जी हां दोस्तो क्या उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इस नए खतरे का, इस नई मुसीबत का कोई तोड़ है या फिर नहीं क्योंकि उत्तराखंड में बाघ गुलदार और भालू का ऐसा आंतक देखने को मिल रहा है Bear And Leopard Terror In Uttarakhand कि जहां ग्रामीण लोग दहशत में जीने को मजबूर हैं वहीं दूसरी ओर थाली बजाते स्कूल जा रहे बच्चे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढता देख, 800 डेंजर जोन चिन्हित किए गए हैं। दोस्तो इसी देश में कोरोना काल में कोरोना से लड़ने के लिए जब थालियां बजी थी, तो देश ने ही नहीं दुनिया ने चर्चा की थी। शायद थाली बजाने से कोरोना भाग गया हो, लेकिन पहाड़ों दिन दहाड़े जानवरों के साथ इंसानों बच्चों पर हमला कर रहे जंगली जनवार नहीं भाग रहे हैं और ना ही थाली बजाने की वो आवाज वन महकमे तक पहुंच रही है और ना ही सरकार तक। दोस्तो उत्तराखंड के गढ़वाल में वन्यजीवों का खतरा बढ़ा है, जिससे गांवों के लोग दहशत में हैं. बच्चे स्कूल जाने से डर रहे हैं और महिलाएं जंगल नहीं जा पा रही हैं। पौड़ी लेकिन देहरादून में स्थिति गंभीर है, जहां बच्चे थाली बजाते हुए स्कूल जा रहे हैं, लेकिन अब तक कोई समाधान होता नहीं दिखाई दिया। कोई ऐसी योजना है ही नहीं कि इन वन्य जीवों से इंसानों के साथ ही जानवरों की रक्षा हो सके। दोस्तो पहले आपने अपने उत्तराखंड में बाघ और तेदुएं की हलचल और हमला दोनों देखे और सुने होंगे लेकिन अब एक और नई मुसीबत पहाड़ चढ रही है वो भालू। दोस्तो पहले आपको पौड़ी से आई एक खबर दिखाता हूं उसके बाद बात होगी मानव-वन्यजीव संघर्ष की और उसके समाधान की।
दोस्तो पौड़ी के कोट ब्लॉक के देवार गांव में एक और हादसा हुआ, जहां आंगनबाड़ी से घर जा रहे 4 सास के मासूम पर गुलदार ने हमला किया। हमले में बच्चे के सिर पर घाव हुए हैं। घटना के बाद पूरे क्षेत्र में भय और दहशत का माहौल बना हुआ है और ग्रामीणों ने गुलदार के आतंक से निजात दिलाने की जोरदार मांग उठाई है।साथ ही घटना के बाद ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि पिछले कई महीनों से क्षेत्र में गुलदार की आवाजाही और हमलों की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जिससे पहाड़ में रहना जोखिम भरा होता जा रहा है। दोस्तो ये सिर्फ एक खबर नहीं है पूरे उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों से ऐसी तस्वीरें अब आम हो चली हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल में जानवरों का खौफ लोगों के दिलों में बना हुआ है। अब तो ये डर इस कदर बढ़ गया है कि बच्चे स्कूल जाने से भी डर रहे हैं। बच्चे स्कूल जा भी रहे हैं तो टिफिन नहीं ले जा रहे हैं। इस डर से कि कहीं बंदर उन पर खाना देखकर हमला न कर दें। इसके साथ ही वह थाली बजाते हुए स्कूल जाते हैं। महिलाएं भी अब जंगल में घास लेने जाने से डर रही हैं। दोस्तो बाघ, गुलदार, भालू और बंदरों की बढ़ती आवाजाही से पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक के डांगी गांव के लोग काफी दहशत में हैं। दरअसल, तीन बच्चों को स्कूल जाते समय रास्ते में एक भालू अपने दो शावकों के साथ दिखाई दिया। घटना के बाद से बच्चे लगातार दहशत में हैं और सुरक्षा के लिए ड्रम, नगाड़े और थालियां बजाते हुए स्कूल जा रहे हैं। दो उधर पौड़ी जिले के ही डोभाल-झ्रढांडरी क्षेत्र में गुलदार का खतरा बना हुआ है। ऐसे में महिलाएं घास लेने जंगल नहीं जा पा रही हैं। हालांकि, गढ़वाल वन प्रभाग ने पशुओं के लिए गांव-गांव तक चारा पहुंचाया है।
