Teelu Rauteli is a brave woman of Uttarakhand | Uttarakhand News | Teelu Rauteli

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देवभूमि वीरों की भूमि, यहां के सपूत देश-दुनिया में उत्तराखंड के साथ साथ देश का नाम रोशन कर रहे हैं। सीमा सुरक्षा से लेकर तमाम सेवा देने वाले पदों पर आपको कोई ना कोई उत्तराखंडी दिख जाएगा। खासकर भातीय सेना में तो उत्तराखंडियों जड़े बहुत पूरानी हैं। Story of Teelu Rauteli कई मांओं को लाल, कई वीर देश की सेवा में अपनी शहादत भी दे चुके हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं वीरों को जन्म देने वाली ये हमारी भूमि वीरांगनाओं को भी जन्म देती है। कई वीरांगनाएं जो दुश्मनों से ऐसी लड़ी की अपनी जान दे गई। वीरों के बारे में बहुंतों ने लिखा बहुतों बहुत कुछ कहा है। हर रोज आप तक किसी ना किसी वीर की कहानी पहुंचती ही होगी। लेकिन कभी वीरागंनाओं की बात आप ने सुनी, वो भी उस वीरागना के बारे जिसका नाम तीलू रौतेली है, तो दगड़िओ आज में बताउंगा। कैसे तीलू रौतेली। उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई बन गई। दरअसल दगड़िओ उत्तराखंड वीरों ही नहीं वीरांगनाओं की धरती भी रही है। ऐसी ही एक वीरांगना हैं तीलू रौतेली। 15 से 20 वर्ष की आयु में सात युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवतह विश्व की एक मात्र वीरागना हैं। आठ अगस्त को इनका जन्मदिवस मनाया जाता है और इसी दिन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाता है। दगड़िओ नयार में तीलू की आदमकद मूर्ति आज भी उनकी याद दिलाती है उतराखंड वीरों ही नहीं वीरांगनाओं की धरती भी रही है। ऐसी ही एक वीरांगना हैं तीलू रौतेली। जिन्‍हें दुनिया में एक एकमात्र ऐसी वीरांगना कहा जाता है जिसने सात युद्ध लड़े। और दोस्त क्या आप अन्दाजा लगा सकतें है कि ये योद्धा। एक वीर। जब युद्ध किया करते होंगे तो कितनी उम्र होती होगी। 25, 30 या फिर उससे। लेकिन उत्तराखंड की इस वीरांगना ने महज 15 से 20 साल की उम्र में सात युद्ध लड़े और युद्ध लड़ने वाली तीलू रौतेली संभवत विश्व की एक मात्र वीरागना हैं। उन्‍होंने अदम्य शौर्य से अपना नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया। तीलू रौतेली के नाम पर उत्‍तराखंड में हर साल कुछ महिलाओं को पुरस्कृत भी किया जाता है। आठ अगस्त को इनका जन्मदिवस मनाया जाता है और इसी दिन महिलाओं को सम्‍मानित किया जाता है।

तीलू का नाम तिलोत्तमा देवी था। तीलू रौतेली का जन्म 8 अगस्त 1661 को ग्राम गुराड़, चौंदकोट (गढ़वाल) में हुआ। भूप सिंह (गोर्ला)रावत और मैणावती रानी के घर में हुआ। तीलू के दो भाई भगतु और पत्वा थे। 15 साल की उम्र में तीलू की सगाई हो गई। 15 साल की उम्र में तीलू ने घुड़सवारी और। तलवारबाजी सीख ली थी। उनके गुरु शिबू पोखरियाल थे। दरअसल तीलू रौतेली नहीं उनका पूरा परिवार वीर रहा। तीलू के पिता भूप सिंह, दो भाई और मंगेतर भी हुए शहीद। जी हां यह तब की बात है जब गढ़ नरेश और कत्यूरी प्रतिद्वंदी थे। कत्यूरी नरेश धामदेव ने जब खैरागढ़ पर आक्रमण किया तो गढ़ नरेश मानशाह ने खैरागढ़ की रक्षा की जिम्मेदारी तीलू के पिता भूप सिंह को सौंपी और खुद चांदपुर गढ़ी में आ गए। भूप सिंह ने डटकर आक्रमणकारियों का मुकाबला किया, लेकिन युद्ध में वह अपने दोनों बेटों और तीलू के मंगेतर के साथ वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हो गए..इन सभी घटनाओं से अंजान तीलू कौथिग में जाने की जिद करने लगी तो मां ने उससे भाइयों की मौत का बदला लेने को कहा मां के कटु वचनों को सुनकर उसने कत्‍यूरियों से बदला लेने और खैरागढ़ सहित अपने समीपवर्ती क्षेत्रों को मुक्त कराने का संकल्‍प किया। सैनिकों, बिंदुली नाम की घोड़ी और अपनी दो प्रमुख सहेलियों बेल्लु और देवली को साथ लेकर तीलू युद्धभूमि में उतरी। तीलू रौतेली को गोरिल्ला छापामार युद्ध की रणकला महारथ था। इसी गोरिल्ला युद्ध के दम पर वह कत्यूरियों को हराते हुए आगे बढ़ती रही। पुरुष वेश में तीलू ने सबसे पहले खैरागढ़ को मुक्त कराया। फिर उमटागढ़ी और सल्ट को जीत कर भिलंग भौण की तरफ चल पड़ी। तीलू की दोनों अंगरक्षक सहेलियों को इस युद्ध में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। दोस्तो दिखिए ना जहां कुमाऊं में बेल्लू शहीद हुई उस स्थान का नाम बेलाघाट और देवली के शहीद स्थल को देघाट कहते हैं।

चौखुटिया तक गढ़ राज्य की सीमा निर्धारित करके तीलू अपने सैनिकों के साथ देघाट वापस लौट आई। कलिंका घाट में फिर उसका शत्रुओं से भीषण संग्राम हुआ। सराईखेत के युद्ध में तीलू ने कत्यूरी योद्धाओं को गाजर-मूली की तरह काट डाला और अपने पिता और भाइयों की मौत का बदला लिया। सराईखेत के युद्ध में उसकी घोड़ी बिंदुली भी शत्रुओं का शिकार हो गई। अंत में गढ़वाल से शत्रु का नामोनिशान ही मिट गया। जो बचे वे दासत्व स्वीकार कर यहीं के नगरिक बन गए। घर लौटते हुए नयार नदी तट पर तीलू पानी पीने को रूकि तभी शत्रु सैनिक रामू रजवार ने धोखे से तीलू पर तलवार का वार कर दिया। तीलू रौतेली को आज भी याद किया जाता है। इस वीरांगना को आज भी याद किया जाता है। जहां तोड़ा दम वहां भी उनकी याद में उनके चिंह आज भी साफ दिखाई देते हैं। नयार में तीलू की आदमकद मूर्ति आज भी उस वीरागना की याद दिलाती है। आज भी उनकी याद में काडा ग्राम व बीरोंखाल क्षेत्र के निवासी हर वर्ष कौथिग (मेला) आयोजित करते हैं और ढोल-दमाऊ और निशान के साथ तीलू रौतेली की प्रतिमा का पूजन किया जाता है।