जी हां दोस्तो उत्तराखंड में फिर से उबाल, लेकिन आप नहीं होना हेरान, क्योंकि यहां बीमारी पूरानी है और इलाज के नाम पर दकियानुसी सोच की कहानी है लेकिन दोस्तो क्यों अब उत्तराखंड के ग्रामीण अब आत्मदाह के लिए मजबूर हो गए। कैसे 42 दिनों से चल रहा आंदोलन फिर नहीं मिला आश्वशन आखिर क्यों। Uttarakhand villagers forced to self-immolate दोस्तो उत्तराखंड में ग्रामीणों का दर्द अब सबके सामने आया है। 42 दिनों से चल रहे आंदोलन के बीच कुछ लोग अब आत्मदाह तक के लिए मजबूर हो गए हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि लोग ये कदम उठाने के लिए मजबूर हो गए। दोस्तो टिहरी के घनसाली क्षेत्र में लचर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के खिलाफ आंदोलन लगातार उग्र होता जा रहा है। घनसाली बस अड्डे और पिलखी अस्पताल परिसर में दो स्थानों पर चल रहे प्रदर्शन को 40 से अधिक दिन हो चुके हैं, लेकिन अभी तक समाधान का कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है। दोस्तो आपको जानकर हेरानी होगी कि 3 प्रसव पीड़िताओं की मौत के बाद सरकार द्वारा पीएचसी पिलखी को सीएचसी में अपग्रेड करने की घोषणा किए जाने के बावजूद आंदोलनकारी अपनी मुख्य मांगों पर अड़े हुए हैं। आंदोलनकारियों की मांग है कि पिलखी अस्पताल को उप जिला चिकित्सालय (एसडीएच) का दर्जा दिए जाए। अपनी मांगों को लेकर सर्वदलीय स्वास्थ्य जन संघर्ष समिति के बैनर तले घनसाली बस अड्डे पर व्यापार मंडल अध्यक्ष कैलाश बडोनी व पूर्व विधायक भीम लाल आर्य के नेतृत्व में 37 दिनों से धरना जारी है।
दोस्तो प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार गोलमोल बयान देकर जनता को भ्रमित कर रही है और पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने में भी लापरवाही बरती जा रही है। पूर्व विधायक भीम लाल आर्य ने चेतावनी दी कि यदि जल्द मांगों पर उचित निर्णय नहीं लिया गया तो 11 दिसंबर को 11 आंदोलनकारी सामूहिक आत्मदाह जैसे चरम कदम उठाने को मजबूर होंगे। इधर दोस्तो पिलखी अस्पताल में घनसाली स्वास्थ्य जन संघर्ष मोर्चा के बैनर तले आंदोलन 42वें दिन भी जारी रहा। संघर्ष मोर्चा का कहना है कि स्थानीय विधायक की ओर से किए गए आश्वासन केवल कागजों तक सीमित हैं और उन्हें धरातल पर उतारने की कोई इच्छा नहीं दिख रही है। इसी के विरोध में संघर्ष मोर्चा ने अब ग्रामीण चौपाल आयोजित करने का निर्णय लिया है, जिसकी शुरुआत आज जमोलना गांव से कर दी गई है। वहीं दोस्तो आंदोलनकारियों का कहना है कि क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली के कारण कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, और अब वे किसी भी कीमत पर ठोस समाधान चाहते हैं। वहीं, स्थानीय जनता भी आंदोलनकारियों के समर्थन में आगे आ रही है, जिससे आंदोलन और अधिक व्यापक होता जा रहा है। “दोस्तो, उत्तराखंड के घनसाली क्षेत्र में 42 दिन से जारी स्वास्थ्य आंदोलन ने अब चरम रूप ले लिया है। प्रदर्शनकारी अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए हैं और चेतावनी दे चुके हैं कि यदि जल्द समाधान नहीं मिला तो 11 दिसंबर को वे चरम कदम उठा सकते हैं। सवाल ये है कि क्या सरकार समय रहते ठोस कदम उठाएगी और लोगों की जान बच पाएगी, या ग्रामीण अपनी लड़ाई के चरम रूप तक जाएंगे?