डीएफओ कहते हैं कि सुरक्षा सबसे पहले है। इसलिए चारा गांवों में ही पहुंचा दिया जा रहा है ताकि महिलाओं को जंगल न जाना पड़े। इसके साथ ही जिला प्रशासन और वन विभाग की ओर से वन्यजीवों से जुड़ी इमरजेंसी के लिए टोलफ्री नंबर 1926 जारी किया गया है। इसके अलावा राजधानी देहरादून के बाहरी क्षेत्रों जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश और आसपास में हाथियों की भी आवाजाही बढ़ी है। इससे लोगों में सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। दोस्तो सीधे सीधे कहूं तो उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता जा रहा है। इसने इंसानों के साथ ही वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों कि चिंता भी बढ़ा दी है। वन्यजीवों के इंसानों के साथ संघर्ष को लेकर ऐसे कई क्षेत्र हैं, जो डेंजर जोन में तब्दील हो गए हैं। हालांकि इसके पीछे काफी हद तक इंसान ही जिम्मेदार है लेकिन जिस तरह स्थितियां बदल रही हैं, उसके चलते राज्य के कई क्षेत्रों में मानव वन्य जीव संघर्ष की आशंकाएं बढ़ गई हैं और यह क्षेत्र संवेदनशील क्षेत्रों में गिने जाने लगे हैं। वन विभाग ने उत्तराखंड में करीब 800 ऐसे इलाके चिन्हित किए हैं, जिन्हें मानव वन्यजीव संघर्ष के लिहाज से डेंजर जोन माना जा सकता है। उत्तराखंड में मानव–वन्यजीव संघर्ष की समस्या समय के साथ लगातार गंभीर होती जा रही है।
पहाड़ों की भौगोलिक परिस्थितियों, मानव बस्तियों के तेजी से बढ़ते विस्तार और वनों के सिमटते दायरे ने वन्य जीवों को इंसानी बस्तियों के नजदीक लाकर खड़ा कर दिया है। यही वजह है कि राज्य के कई क्षेत्र अब संवेदनशील या कहें डेंजर जोन के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। इन डेंजर जोन में मनुष्यों पर हमले या शिकारी वन्यजीवों की गतिविधियों का खतरा लगातार बना हुआ है और दोस्तो इन दिनों भालुओं का आतंक सुर्खियों में जरूर है, लेकिन असलियत ये है कि प्रदेश के कई हिस्सों में सिर्फ भालू ही नहीं बल्कि गुलदार, बाघ और हाथी भी बड़े पैमाने पर मनुष्यों के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। चिंतित करने वाली बात ये है कि भालुओं के हमले भी काफी बढ़ गए हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि इस बढ़ते संघर्ष के पीछे इंसानों की गलतियां और वनों में बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप भी एक महत्वपूर्ण कारण है। अगर भालुओं की बात करें तो उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों से इनके हमले तेजी से बढ़े हैं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2025 में अब तक भालुओं ने 74 लोगों पर हमले किए हैं. इन हमलों में 5 लोगों ने जान गंवाई है। 69 लोग घायल हुए हैं। उत्तराखंड में भालुओं को लेकर खौफनाक जोन के रूप में कई क्षेत्र विकसित हुए हैं। इनमें – भालुओं को लेकर चार बड़े डेंजर जोन बदरीनाथ फॉरेस्ट डिवीजन, पौड़ी फॉरेस्ट डिवीजन, रुद्रप्रयाग फॉरेस्ट डिवीजन और नंदा देवी फॉरेस्ट डिवीजन चार बड़े डेंजर जोन के रूप में चिन्हित किए गए हैं। तो दोस्तो कई क्षेत्रों मे जहां बच्चे थाली बजा कर स्कूल जा रहे हैं लकता है उत्तराखंड के गांवों में खतरे की घंटी बज रही है। बाघ, गुलदार और भालू, ये जानवर अब लोगों के घरों तक पहुँचने लगे हैं। गांव के लोग दहशत में, स्कूल जाते बच्चे थाली बजाकर डर को दूर करने की कोशिश कर रहे है लेकिन सवाल यही है—क्या इस मूसीबत का कोई तोड़ है? और क्या स्थानीय प्रशासन इस संकट से निपटने में सफल होगा?