उन्हें गुमान था वो ही बादशाह हैं… वो सर्वश्रेष्ठ हैं… सर्व गुण संपन्न सर्व मान्य हैं…. उन्हें जितनी चुनौती मिलेगी वो उतने ही मजबूत होंगे… अपने इसी अकड़ में वो डूबते ही चले गए… इस कदर डूबे… अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फंसकर रह गए… जिस अटूट विश्वास की बदौलत बीजेपी ने उन्हें उत्तराखंड की गद्दी नवाज़ी थी…. अब उसी विश्वास के सहारे उत्तराखंड की गद्दी से बेदखल करने का फैसला किया है… मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई तय है…
आखिर बीजेपी को अचानक ऐसा क्यों लगने लगा है कि उनके चेहरे पर अगले साल होने वाला चुनाव लड़ना पार्टी को डुबो सकता है? बावजूद इसके कि बीजेपी के पास PM नरेंद्र मोदी के नाम का एक ऐसा ट्रंपकार्ड है, जो पहाड़ों पर खूब चला है… बल्कि दौड़ा है…उत्तराखंड की सियासी फिजाओं में तैर रहे इन सवालों के जवाब दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय के गलियारों में ढूंढे जा रहे हैं…हालांकि, जवाब पहाड़ी राज्य में ही मौजूद हैं…आप थोड़ा टटोलना शुरू करेंगे, तो एक-एक कर इसका जवाब मिलता चला जाएगा…
उत्तराखंड के लोग PM मोदी से खुश हैं… उनकी सरकार से खुश हैं… खुश नहीं CM त्रिवेंद्र से… जिनकी कार्यशैली ने यहा के लोगों को खूब रुलाया… गुस्से की आग में जलाया… देवभूमि के मैदान से लेकर पहाड़ के माहौल में बेचैनी बढ़ी…. अब जबकि 1साल बाद फिर से चुनाव होने वाले हैं… तो BJP अलाकमान को शिद्दत से सूबे में नए चेहरे को लाने की जरूरत महसूस हुई….कुल मिलाकर cm त्रिवेंद्र पर अब bjp को भरोसा नहीं है….
त्रिवेंद्र सिंह रावत के ख़िलाफ़ उत्तराखंड के लोगों में गुस्सा किस कदर है… Corona काल में बेरोजगारी की मार….मुसीबतों पर मुसीबतों… यहां के लोगों ने बहुत कुछ झेला… उत्तराखंड के सुदूर सीमांत इलाके में असंतोष की झलक मिली…. और वो भी उस तबके में जिसे भगवा पार्टी का परंपरागत वोटबैंक माना जाता है…. लॉकडाउन के बाद के दिनों में उत्तराखंड में ये सवाल कई मर्तबा, कई लोगों से किया गया… जवाब कमोबेश एक जैसा ही मिलता रहा…मोदी और बीजेपी तो ठीक हैं, लेकिन सीएम त्रिवेंद्र ठीक नहीं हैं…
CM त्रिवेंद्र को हटाने का एक दूसरा भी कारण है… दरअसल 18 मार्च 2017 में बीजेपी ने यूपी और उत्तराखंड में प्रचंड जीत की होली खेली थी…. 70 में से 57 सीटों की भारी जीत और उम्मीदों के साथ रावत ने कुर्सी संभाली थी…. संयोग की बात थी कि उसके ही अगले दिन यूपी में उन योगी आदित्यनाथ ने भी में सीएम की कुर्सी संभाली, जो उनके ही गृह जनपद पौड़ी से आते हैं…
प्रदेश भले ही अलग थे, लेकिन पहले ही दिन से रावत और योगी के काम की तुलना होती रही और हो रही है… रावत पर निष्क्रिय सीएम का ठप्पा लगाने का एक काम यूपी में योगी की तेजी ने भी किया… गाहे-बगाहे यूपी में योगी की सख्त छवि और हर अच्छे काम की तुलना त्रिवेंद्र सिंह रावत से होती रही और वह अपनी अलग ही छवि में कैद होते रहे…
बहरहाल चुनाव से करीब-करीब एक साल पहले बीजेपी, राज्य में चेहरा बदलने के लिए अब जिस तरह से आतुर दिखाई दे रही है, उससे लगता है कि देर-सवेर सही, लेकिन उसने इसे भांप लिया है… अब बड़ा सवाल यह रहेगा कि बीजेपी अगर अपने पत्ते फेंट भी लेती है, तो इतने कम समय में क्या वह डैमेज कंट्रोल कर पाएगी? आखिरी बीजेपी के पास वह कौन सा करिश्माई बल्लेबाज है, जो सियासी पिच पर आखिर गेंद पर छक्का जड़ देगा?