Uttarakhand Tunnel Rescue Operation : हमारा पौधा जो बचा था मिल गया, इससे खुशी की बात क्या होगी…

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एक मजदूर के पिता की आंखों से निकली खुशी के आंसू… चेहरे पर चमकी चमक और दिल को छू लेने वाली बात कह दी
सिलक्यारा से बेटे के निकलने की मिली सूचना… पिता दौड़ते हुए सुरंग के पास पहुंचा
खुशी में छलकते आंसू की जुबानी पिता ने अपने एहसास को वाकिफ कराया… एक पौधा जो बचा था, उसके मिलने से अलग ही दुनिया में खो गया

इस मुस्कुराहट के आने में लम्हा लम्हा ना जाने कितना लम्हा बिता… एक एक पल काटे नहीं कट रही थी… एक एक जिक्र से दिल टूटता रहा… बस जेहन में उस एक पौधे जो बची थी… उसके बच जाने की एक अलग ही तरह की खुशी है… खुशी सादगी के साथ चमक चेहरे पर बिखेर रही है… खुशी अब आई है… तो दिल खुशी को खुद में लिपटाकर जोर जोर से रोना चाहता है… आखिर पौधा जो बच गया… ये हम यूं ही नहीं कह रहे ये दृश्य ही गवाह है… उत्तरकाशी टनल से आजाद होने वाले एक मजदूर का पिता है…. बेटे रूपी उस पौधे के सलामती के साथ आने के बाद क्या कहा उन्होंने उसके बारे में आपको बताएंगे…
लेकिन उससे पहले से उत्तरकाशी टनल में 17 दिनों तक फंसे 41 मजदूरों के जज्बे को सलाम कीजिए… ये कोई आम बात नहीं है… घुप्प अंधेरा में रहना इतना आसान नहीं है… सोचिए एक ऐसा कमरा जिसमें ना खिड़कियां हो… हवा के आने जाने का रास्ता ना हो… खाने की कोई व्यवस्था ना हो… सांसे लेने का अनुकूल माहौल ना हो… उसमें अगर रख दिया जाए… तो क्या कहेंगे बेचैनी तो होगी ही ना… अगर लिफ्ट ही बिल्डिंग में अटक जाए… 10 मिनट तक उसमें कैद रहे हैं… तो बंद डिब्बे में कैसा महसूस होगा… यकीन मानिए एक अलग ही तरह की घुटन महसूस होगी… ऐसा लगेगा दिल धड़कना बंद हो रहा है… घबराहट और बेचैनी सी महसूस होने लगेगी… लेकिन उत्तरकाशी की सुरंग में 41 मजदूर करीब 400 घंटे ऐसे ही कांटे… ये वही समझ रहे हैं… उनके परिजन ही समझ रहे होंगे…
दोपहर करीब 2 बजे के बाद जब से सुरंग के बाहर ऐंबुलेंस की कतार दिखाई देने लगी… तो जिसने भी इस दृश्य को देखा रोंगटे खड़े हो गए… दिलो दिमाग को तरह तरह के डर सताने लगे… महादेव और बौखनाग देवता से प्रार्थना करने लगे, सब सुरक्षित हो इसकी कामना करने लगे… 3 बजे के बाद सिलक्यारा सुरंग की ओर एक शख्स 41 माला ले जाते दिखा…ये उन 41 श्रमिकों के स्वागत के लिए था, जिन्हें निकाला जा रहा था… स्वागत तो होना ही चाहिए ये एक बड़ी लड़ाई में जीत का प्रमाण है… जितनी मेहनत बाहर में अलग अलग एजेंसियों ने की… तो अंदर फंसे वे 41 श्रमिकों ने भी अपना हौसला डिगने नहीं दिया…
क्या क्या ना परेशानी आयी… डर ने ना जाने कितनी बार परीक्षा ली… ना जाने कितनी बार उम्मीदें टूटी… कभी लगता कि मलबा हटाने में सफलता मिलने ही वाली है तो मशीन जवाब दे देती… ऑगर मशीन के पुर्जे टूट गए, इसके बाद सेना के मद्रास सैपर्स की टुकड़ी ने 24 घंटे में सीन पलट दिया… एक बार फिर साबित हो गया कि मशीन कभी भी इंसानी दिमाग की जगह नहीं ले पाएगी… राहत-बचाव कार्य में मुश्किले जब आई… तो सबकी बेचैनी और निराशा बढ़ी… ऐसे में परिजनों को सांत्वना देने और हौसला बनाए रखने के लिए पाइप से फंसे मजदूरों को कैमरे से दिखाया गया… बातचीत भी कराई गई… जब जब उम्मीदे टूटती, बिखरने लगती है… पता नहीं कही से एक उम्मीदे अपने रुतबे के साथ आती ढ़ाढस बंधाती… 41 मजदूरों की जीवटता को एक उदाहरण से ही समझ जाएंगे… 41 श्रमिकों में गब्बर सिंह नेगी भी हैं… जब उनके बेटे आकाश सिंह नेगी ने पिता से पाइप के जरिए बात की तो पिता ने तमाम मुसीबतों से घिरे होने के बावजूद बेटे को विश्वास दिलाया… टेंशन ना लेने की बात कही … टनल से मजदूरों के रेस्क्यू के दौरान बाहर पूजा और प्रार्थना चलती रही.. कभी टनल एक्सपर्ट ने स्थानीय देवता बौखनाग को प्रणाम हुआ… जो गलती हुई उसके लिए सबकी ओर से माफी मांगी… मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी ऐसा ही किया… बौखनाग देवता को तब भी प्रणाम किया… जब उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल पहली बार पहुंचे… और अब जबकि कामयाबी मिली… तो फिर से प्रणाम कर रहे हैं… ऐसा लग रहा है जैसे कह रहे हो अब ऐसी गलती नहीं होगी… टनल एक्सपर्ट अर्नाल्ड डिक्स ने भी टनल से मजदूरों के निकासी के रास्ते मिलने पर ऐसा ही किया… बौखनाग देवता को प्रणाम किया… ये सब सबकी मेहनत का परिणाम है कि इस पिता के चेहरे पर चमक आ गई…

एक पिता ने रोते हुए बेटे के लिए खुशी जाहिर की… साथ ही कहा कि हमारा पौधा जो बचा था, वो हमें वापस मिल जाएगा, इससे खुशी की बात क्या होगी.