Dehradun: स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है। स्कूल खुले 20 दिन हो चुके हैं, लेकिन छात्र किताबों का इंतजार कर रहे हैं। सरकारी विद्यालयों छात्र स्कूल तो जा रहे हैं, लेकिन उनके पास नई किताबें ही नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार को काफी देरी से याद आई कि विद्यालयों में नए सत्र के लिए बच्चों को किताबों की भी जरूरत होगी। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यदि मंत्री, विधायकों और अफसरों के बच्चे भी इन सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे होते तो भी क्या सरकारी सिस्टम किताबों को लेकर इतना ही लापरवाह होता? वैसे तो यह मुद्दा पिछले कई दिनों से लगातार गर्म है। लेकिन नए शिक्षा सत्र के कई दिन बीत जाने के बाद भी स्कूलों में किताबें नहीं पहुंच पाई हैं। यह हालत तब है जब पिछले दिनों शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत जल्द से जल्द किताबें पहुंचने का दावा कर रहे थे। लेकिन दावे फिसड्डी साबित हुए और स्कूलों तक किताबें नहीं पहुंच पाईं।
खास बात यह सामने आई है कि विद्यालयों में किताबों के आने वाले दिनों में भी जल्द मुहैया ना होने की स्थिति को देखते हुए विभाग ने छात्र-छात्राओं के नए शिक्षा सत्र को आगे बढ़ाने के लिए एनसीईआरटी की वेबसाइट में मौजूद सिलेबस के आधार पर पढ़ाने के लिए शिक्षकों को निर्देश दिए हैं। उधर अधिकतर स्कूल ऐसे हैं, जहां इंटरनेट की कोई व्यवस्था नहीं है। ना ही कोई टीवी स्क्रीन की व्यवस्था की गई है। लिहाजा ऑनलाइन सिलेबस के आधार पर पढ़ाया जाना भी बेहद मुश्किल दिखाई दे रहा है। जहां तक सवाल इस सिलेबस को डाउनलोड कर अलग से संकलित कर पढ़ाने का है, तो कई दुर्गम क्षेत्र ऐसे हैं जहां यह सब करना भी काफी मुश्किल काम है और शिक्षक इस स्थिति में अलग से कोई सरदर्द लेंगे इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।