UTTARAKHAND CONGRESS: पहाड़ पॉलिटिक्स में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की अदावत कोई नई बात नहीं। हरदा और हरक चाहे विरोधी दलों में रहे हों या एक दल में गाहे-बगाहे एक-दूसरे को निशाने पर लेते रहे हैं। जब हरक सिंह पिछली भाजपा सरकर में मंत्री थे तब भी अक्सर उनके निशाने पर हरीश रावत आते रहे। हरदा भी लालकुआं में सियासी शिकस्त के बाद बेहद कमजोर स्थिति में हैं और प्रीतम कैंप की तरफ से मोर्चा लेकर हरक सिंह रावत इसी मौके का फायदा उठा लेना चाह रहे हैं। लेकिन पहाड़ पॉलिटिक्स में हार हो या जीत हरीश रावत को हलके में लेने की ग़लती हरक सिंह रावत को महँगी भी पड़ सकती है। आखिर 18 मार्च 2016 की बड़ी बगावत के बावजूद हरीश रावत हाईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट होते विधानसभा फ्लोर टेस्ट में ‘अपने छोटे भाई’ पर भारी पड़ चुके हैं।
लंबे समय से उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहने वाले हरक सिंह रावत के बारे में हर कोई जानता है। वह जब तक जिस भी पद पर रहे उन्होंने अपनी ही अलग राजनीति चलाई है। जब वह सत्ता में रहे तब भी और विपक्ष में रहे तब भी सरकारी ट्रीटमेंट हमेशा ही उन्हें मिलता रहा है। विपक्ष के नेता से कैबिनेट मंत्री जैसे कई पदों पर रहे हरक सिंह रावत उत्तराखंड की राजनीति में अपनी धमक रखते हैं। लिहाजा दोनों रावत राजनेताओं में नए सिरे से 2024 को लेकर जोर आजमाइश शुरू हो गई है। कांग्रेस के साथ-साथ दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव हारे हरदा को भी हरिद्वार से नए राजनीतिक जीवनदान का सहारा है, तो पुत्रवधू अनुकृति गुंसाई की हार के बाद टूटे हरक सिंह रावत भी राजनीतिक अखाड़े में एंट्री के लिए हरिद्वार में रास्ता तलाश रहे।
यही वजह है कि प्रीतम संग हरक सिंह हरिद्वार घूम आए तो हरदा भी दौड़े-दौड़े हरिद्वार पहुंच गए। अब हरदा ने हरक सिंह रावत की महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से गुपचुप मुलाकात को मुद्दा बनाकर ‘अपने अनुज’ की राजनीतिक निष्ठा को कटघरे में खड़ा कर दिया है। हरदा ने हरक पर करारा अटैक करते कहा कि कांग्रेस और समूचा विपक्ष भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र में लोकतंत्र की हत्या का साझीदार मान रहा है लेकिन हरक सिंह रावत भगतदा से मुलाकात कर लोकतंत्र बचाओ युद्ध कमजोर कर रहे हैं। हरदा ने बिना हरक का नाम लिए यह कहकर भी हमला बोला कि उनको लग रहा था वे भाजपा के लोकतंत्र विरोधी चेहरे और उसके सिद्धांतों से मोहभंग के बाद कांग्रेस में लौटे हैं लेकिन खुद हरक सिंह रावत कहते फिर रहे हैं कि उन्होंने भाजपा नहीं छोड़ी थी बल्कि उनको तो निकाल दिया गया और राजनीतिक विकल्पहीनता के चलते कांग्रेस में लौटना पड़ा।
वही हरदा बोले लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष के मध्य संवाद होना चाहिए। बहुत अच्छा लगता है जब हम एक-दूसरे से मिलते हैं, बातचीत करते हैं या सुझाव देते हैं, यहां तक की प्रशंसा और आलोचना भी लोकतंत्र को शक्ति देती है। मगर यदि कोई बैठक गुपचुप हो, बड़े छिपे अंदाज में हो और कोई सूंघने में माहिर और गिद्ध दृष्टि रखने वाले पत्रकार, राष्ट्रीय पत्र उसको प्रकाशित कर दे और उसको एक रहस्यमय भेंट के रूप में चित्रित करे और वह भेंट भी उस व्यक्ति के साथ हो जिसके ऊपर कांग्रेस पार्टी अधिकारिक रूप से महाराष्ट्र में लोकतंत्र की हत्या में हाथ बंटाने का आरोप लगा चुकी हो और ऐसे व्यक्ति से भेंट का खंडन न आए! समाचार पत्रों में कोई समाचार आ गया, इसलिए सत्य नहीं माना जा सकता है। मगर उस समाचार का खंडन भी आना चाहिए और पार्टी की अधिकारीक नीति के समर्थन में उस नेता का बयान भी आना चाहिए कि हां अमुक व्यक्ति ने महाराष्ट्र के अंदर लोकतंत्र की हत्या में साझेदारी की है। हमारा आदर व्यक्तिगत व भावनात्मक भी हो सकता है। लेकिन हमारे किसी कदम से, विपक्ष का लोकतंत्र बचाओ युद्ध कमजोर नहीं पड़ना चाहिए।