उत्तराखंड में रेलवे सुरंग बनी बड़ा खतरा | Uttarakhand News | Rishikesh- Karanprayag | Rudraprayag

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जी हां दगड़ियो उत्तराखंड में रेलवे सुरंग बनी बड़ा खतरा। कैसे ऋषिकेश-कर्णप्रयाग हाईवे पर दरारों से दहशत फैल रही है। कैसे 12 परिवारों ने छोड़े घर? बताने आया हूं आपको रेलवे टनल या तबाही की सुरंग? जब विकास, विनाश बन जाए तो क्या करेगे हम सब ये खबर बेहद संवेदनशील है और अहम है दगड़ियो। Rishikesh-Karnprayag Rail Project जब सरकारें विकास की बात करती हैं, तो आम जनता आशा से देखती है — कि शायद अब उनके लिए बेहतर सड़कें होंगी, बेहतर सुविधाएं मिलेंगी, रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे लेकिन जब वही विकास उनके घरों की नींव हिला दे, दीवारें चटक जाएं, और बच्चे खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हो जाएं — तब सवाल उठना लाज़िमी है: क्या यही है “विकास”? दगड़ियो बताने आया हूं आपको घसिया महादेव का डरावना सच। खबर ये है कि उत्तराखंड के ऋषिकेश-कर्णप्रयाग-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर बन रही एक रेलवे सुरंग आज वहां के टीचर कॉलोनी के निवासियों के लिए खौफ का नाम बन चुकी है। दगड़ियो जहां कभी लोग चैन की नींद सोते थे, वहां अब रातभर जागकर बुजुर्गों और बच्चों की सुरक्षा की पहरेदारी हो रही है। घर, जो किसी का सपना होता है, अब लोगों के लिए एक खतरनाक मलबे में बदलते ढांचे बन चुके हैं।

दगड़ियो 12 परिवार घर छोड़ चुके हैं, दर्जनों किरायेदार पलायन कर चुके हैं और महिलाएं-बच्चे बारिश के मौसम में तिरपाल के नीचे जीवन बसर कर रहे हैं। क्या ये है 21वीं सदी के भारत का “विकास”? दीवारें चटक रहीं हैं, व्यवस्था सो रही है एसा लगता है। स्थानीय लोग लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि मकानों में आई दरारें चौड़ी होती जा रही हैं, फर्श फट रहे हैं, लेकिन रेलवे विकास निगम के पास न कोई योजना है, न संवेदनशीलता दगड़ियो यहां न कोई भूवैज्ञानिक टीम समय पर पहुंची। न कोई अधिकारी हालात का जायजा लेने आया, न कोई अस्थायी पुनर्वास की व्यवस्था की गई। दगड़ियो कहीं ऐसा तो नहीं कि विकास के नाम पर कुछ ठेकेदारों और अफसरों की जेबें भर रही हैं, और जनता की ज़िंदगी दांव पर लग रही है? वैसे अब जनता का धैर्य अब जवाब देने लगा है। दगड़ियो स्थानीय लोग अब सड़क पर उतरने की चेतावनी दे चुके हैं, उनका कहना है कि अगर जल्द पुनर्वास, राहत और मुआवजे की घोषणा नहीं हुई, तो सामूहिक आंदोलन होगा। दोस्तो और ये चेतावनी मात्र नहीं है — यह जनता का वह आक्रोश है, जो तब फूटता है जब सरकारें बहरी हो जाती हैं, और तंत्र अंधा रेलवे प्रोजेक्ट की कीमत पर बर्बाद होती ज़िंदगियाँ किसी को दिखाई नहीं दे रही होंगी। सवाल ये नहीं है कि सुरंग बननी चाहिए या नहीं — सवाल यह है कि क्या सुरंग बनाते समय स्थानीय निवासियों की सुरक्षा, पुनर्वास और हक़ों को दरकिनार कर दिया गया? क्या यह सब बिना पर्याप्त भूगर्भीय सर्वेक्षण के किया गया? रेलवे विकास निगम करोड़ों खर्च कर रहा है सुरंग पर, लेकिन जिन घरों की नींव इस निर्माण से दरक रही है, उनके लिए एक रात का आश्रय भी नहीं।

दोस्तो अगर आज नहीं चेते, तो कल ये लापरवाही जान ले लेगी बरसात का मौसम सिर पर है। पहाड़ों में भूस्खलन, जल रिसाव, दीवार गिरने की घटनाएं आम है। जिन घरों में दरारें पड़ चुकी हैं, वो कब ताश के पत्तों की तरह ढह जाएं — कोई नहीं जानता लेकिन सरकार अब भी रिपोर्ट आने की बाट जोह रही है क्या वह रिपोर्ट किसी अनहोनी के बाद आएगी? दगड़ियो मांगें क्या बल लोगों की — जो आज नहीं मानी गईं, तो कल बहुत देर हो जाएगी। तत्काल सभी प्रभावित परिवारों के लिए सुरक्षित अस्थायी पुनर्वास केंद्र बनें। मकानों की स्थिति का सरकारी स्तर पर सर्वेक्षण कर मुआवजा तय किया जाए। रेलवे विकास निगम के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्यवाही हो। स्थानीय लोगों की सहमति और सुरक्षा के बिना निर्माण कार्य रोका जाए। भूगर्भीय टीम की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। दगड़ियो विकास का मतलब सिर्फ सुरंग बनाना नहीं होता, लोगों की ज़िंदगी संवारना होता है। जो विकास अपने ही नागरिकों को बेदरदी से उजाड़ दे, उसे विकास नहीं, विनाश कहा जाना चाहिए। आज उत्तराखंड के टीचर कॉलोनी के लोग पूछ रहे हैं —क्या हमारी ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं? क्या सुरंग की दीवारें हमारे घरों से ज्यादा मजबूत हैं? अब जवाब सरकार को देना है।