौंस नदी पार करते हुए करीब 70 किलोमीटर की लंबी पैदल यात्रा कर रहे हैं। देवता 13 दिसंबर को हिमाचल सीमा पर मीनस पुल पार करेंगे और द्राबिल गांव में रात ठहरेंगे। 14 दिसंबर को वे पश्मी के नवनिर्मित महासू मंदिर में विधिवत विराजमान होंगे और ये सब तय किया देव बकरे ने दोस्तो चालदा महासू महाराज के हिमाचल प्रवास की पूरी कहानी और देव बकरे के चमत्कारी संकेत का रहस्य। उत्तराखंड से हिमाचल तक देवता की इस लंबी यात्रा ने न केवल भक्तों के चेहरों पर खुशी और आस्था बढ़ाई है, बल्कि इस बात का भी संदेश दिया है कि हमारी परंपरा और विश्वास आज भी जीवित हैं। अब 14 दिसंबर को पश्मी के नवनिर्मित महासू मंदिर में महाराज का विधिवत विराजमान होने का इंतजार है।