क्या आप जानते हैं उत्तराखंड का पूराना मर्ज एक बार फिर नासूर बन रहा है। वो दर्द फिर से एक बार बहुत तखलीफ दे रहा है, या देने वाला है। उत्तराखंड के कई ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग इस मूसीबत से दो चार हो रहे हैं। कई लोग अपने जान तक गंवा चुके हैं। कई घायल भी है, लेकिन इस पूरानी पेरेशानी के नए रूप का कोई समाधान नहीं दिखाई दे रहा है। लोग धीरे-धीरे शहरी या यूं कहें मैदानी इलाकों की ओर रूख कर गए। कई गांव तो पूरे पूरे खाली हो गए। तो कुछ गांवों में कुछ लोग बचे हुए हैं। अब जो लोग ग्रामीण इलाकों में बसे हैं, या कहूं की बचे हुए हुए हैं। उनके सीर मूसीबते कम नहीं हैं। ये लोग मौजूदा वक्त में कई तरह की परेशानियों से दो चार हो रहे हैं। गांव वालों की इन मूसीबतों के बारे में आपको बताएंगे साथ ही इसके समाधान के बारे में भी बात करूंगा कि कैसे गांव वालों की चिंताओं को कह किया जा सकता है, लेकिन इन सब के बीच बीच एक एसी मौत भी उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में रात दिन घूम रही है। जो सबसे ज्यादा चिंता को बढ़ाने का काम कर रही है। और हैरानी का बात तो ये है कि इस मौत को लेकर को भी गंभीर नहीं दिखा दे रहा है। ना शासन प्रशान की तरफ से कोई ऐसा ठोस कदम उठाया जा रहा है, और ना ग्रामीण उस तरह का हल्ला कर रहे हैं… जैसा की वो गांव में गुलदाड़ को भगाने को लेकर करते हैं। अगर करते तो शायद कुछ लोग जो अब तक इस गुलदाड़ की गांव में हो रही धमक को गंभीर नहीं ले रहे हैं। उनकी नींद टूटती और उत्तराखंड के गांव चैन से रात को सो पाते। दरअसल ऐसा पहली बार उत्तराखंड में नहीं हो रहा है। ये पुराना मर्ज है जो एक बार फिर उभर आया है।
पहाड़ों की शान समझे जाने वाले गुलदार (तेंदुए की एक प्रजाति) गांवों का रुख कर रही ही। इस बार उनकी मंजिल बकरियां और पहाड़ी कुत्ते नहीं हैं। वे तो बेहद आसान और सुस्त शिकार यानी इनसान की गर्दन पर किसी भी वक्त दांत गड़ाने की फिराक में हैं। इसीलिए तो गढ़वाल से लेकर कुमांउ के ग्रामीण इलाकों में ये गुलदाड़ डर का माहौल बनाए हुए हैं। गुलदाड़-इनसान का संघर्ष उत्तराखंड के घने जंगलों से उतरकर गांवों में चला आया है। आंकड़े इस बात की तस्दीक कहते हैं। साल दर साल तेदुएं के आतंक के मामले बढ़ते जा रहे हैं। मारे जाने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। घायलों को की संख्या बढ़ती जा रही है। उत्तराखंड ग्रामीण इलाकों के लोग ऐसा नहीं कि ये गांव में ही तेंदुओं की दमक ने डर का माहौल बनाया है। पहाड़ों और जंगलों से लगते मैदानी या कहें शहरी इलाके भी अछूते नहीं रहे हैं। अब सवाल ये है कि ये गुलदाड़ इतने आ कहां से गए। इनके आने की वजह क्या रही। दरअसल दगड़ियो। उत्तराखंड के गांवों में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है और खेती-बाड़ी भी कम हो गई है। ऐसे में तेंदुए जंगौ में न रहकर गांवों के आसपास ही बस गए हैं। 80 फीसदी गुलदार अपने खाने के लिए मवेशियों पर निर्भर हैं। यानी आदमी ने अगर तेंदुओं का प्राकृतिक आवास बदल दिया है तो तेंदुओं ने भी नए आवास के हिसाब से खुद को ढाल लिया है। वैसे भी बिल्ली प्रजाति के जंतुओं में तेंदुए को सबसे बड़ा छलावा माना जाता है। दगड़ियो गुलदार/तेंदुओं के इस बदले स्वभाव को लेकर आप क्या सोचते हैं।
ये आप भी कमेंट के जरिए बता सकते हैं। वे यहां के जीवन के अभ्यस्त हो चुके हैं। वे अब गांवों के पास ही रहते हैं और मवेशी उनका भोजन हैं। ऐसे में इनसानों पर भी हमले हो जाएं तो बहुत आश्चर्य की बात नहीं। लेकिन जब इसके समाधान की बात आती है तो तेंदुए के हमले को लेकर कि“देश में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल लाखों लोग मारे जाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि लोग हर दुर्घटना के बाद ड्राइवर की हत्या कर दें या गाडिय़ों में आग लगा दें या देश में ट्रैफिक बंद कर दिया जाए। वे याद दिलाते हैं कि यहां मृत्यु का तुरंत मुआवजा और वाहनों का बीमा जैसी सुविधा है। ऐसे में जानवर के हमले में लोगों की मौत के मामले में भी बीमा और तत्काल समुचित मुआवजे की सुविधा हो। अगर ये थोड़ा कुछ है भी तो उसे और बेहतर करने की जरूरत है, और यानी सावधानी के अलावा कोई चारा नहीं है। ऐसे हालात में उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके हों या शहर। ये देखना होगा कि इन खूंखार जंगली बिल्लियों को हमने ही अपने बहुत करीब आने के लिए मजबूर किया है। जैसे उन्होंने मनुष्य के दबदबे में जीना सीख लिया है, वैसे ही हमें भी उनके खौफ में रहना सीखना होगा। ये एक बड़ा सवाल भी है। या कुछ और इस मामले कुछ और हो सकता ह, और ये भी कह सकते हैं। अब ये यह खूबसूरत मौत अदृश्य प्रेत की तरह अब इनसानी बस्तियों का हिस्सा है, और लोगों में दहशत का माहौल है। रात में तो गांव के क्षेत्र में पहले भी तेंदुए आते रहे हैं, लेकिन अब आबादी वाले क्षेत्र में दिन में भी तेंदुए की धमक लोगों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। लोग क्षेत्र में पिंजरा लगाने की मांग करते भी दिखाई देते हैं। यकिन मानिए कई इलकों में लोग घरों से अपने काम के लिए निकलने से भी डर रहे हैं। आपके इलाके में क्या तेदुंए से डर का माहौल है।