देहरादूनः उत्तराखंड राज्य गठन को 22 साल पूरे हो चुके हैं। लेकिन जिस परिकल्पना के साथ एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग की गई थी, उस परिकल्पना के अनुरूप अभी तक उत्तराखंड राज्य नहीं बन पाया है। उत्तराखंड राज्य ने 22 वर्षों की यात्रा में उपलब्धियों के कई मुकाम हासिल किए। जानकारों का मानना है कि कुदरत साथ देती तो तरक्की की मंजिलें और करीब होतीं। जब-जब उत्तराखंड ने विकास की रफ्तार पकड़ी आपदाओं ने कभी उसे पूरी तरह से थाम दिया तो कभी धीमा कर दिया। फिर भी आय के सीमित संसाधनों और कोरोना महामारी की चुनौती के बावजूद राज्य ने तरक्की के कई मुकाम हासिल किए।
उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां: राज्य गठन से लेकर अब तक दर्जनों प्राकृतिक आपदाओं ने विकास की गति को प्रभावित किया। 2013 की महाप्रलय ने तो राज्य अर्थव्यवस्था की कमर ही तोड़ दी। 14 हजार करोड़ से अधिक की परिसंपत्तियों का नुकसान हुआ। तत्कालीन केंद्र सरकार ने 7 हजार करोड़ रुपये से अधिक का विशेष आर्थिक पैकेज दिया। जैसे-तैसे राज्य खड़ा हुआ। आगे बढ़ा और रफ्तार पकड़ी तो कोविड-19 महामारी आ धमकी। कोरोना से राज्य की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान हुआ। राज्य की जीडीपी शून्य से नीचे चली गई। राज्य अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर्यटन कारोबार की कमर टूट गई। इन महामारी से उत्तराखंड अब उबर चुका है।
सड़कों का तेजी के साथ हुआ विकास: उत्तराखंड बनने के बाद सड़कों के विकास में तेजी आई। केंद्र और राज्य के सहयोग से बनी सड़कों की वजह से यातायात सुगम हुआ। दूरदराज के गांवों तक भी सड़क पहुंची। वर्तमान में तीस हजार किमी सड़कें बन चुकी हैं। केंद्र सरकार के ऑलवेदर रोड प्रोजेक्ट की वजह से चारधाम रूट की सड़कों का कायाकल्प हुआ है। इससे चारधाम यात्रा के साथ स्थानीय लोगों का सफर भी आसान हुआ। इसके अलावा दिल्ली से दून के लिए बन रहे एक्सप्रेसवे, भारतमाला और पर्वतमाला परियोजना से सड़क तथा रोपवे संपर्क और बेहतर होने जा रहा है।
अर्थव्यवस्था ने नई ऊंचाइयों को छुआ: उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था ने भी अलग राज्य बनने के बाद विकास किया। पूर्व में करीब 17 हजार करोड़ की अर्थव्यवस्था आज तीन लाख करोड़ रुपये पर पहुंचने वाली है। उत्तराखंड जब बना तो प्रति व्यक्ति आय 13,762 रुपये थी, जो अब 1.96 लाख रुपये के पार पहुंच गई है। हालांकि, इस अवधि में राज्य पर लगभग एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज भी चढ़ा। वेतन और पेंशन का बोझ बढ़ रहा है। जबकि अवस्थापना विकास के लिए पर्याप्त बजट नहीं है। हालांकि, केंद्रीय योजनाओं के जरिए राज्य को अवस्थापना विकास के लिए काफी बजट मिला है।
पलायन पर रोक नहीं, खाली हो रहे गांव: उत्तराखंड की परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न हैं। उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और मूलभूत सुविधाएं न होने की वजह से ही पहाड़ के ग्रामीण बेहतर जिंदगी और तरक्की के लिए पलायन कर रहे हैं। यानी जो मूलभूत सुविधाएं हैं वो पहाड़ों पर नही हैं। यही वजह है कि पिछले 10-12 सालों में करीब डेढ़ लाख लोग परमानेंट पहाड़ छोड़ चुके हैं। करीब 3 से 4 लाख लोग अस्थायी रूप से पहाड़ से मुंह मोड़ चुके हैं। यही वजह है कि सरकार का अब पूरा फोकस अपनी आय बढ़ाने पर है। सरकार इसके लिए पहली बार विशेषज्ञों की राय लेने जा रही है। अपर मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन कहते हैं, सरकार प्रयास कर रही है कि जनता पर बोझ डाले बगैर आय में बढ़ोतरी हो।