उत्तराखंड में मंत्रियों को जिलों का प्रभार दिए कई महीनों का वक्त बीत गया है, लेकिन प्रभारी मंत्रियों की अपने जिलों में जाने की दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है। जबकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और बीजेपी संगठन कई बार यह बात कहता रहा है कि मंत्री अपने जिलों में प्रवास करेंगे और जनता दरबार भी लगाएंगे, लेकिन न तो मंत्रियों का जनता प्रेम नजर आ रहा है और ना ही अपने प्रभारी जिलों में प्रवास नजर आ रहा है। सरकार जनता के द्वार, यह नारा बीजेपी सरकार का है, जिसके जरिए सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों से कनेक्ट होना चाहती है, लेकिन फिलहाल अभी उत्तराखंड सरकार में यह नजर नहीं आ रहा, मंत्री न तो जनता दरबार लगा रहे हैं, और ना ही अपने प्रभारी जिलों में जा रहे हैं
कुछ मंत्रियों को छोड़ दें तो कई मंत्री सिवाय जिला नियोजन की बैठक के बाद अपने जिलों में प्रवास नहीं कर पाए हैं। ऐसे में सरकार जनता के द्वार का यह नारा फेल नजर आ रहा है। उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार के दौरान जनता दरबार का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन कुछ दिन जनता दरबार लगने के बाद ही विवादों में घिर गया। खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता अध्यापिका उत्तरा बहुगुणा मामले में सुर्खियों में रहा। तो वही बीजेपी प्रदेश कार्यालय में मंत्री अरविंद पांडे के जनता दरबार में एक व्यापारी ने जहर खा लिया। इस तरह से उस वक्त भी जनता दरबार विवादों में ही रहा। उधर कांग्रेस को भी सरकार पर सवाल उठाने का मौका मिल गया। कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी सिर्फ सत्ता में आने के लिए जनता का उपयोग करती है और सरकार में आ जाने के बाद सब कुछ भूल जाती है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा ने कहा कि सांसदों को भी एक-एक गांव गोद लेने के लिए कहा गया था। लेकिन आज तक एक भी गांव का कायाकल्प नहीं हुआ। पहले बीजेपी संगठन अपने सांसदों को उन गांव में रात्रि प्रवास के लिए भी कहे और माहरा ने कहा कि जनता दरबार किसी पार्टी कार्यालय में नहीं बल्कि सरकारी दफ्तर में लगाना चाहिए ताकि लोगों की समस्या दूर हो सके। मंत्रियों को प्रभार इसलिए भी दिए जाते हैं ताकि जिलों में जाकर मंत्री लोगों की समस्याएं सुन सके, उनका समाधान कर सके। जिला योजना की बैठक के साथ-साथ तमाम विकास कार्यों पर फोकस हो सके, लेकिन मंत्रियों की दिलचस्पी अपने प्रभारी जिलों में नजर नहीं आ रही है और ना ही मंत्रियों का प्रेम जनता के प्रति नजर आ रहा है।