उत्तराखंड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। राज्य का सैन्य इतिहास वीरता और पराक्रम के असंख्य किस्से खुद में समेटे हुए है। यहा के लोकगीतों में शूरवीरों की जिस वीर गाथाओं का जिक्र मिलता है, वे अब प्रदेश की सीमाओं में ही न सिमटकर देश-विदेश में फैल गई हैं। कारगिल युद्ध की वीरगाथा भी इस वीरभूमि के रणबांकुरों के बिना अधूरी है। राज्य के 75 सैनिकों ने इस युद्ध में देश रक्षा में अपने प्राण न्योछावर किए। आज से ठीक 24 साल पहले इसी दिन भारत ने पाकिस्तान को घुटने के बल ला दिया था। ये वो जंग थी जब भारत ने पाकिस्तान को उसकी औकात याद दिलाई। हमारे जवानों ने बता दिया कि कश्मीर पर कब्जा करना पाकिस्तान का अधूरा सपना रहेगा। पाकिस्तान को पता है कि भारत अब और कफन नहीं गिनेगा बल्कि घर में घुसकर मारेगा। ये तो हुई पाकिस्तान की बात लेकिन क्या आपको मालूम है कि आज यानी 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाया जाता है। वो दिन जिसे भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया। इन अक्षरों में स्याही हमारे बलिदानियों के रक्त की थी।
कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवानों ने देश रखा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इनमें 37 जवान ऐसे थे, जिन्हें युद्ध के बाद उनकी बहादुरी के महावीर चक्र, वीर चक्र के लेकर मैन इन डिस्पैच पुरस्कार से नवाजा गया। आजादी से से पहले हो या आजादी के बाद हुए युद्ध। देश के लिए शहादत देना उत्तराखंड के शूरवीरों की परंपरा रही है। कारगिल युद्ध में भी उत्तराखंड के वीरों ने हर मोर्चे पर अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए थे। रक्षा मामलों के जानकार बताते हैं कि युद्ध लड़ने में ही नहीं, बल्कि युद्ध की रणनीति तय करने और रणभूमि में फतह करने में भी उत्तराखंड के वीरों का कोई सानी नहीं है। आजादी के बाद से अब तक डेढ़ हजार से अधिक सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी शहादत दी है। किसी मां ने अपना बेटा खोया तो पत्नी ने पति और कई घर उजड़ गए। फिर भी न देशभक्ति का जज्बा कम हुआ और न ही दुश्मन को उखाड़ फेंकने का साहस। वर्तमान में भी सूबे के हजारों लाल सरहद की निगहबानी के लिए मुस्तैद हैं।