उत्तराखंड विधानसभा में राज्य बनने के बाद बनी अंतरिम सरकार के गठन से लेकर 2022 के विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले तक जमकर बैकडोर भर्तियों के नाम पर भ्रष्टाचार का खुला खेल खेला जाता रहा। 2001 से 2022 तक हुई तदर्थ नियुक्तियों में सभी पात्र एवं इच्छुक अभ्यर्थियों को समानता का अवसर प्रदान नहीं करके संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 का उल्लंघन किया गया है। तदर्थ नियुक्तियों को लेकर पिछले वर्ष गठित कोटिया समिति की अब सार्वजनिक की गई रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है। इस रिपोर्ट के आधार पर गत वर्ष सितंबर में वर्ष 2016 से 2021 तक की 227 व वर्ष 2003 की एक तदर्थ नियुक्ति निरस्त कर दी गई थी।
इसमें स्पष्ट उल्लेख किया है कि विधानसभा सचिवालय में वर्ष 2001 से 2022 तक की गई तदर्थ नियुक्तियों हेतु सभी पात्र एवं इच्छुक अभ्यर्थियों को समानता का अवसर प्रदान नहीं करके भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 तथा अनुच्छेद 16 का उल्लंघन किया गया है। इसमें 2001 में 53, 2002 में 28, वर्ष 2003 में 5, वर्ष 2004 में 18, वर्ष 2005 में 8, वर्ष 2006 में 21, वर्ष 2007 में 27 तथा वर्ष 2008 में 1, वर्ष 2013 में 01, वर्ष 2014 में 7, वर्ष 2017 में 149, वर्ष 2020 में 6 तथा वर्ष 2021 में 72 नियुक्तियां शामिल हैं। इसमें वर्ष 2009 से 2012, 2015, 2017 से 2019 तथा 2022 वर्षों में कोई तदर्थ नियुक्ति नहीं दर्शाई गयी हैं।
इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस सूची में उत्तर प्रदेश से आये कार्मिक, सेवानिवृत कार्मिक, जिनका निधन हो चुका है, त्याग पत्र देने वाले, मृतक आश्रित तथा उपनल/आउटसोर्सिंग के आधार पर रखे कार्मिक शामिल नहीं है। पूर्व आईएएस दिलीप कोटिया (अध्यक्ष), सुरेन्द्र सिंह रावत तथा अवनेन्द्र सिंह नयाल की समिति ने केवल नियुक्तियों की वैधता पर ही आख्या प्रस्तुत नहीं की है बल्कि मुकेश सिंघल की सचिव विधानसभा के रूप में प्रोन्नति की वैधता, सचिव के अतिरिक्त अन्य पदों पर प्रोन्नति की वैधता, विधानसभा सचिवालय में की गई नियुक्तियों के सेवा नियमावलियों में निर्धारित योग्यता के अनुरूप होने/न होने के सम्बन्ध में भी आख्या प्रस्तुत की है। इसके अतिरिक्त भविष्य में सुधार हेतु 15 सुझाव भी प्रस्ततु किये हैं।