जी हां दोस्तो उत्तराखंड के एक बीजेपी विधायक के आपत्तिजनक बयान से एक बार फिर खलबली सियासत में दिखाई दे रही है। बीजेपी के विधायक ने पहले कहा गंगा का पानी रोक देंगे, अब कह दिया मैल कुछ नि करणा हरिद्वार मजी यूरेनियम डाल दिण गंगा जी मैं और तुमुल सबुल मर जाण क्या है इस बयान का मतलब, बताउंगा आपको। Mohd Shahzad MLA Laksar Vs Kishore Upadhyay दोस्तो अपने उत्तराखंड में जगब के नेता हैं और उनका गजब का ज्ञान है और 25 साल हो गए कुछ नहीं किया बल, आगे प्लान भी गजब का है। पहले गंगा के पानी को रोकर मैदानी इलाके को प्यास से मारने की बात करने वाले बीजेपी विधायक किशोर उपाध्याय का नया बयान देखिए जो सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। दोस्तो उत्तराखंड में राजनीतिक विवाद बढ़ इतना गया है कि एक विधायक ने सार्वजनिक रूप से गंगा में यूरेनियम डालने और लोगों को खतरे में डालने की धमकी दे दी ये किशोर उपाध्याय बीजेपी के के विधायक है। पहले कांग्रेस में हुआ करते थे, तो जनता को लगा कि अब पार्टी बदल कर बीजेपी में कुछ कमल खिलाएंगे यानि कमाल करेंगे, लेकिन ये विधायक सदन में कह देते हैं कि गंगा जी का पानी रोक देते हैं।
दोस्तो उत्तराखंड में राजनीति की दुनिया में हड़कंप मच गया था वो बयान जब एक मैदानी विधायक ने पहाड़ी विधायकों के कर दिया तगड़ा सवाल। अब ये बीजेपी के विधायक किशोर उपाध्याय का एक विवादित वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वे कहते नजर आ रहे हैं—तो त्वेन क्या करना? तो मै बोली-मैल कुछ नि करणा, हरिद्वार मजी यूरेनियम डाल दिण गांगा जी मीजि और तुमुल सबुल मर जाण, मतलब ये कि मां गंगा हरिद्वार में यूरेनियम डाल दूंगा और तुम सब मर जाओगे। दोस्तो एक विधायक ने कहा कि जब विधायक ही मैदानी क्षेत्रों में आ रहे हैं तो पलायन कैसे रुकेगा? लेकिन यहां शुरू हुई ये विवादित सियासत थमने का नाम ले रही है। दोस्तो अब तो सच में वो दिन आ गया जब “पहाड़ और मैदान” का झगड़ा सदन तक गूंजा और अब सदन के बाहर भी चर्चा है। आगे विधानसभा चुनाव है दोस्तो सवाल बड़ा है — क्या उत्तराखंड सिर्फ नाम का एक है, या दिल से भी एक है.. दोस्तो मैदानी नेता कहते हैं —अगर पहाड़ से इतना प्यार है, तो रहो ना वहीं! शहरों में मकान, बच्चों को बाहर पढ़ाना, व्यापार मैदान में और राजनीति में पहाड़ का ठेका — ये कैसा प्यार? वहीं पहाड़ी नेता पलटकर जवाब देते हैं —मैदान को जोड़ा सिर्फ टैक्स और वोट के लिए! सुविधाएँ, बजट, उद्योग — सब मैदान में, और पहाड़ के हिस्से आई हैं बस फाइलों की धूल अगर पहाड़ में रहना इतना आसान होता, तो तुम लोग एक दिन भी टिक पाते क्या वहाँ? मतलब जनता का पूरा फोकस अब इस सियासत पर कर दिया गया है, जिससे मिलना जुलना कुछ नहीं है आम जन को।
दोस्तो बहस का असली मुद्दा यही है — विकास का असंतुलन पहाड़ में न सड़कें हैं, न रोजगार, न अस्पताल; और मैदान वालों को लगता है कि पहाड़ी सिर्फ भावनाओं की राजनीति करते हैं। अब सवाल जनता का है —क्या मैदानियों को सिर्फ राजस्व मशीन बनाकर रखना न्याय है? क्या पहाड़ी को हर बार “भावनात्मक कार्ड” कहकर दबा देना सही है? राज्य के हर हिस्से को समान अधिकार, समान विकास और समान सम्मान मिले। वरना “उत्तराखंड” दो टुकड़ों में बंट जाएगा — एक “पहाड़ी” और एक “मैदानी..लेकिन जब बीजेपी विधायक किशोर उपाध्याय का ये बयान आता है। अब गंगा जी में कुछ भी डालने की बात करते हैं तो इस पर प्रतिक्रिया भी सख्त आती दिखाई दी हैं। किशोर उपाध्याय के मौजूदा सियासी बयानों पर स्वामी भारती कहते हैं वो तो किशोर हैं। जी हां किशोर का मतलब अभी समझदारी से बात करने में वक्त लगेगा, लेकिन इतना जरूर है दोस्तो मौजूदा वक्त की सियासत प्रदेश को दो हिस्सों में बाटने पर तुली है। दोस्तो अपेक्षाकृत छोटे आकार के बावजूद, उत्तराखंड ऐतिहासिक रूप से क्षेत्रीय विभाजन (कुमाऊं बनाम गढ़वाल और मैदान बनाम पहाड़ी) का गवाह रहा है, और यह क्षेत्रीय विभाजन रेखा राज्य में राजनीतिक और चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है। ऐसा माना जाता है कि जब भी सत्ता की स्थिति (कुमाऊँ बनाम गढ़वाल) बदलती है, तो इसका असर दूसरे क्षेत्रों के विकास पर पड़ता है। अगर मै दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों – कांग्रेस और बीजेपी – के नेतृत्व और राजनीति के केंद्र पर नज़र डालें, तो मै लगता हैं कि कांग्रेस का नेतृत्व मुख्यतः कुमाऊँ क्षेत्र से रहा है और कथित तौर पर इसी क्षेत्र के लिए काम करता है; जबकि बीजेपी के ज़्यादातर नेता गढ़वाल से हैं और ये इस क्षेत्र के लिए फ़ायदेमंद साबित होता है, लेकिन अब एक और क्षेत्र जोड़ दीजिए वो है मैदान।