देहरादून और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेजों में सरकार फिर से बांड पर सस्ती पढ़ाई की व्यवस्था कर रही है। हालांकि राज्य में लंबे समय लागू रही इस व्यवस्था का ज्यादा लाभ प्रदेश को नहीं मिला। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार,राज्य में अभी तक बांड से पढ़ाई करने वाले तकरीबन 1400 डॉक्टरों में से करीब 500 ने ही बांड की शर्तों के मुताबिक पहाड़ के अस्पतालों में काम किया। करीब 65% डॉक्टर किसी न किसी बहाने पहाड़ के अस्पतालों में जाने से बचते रहे।
इनमें से 300 डॉक्टर तो ऐसे हैं जिनकी विभाग के पास यह जानकारी भी नहीं है कि बांड के आधार पर पढ़ाई करने के बाद वे कहां चले गए। ऐसे में दोबारा लागू की जा रही बांड की व्यवस्था पर प्रश्न खड़े हो रहे हैं। जानकारों का मानना है कि राज्य के संसाधनों से सस्ती पढ़ाई करने वालों को पहाड़ के अस्पतालों में आवश्यक रूप से तैनाती दी जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता तो एक तरह से यह राज्य के संसाधनों की बर्बादी ही होगी।
बांड तोड़ने वालों पर कोई सख्ती नहीं: राज्य में बांड की व्यवस्था 2008 से लागू है। लेकिन बांड वाले डॉक्टरों पर बांड तोड़ने के मामले में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यदि सरकार ने बांड की शर्तों का कड़ाई से पालन कराया होता तो पहाड़ के हर अस्पताल में डॉक्टर तैनात होते। लेकिन बांड से पढ़ाई करने के बाद गायब डॉक्टरों पर कभी भी सख्त कार्रवाई नहीं की गई।
बांड की शर्तों को कड़ा किया जाए: स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यदि डॉक्टरों को पहाड़ पर तैनात करना है तो बांड की शर्तों को कड़ा करने के साथ ही उनका पालन भी सुनिश्चित किया जाए। यदि ऐसा नहीं होता तो युवक इस सुविधा का लाभ लेते रहेंगे और कोर्स पूरा होने के बाद पहाड़ के अस्पतालों से पहले की ही तरह गायब होते रहेंगे।
बांड के तहत मेडिकल की सस्ती पढ़ाई की सुविधा इसलिए दी जा रही है ताकि राज्य के युवा पैसे के अभाव में एमबीबीएस करने से वंचित न रहें। अब बांड की शर्तों को सख्त बनाया जाएगा ताकि सस्ती पढ़ाई का लाभ राज्य के अस्पतालों और लोगों को भी मिले। अधिकारियों को इसके निर्देश दिए गए हैं।
डॉ.धन सिंह रावत, स्वास्थ्य मंत्री