उत्तराखंड की इस महिला को चढ़ी खेती को आबाद करने की धुन | Uttarakhand News | Teelu Rauteli Award 2025

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जी हां दगड़ियो उत्तराखंड में जहां लोग खेती बाड़ी को छोड़ मैदान में बसते जा रहा है। महिलाएं भी अब पहाड़ में खेत में काम नहीं करना चाहती ऐसे में पहाड़ की एक महिला ऐसी भी जिसको चढ़ी खेती को आबाद करने की धुन और अब संघर्ष के लिए किया गया सम्मानित। Teelu Rauteli Award 2025 बताउंगा आपको उस महिला के बारे में जिसे खेतो को संवारने का जज्बा बढ़ गया होगा। दगड़ियो जिन महिलाओं को देहरादून में तीलू रौतेला पुरस्कार मिला वो सम्मान महिलाओं के संघर्ष को दर्शाता है। दगड़यो पहाड़ में ऐसी अनेक महिलाएं हैं, जो गांव में ही रहकर सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। इन्हीं में एक हैं, डुंगरी गांव की रोशमा, जिन्हें गांव के बंजर पड़े खेतों को आबाद करने की धुन सवार हुई। इस पहाड़ी महिला ने  स्वयं 2.50 हेक्टेयर में सब्जी उत्पादन कर आजीविका का मजबूत आधार तैयार कर रही हैं साथ ही पशुपालन कर आजीविका को विस्तार दे रही हैं इसके लिए सरकार ने उनका चयन तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए किया गया और अब सम्मान मिला है। दगड़ियो रोशमा की कहानी, पहाड़ की धरती से उगती उम्मीद की फसल बता रहा हूं।दगड़ियो उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कई महिलाएं अपने आत्मबल, मेहनत और लगन से बदलाव की ऐसी कहानियाँ लिख रही हैं, जो न सिर्फ अपने गांव, बल्कि पूरे राज्य की प्रेरणा बन रही हैं। ऐसी ही एक प्रेरक महिला हैं डुंगरी गांव की रोशमा, जिनकी मेहनत ने यह साबित कर दिया है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता पाई जा सकती है – चाहे वह कठिन पहाड़ी क्षेत्र हो या जीवन की परिस्थितियाँ।

दगड़ियो पहाड़ों में खेती हमेशा एक चुनौती रही है – दुर्गम रास्ते, पानी की कमी, और पलायन की बढ़ती समस्या लेकिन रोशमा ने इन सबका डटकर सामना किया। उन्होंने गांव में बंजर पड़े खेतों को उपजाऊ बनाने की ठानी और 2.50 हेक्टेयर भूमि पर जैविक सब्जी उत्पादन शुरू किया। आज उनकी मेहनत रंग ला रही है – वे न केवल अपने परिवार की आजीविका चला रही हैं, बल्कि आसपास की महिलाओं के लिए भी एक मिसाल बन गई हैं। दगड़ियो रोशम पत्तागोभी, फूलगोभी, मटर, तुरई, बीन्स, आलू, प्याज, शिमला मिर्च, लौकी, भिंडी और टमाटर जैसी कई मौसमी सब्जियों का उत्पादन करती हैं – और वह भी पूरी तरह जैविक विधि से साथ ही तिलहन, मसूर, पहाड़ी भट, गहत, सोयाबीन और राई जैसी पारंपरिक पहाड़ी फसलों की खेती भी करती हैं। इन फसलों से न केवल उनकी आमदनी में इजाफा हुआ है, बल्कि जैविक खेती के प्रति लोगों की जागरूकता भी बढ़ी है। दगड़ियो खेती तक सीमित न रहते हुए रोशमा ने बकरी पालन और मशरूम उत्पादन जैसे विकल्पों की ओर भी कदम बढ़ाए हैं। इससे उनकी आय के स्रोतों में विविधता आई है और उन्हें कठिन समय में भी आर्थिक स्थिरता मिलती है। ये बहुआयामी आजीविका मॉडल ग्रामीण महिलाओं के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे सीमित संसाधनों में भी आत्मनिर्भर बना जा सकता है। दगड़ियो इतना भर नहीं है कि रोशमा की कहानी खत्म हो जाएगी। रोशमा सिर्फ एक कुशल किसान ही नहीं हैं, बल्कि सामाजिक सरोकारों से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं। वह ‘मां लक्ष्मी’ और ‘मां बालमातेश्वरी मधुरम’ नामक दो स्वयं सहायता समूहों की सक्रिय सदस्य हैं। इन समूहों के माध्यम से वह अन्य महिलाओं को भी स्वरोजगार, बचत और प्रशिक्षण की दिशा में प्रेरित कर रही हैं।

इसके अलावा दोस्तो खेती और पशुपालन के साथ-साथ रोशमा का पर्यावरण के प्रति समर्पण भी सराहनीय है। उन्होंने क्षेत्र में 1,200 से अधिक पौधे रोपित किए हैं, जिनमें विभिन्न प्रजातियों के पौधे शामिल हैं। उनका उद्देश्य सिर्फ पेड़ लगाना नहीं, बल्कि उनका संरक्षण और देखरेख करना भी है – जो इस पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है। रोशमा का यह सफर अकेले तय नहीं हुआ है दगड़ियो उन्हें अपने परिवार, विशेष रूप से पति ध्रुव सिंह का पूरा समर्थन मिला, जो स्वयं एक उन्नत किसान हैं। रोशमा ने अपने मायके में खेती से जो अनुभव सीखा, उसे ससुराल में भी सफलता की कहानी में बदला। परिवार ने जब उनके विचारों को अपनाया और प्रोत्साहन दिया, तब उन्होंने गांव में एक नई ऊर्जा और जागरूकता का संचार किया। दगड़ियो उनकी इन सभी उपलब्धियों को राज्य सरकार ने भी सराहा है। महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें “तीलू रौतेली पुरस्कार” से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार उत्तराखंड की उन महिलाओं को दिया जाता है जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी समाज के लिए मिसाल कायम की है।