जी हां दोस्तो वो हिमालय की असली प्रहरी थी, चिपको आंदोलन की जननी थी। वो उत्तराखंड की गौरा देवी थी। दोस्तो क्या स्वर्गीण गौरा देवी को वो सम्मान मिलेगा जिसकी गूंज देश की संसद में दिखाई दी। क्या उठी गौरा देवी को भारत रत्न देनी की मांग किसने उठाई। बताउँगा आपको गौरा देवी के बारे में भी दोस्तो हिमालय की असली प्रहरी जिन महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर हमारी पहाड़ियों को बचाया। Gaura Devi will receive the Bharat Ratna क्या उन्हें अब मिलेगा देश का सबसे बड़ा सम्मान? स्वर्गीय गौरा देवी का नाम अब संसद की दीवारों तक गूंज रहा है। संसद में उठी मांग—क्या चिपको आंदोलन की नायिका को मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाएगा?क्या ये हिमालय की मातृशक्ति को वो सलाम होगा, जिसकी उसने हमेशा हक़दार रही? दगड़ियो इन दिनों संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यसभा और लोकसभा में गहमागहमी है. इसी कड़ी में उत्तराखंड के राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने चिपको आंदोलन की अग्रणी स्वर और प्रेरणा रही गौरा देवी को भारत रत्न देने की मांग की। दोस्तो उत्तराखंड के राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने राज्यसभा में चिपको आंदोलन का इतिहास बताते हुये गौरा देवी के बलिदान को याद किया। साथ ही उन्होंने गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग की है. राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने राज्यसभा में बताया गौरा देवी उत्तराखंड के सीमांत चमोली जोशीमठ विकासखंड के रैणी गांव की भोटिया जनजाति की ग्रामीण महिला थी। उन्होंने बताया गौरा देवी ने अपने जीवनकाल में पर्यावरण संरक्षण के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की।
चिपको आंदोलन हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर, पेड़ों की कटाई के खिलाफ मातृशक्ति का वृझों के आलिंगन से जुड़ा एक बड़ा आंदोलन था। इस आंदोलन को 51 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। दोस्तो उत्तराखंड के राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने बताया पर्यावरण बचाने के ये आंदोलन 26 मार्च 1973 को सीमांत क्षेत्र में शुरू हुआ था। उन्होंने कहा चिपको आंदोलन ने देश में पर्यावरण संरक्षण को बड़ा मुद्दा बनाया। ये आंदोलन हिमाचल, कर्नाटक, राजस्थान और बिहार राज्यों तक फैला। इस आंदोलन के परिणाणस्वरुप ही तत्कालीन भारत सरकार ने 15 वर्षों तक हिमालयी राज्यों में पेड़ कटान पर पूर्णरुप से प्रतिबंधित किया.चिपको आंदोलन गौरा देवी के संघर्षों की कहानी है। दोस्तो यहां जब गौरा देवी को मरोणउपरांत भारत रत्न की मांग देने की मांग हो रही है। आखिर क्या था चिपको आंदोलन साल 1973 में वन विभाग ने जोशीमठ ब्लॉक के रैणी गांव के नजदीक पेंग मुरेंडा जंगल को पेड़ कटान के लिए चुना। जिसके लिए ऋषिकेश निवासी ठेकेदार को 680 हेक्टेयर जंगल पौने पांच लाख रुपए में नीलामी में दिया गया। दोस्तो इस इलाके से रैणी और आसपास के गांव की महिलाएं लकड़ी लाती थी। ये उनकी आजीविका के साधन थे। जंगल में पेड़ कटान की खबर लगते ही सभी महिलाएं एकजुट हो गई। तब गांव की प्रधन गौरा देवी ने नेतृत्व में एक बड़ी बैठक हुई जिसमें जंगल और पेड़ों को बचाने का फैसला लिया गया। इसके लिए महिलाएं जंगल में पहुंची। वे पेड़ से लिपट गये। उन्होंने पेड़ कटान कटने वालों के ऐसे ही कई दिनों तक रोके रखा। दोस्तो इसके बाद में गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने ठेकेदार और उसके मजदूरों को जंगल से बाहर निकाल दिया. पेड़ों से चिपक कर इसे बचाने के कारण इसे चिपको आंदोलन कहा गया। इस आंदोलन की गूंज राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत पूरी दुनिया ने सुनी थी।
दोस्तो रैणी गांव में 50 साल पहले कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई, जिसे देखकर हर कोई हैरान था। महिलाओं का पेड़ों को सुरक्षित रखने के लिए किया गया ऐसा अनोखा विरोध दुनिया में पहली बार हुआ था। इस दौरान गांव की बिना पढ़ी लिखी महिलाएं वृक्षों के संरक्षण के लिए पेड़ों से लिपट गई थी। हजारों पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलने का विरोध करने वाली इन महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर इनका किसी भी हाल में संरक्षण करने का वचन ले लिया था। जिसे बाद में चिपको आंदोलन का नाम दिया गया। दोस्तो इतना भर नहीं था। पर्यावरण संरक्षण को लेकर 50 साल पहले एक ऐसा ऐतिहासिक आंदोलन खड़ा हुआ। जिसकी गूंज दिल्ली हुकूमत से लेकर दुनिया भर में सुनाई दी। उत्तराखंड की धरती पर आंदोलन की रणभेरी ने पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया और पहली बार पर्यावरण प्रेम का ऐसा ऐतिहासिक उदाहरण सेट हुआ जो दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था। नतीजतन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी फैसला वापस लेकर कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़े जो इतिहास में दर्ज हो गए और आज संसद से एक आवाज उठी की उसी गौरा देवी को भारतरत्न दिया जाय…तो दोस्तों यही थी कहानी गौरा देवी और चिपको आंदोलन की—एक ऐसी महिला और एक ऐसी मातृशक्ति, जिन्होंने अपने साहस और संकल्प से न केवल पहाड़ों को बचाया, बल्कि पूरे देश को पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ाया अब सवाल यही है—क्या संसद में उठी ये मांग, गौरा देवी को मरणोपरांत भारत रत्न दिलाएगी? क्या हिमालय की ये असली प्रहरी को वही सम्मान मिलेगा, जिसकी वह हमेशा हक़दार रही? दोस्तो इस कहानी में न केवल संघर्ष है, बल्कि प्रेरणा भी है। और ये प्रेरणा आने वाली पीढ़ियों को बताती रहेगी कि जब जनता और मातृशक्ति एकजुट हो, तो पहाड़ भी झुक जाते हैं।