Uttarakhand Tunnel Rescue Operation : उत्तरकाशी टनल से निकाले गए सभी 41 मजदूर..बंटने लगीं मिठाइयां

Share

जिस रैट माइनर्स को कर दिया गया था बैन..आज उसी ने 41 मजदूरों की जान बचा ली !
न तो अमेरिका की ऑगर मशीन चली..और न ही आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक की तकनीकी काम आई !
भारत के ही रैट माइनर्स ने हाथों से बना दी सुरंग..और 41 मजदूरों को बाहर निकाल लाया !

 

जिस समय का इंतजार था..वो आखिरकार 17 दिनों के बाद आ ही गया…मजदूरों को अपनों से मिलने की घड़ी आ गई..मजदूरों के लिए नई जिंदगी की सुबह हो गई…17 दिनों के बाद मजदूरों को नई सांसे मिली हैं…और आखिरकार सभी 41 मजदूरों को निकाल लिया गया है…एक एक दिन मजदूरों के लिए भारी था…उन्हें निकलाने के लिए कई कोशिशें की जा रही थीं…विदेश से लेकर देश तक की मशीनें लगीं थीं…लेकिन इन मजदूरों को निकालने के पीछे जिसका हाथ है..उस सिस्टम को ही बैन कर दिया गया था..आखिरकार उस सिस्टम को फिर से मौका दिया गया..और जिस मिशन को बैन किया गया था…उस मिशन से 48 घंटे के भीतर ही मजदूरों तक रास्ता बना दिया…न तो अमेरिका का ऑगर मशीन काम आया…और नही आस्ट्रेलिया के भू वैज्ञानिक का दिमाग चला..और आखिरकार काम आया तो भारत को वो सिस्टम जिसने मजदूरों को नई जिंदगी दी है…सारे के सारे मिशन फेल होने की स्थिति में थे…हर घड़ी बस मुसीबत खड़ी थी..आसमान से भी और जमीन से भी रास्ता निकलना मुश्किल था…लेकिन अब 41 मजदूरों को निकाल लिया गया..उसके पीछे किसी का हाथ है तो रैट माईनर्स सिस्टम का हाथ है…जिस पर कोई भरोसा नहीं कर रहा था..लेकिन उस सिस्टम ने काम कर दिया..जिसकी कल्पना किसी को नहीं थी…

रविवार की शाम को रैट माईनर्स को बुलाया गया था…और मंगलवार को निकाल लिया गया…ऑगर मशीन के फेल होने के बाद रैट माइनर्स ने बाकी काम को पूरा करने का जिम्मा उठाया…. सुरंग में 17 दिन से फंसे मजदूरों को निकालने के लिए जहां देश-विदेश की बड़ी बड़ी मशीनें फेल होती नजर आ रही थीं…., वहां रैट माइनर्स ने कमाल दिखाया…और ब्रेक थ्रू कर दिया….ऑगर मशीन 48 मीटर की खुदाई करने के बाद सुरंग में फंस गई थी….. इसके बाद इसे काटकर बाहर निकाला गया….. इसके बाद रैट माइनर्स को बुलाया गया….. ये एक्सपर्ट मैन्युअल खुदाई शुरू की गई…46 मीटर के बाद से 60 मीटर तक जाना था…जिसे रैट माइनर्स ने कर दिखाया…और 2 दिन के भीतर ही 14 मीटर की खुदाई कर दी…न तो किसी मशीन से और न ही किसी टेक्निक से…बल्कि हाथों से मैनुअली खुदाई कर मजदूरों को बाहर निकाल लिया गया….रैट माईनर्स की इस कामयाबी के बाद लोग तरीफ करने लगे हैं…जमकर लोग इस रैट माईनर्स को जानने की कोशिश कर रहे हैं….आज हम अपनी रिपोर्ट में बताएंगे कि..रैट माईनर्स क्या होते हैं..जो ऐसे मिशन को सफल बना देते हैं..लेकिन उससे पहले आपको ये बता देते हैं..कि रैट माईनर्स को क्यों बैन कर दिया गया था….

2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मजदूरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था…..एनजीटी द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद, अवैध रूप से रैट-होल खनन जारी है. …मेघालय में हर साल कई मजदूरों को रैट होल माइनिंग के दौरान अपनी जान गंवानी पड़ती है…. यही वजह है कि इसे लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है…और अब यही मिशन कारगार साबित हुआ है….इस बचाव अभियान में सहायता करने के लिए सिल्क्यारा पहुंचे रैट माइनर्स में से एक झांसी के रहने वाले परसादी लोधी ने कहा कि… वह पाइपों के जरिए भीतर जाएंगे और मलबे को साफ करेंगे…..नके हाथों में कुदाल जैसे उपकरण होंगे….यह काफी गंभीर तरीका भी माना जाता रहा है… उन्होंने कहा,…मैं पिछले 10 सालों से दिल्ली और अहमदाबाद में यह काम कर रहा हूं…. लेकिन फंसे हुए लोगों को बचाने का काम मेरे लिए सबसे पहले होगा…हमारे लिए डरने का कोई कारण नहीं है….यह 800 मिमी चौड़ा पाइप है और हमने 600 मिमी छेद में काम किया है…. वहां करीब 12 मीटर तक मलबा है….अगर यह सिर्फ मिट्टी है, तो इसमें लगभग 24 घंटे लगेंगे….लेकिन अगर चट्टानें हैं, तो इसमें 32 घंटे या उससे ज्यादा समय लग सकता है…और यही हुआ…2 दिन के भीतर मिशन फाइनल हो गया…