उत्तराखंड में Tharu जनजाति की नई दुल्हन हाथ से नहीं, पैर से देती है पति को खाना | Uttarakhand News

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उत्तराखंड में एक ऐसी परपंरा जिसमें नई दुल्हन के सामने दुल्हा हो जाता खामोश ! दुल्हन नई हो,ससुराल आए…अपने हाथों से खाना बनाए… उस खाने को लेकर जब पति के पास जाए
पति अपनी दुल्हन को निहारे… तभी नई दुल्हन खाने की थाली को हाथ से ना देकर पैर से थाली को पति की ओर खिसकाए… तो पति क्या करेगा ?
उत्तराखंड की एक जनजाति की ऐसी है परंपरा… यहां नई दुल्‍हन हाथ से नहीं, पैर से देती है खाने की थाली… फिर पति कुछ ऐसा करता है… जिसे जानेंगे तो होंगे हैरान
इस जानजाति महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले हासिल होता है ऊंचा दर्जा… कई परिवारों में पुरुषों को रसोई घर में नहीं जाने की होती है अनुमति

उत्तराखंड में कई ऐसी चीजे है… जो अदभुत अद्वीतिय और अकल्पनीय की श्रेणी में आती है… कई ऐसी मान्यताएं-परंपराएं है… जो आज से नहीं सदियों से चली आ रही है… वैसे भी भारत के बारे में ये बात मशहूर है… यहां कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी यानी देश में हर एक कोस पर पानी और हर चार कोस पर वाणी बदल जाती है…. इसी तरह देश के अलग-अलग राज्‍यों में ही नहीं, बल्कि हर राज्‍य के अंदर भी शादी-ब्‍याह में अलग-अलग परंपराएं नजर आती हैं…. कई बार तो एक ही क्षेत्र में लोगों के संस्‍कार और रीति-रिवाज बिलकुल अलग होते हैं… इनमें कुछ रस्‍में काफी अजीब दिखाई देती हैं…. इन अलग-अलग रीति-रिवाजों से समुदायों की अपनी अलग पहचान बनती है…. ऐसा ही एक जनजातीय समुदाय ‘थारू’ है. इस जनजाति के लोग हिंदू धर्म को मानते हैं… वो हिंदुओं के सभी त्‍योहारों को भी मनाते हैं. इनकी शादियों में भी ज्‍यादा हिंदू परंपराओं को निभाया जाता है…
भारत में बिहार के चंपारण, उत्तराखंड के नैनीताल और ऊधम सिंह नगर और उत्‍तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में थारू समुदाय के लोग खूब पाए जाते हैं… थारू जनजाति उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में उधम सिंह नगर के खटीमा, किच्छा, नानकमत्ता, सितारगंज के 141 गांव में रहने वाली जनजाति है… वहीं, नेपाल की कुल आबादी में 6.6 फीसदी लोग थारू समुदाय के हैं. थारू समुदाय के लोग बिहार और नेपाल की सीमा पर पहाड़ों-नदियों व जंगलों से घिरे इलाकों में रहते हैं… पहाड़ों और जंगलो में बसने वाले थारुओं में वो संस्कृति और संस्कार आज भी देखने को मिलते हैं, जिनके लिए ये जनजाति जानी जाती है…
थारू जनजाति की शादियों में एक रस्‍म ऐसी है, जो इनको बाकी समुदायों से अलग करती है… थारू जनजाति मातृसत्‍तात्‍मक समुदाय है… यहां महिलाओं को पुरुषों से ऊंचा दर्जा दिया जाता है… थारू जनजाति में नई दुल्‍हन जब पहली बार रसोई में खाना बनाती है तो पति को हाथ के बजाय पैर से खिसकाकर थाली देती है… इसके बाद दुल्‍हा थाली को सिर माथे लगाकर खाना खाता है… माना जाता है कि थारू जनजाति राजपूत मूल की थी…. लेकिन, कुछ कारणों से वो थार रेगिस्तान को पार करके नेपाल चले गए… थारू जनजाति की शादियों में तिलक के बाद लड़का कटार और पगड़ी धारण करता है… लड़का जंगल में जाकर दही, अक्षत, सिंदूर से साखू के पेड़ की पूजा करते हैं… फिर साखू की लकड़ी और डाल लेकर आते हैं. उसी साखू की लकड़ी से शादी के दिन लावा भूना जाता है…. इनमें सगाई की रस्म को ‘अपना पराया’ कहा जाता है… समुदाय के कुछ लोग सगाई की रस्‍म को दिखनौरी भी कहते हैं… वहीं, विवाह के करीब 10-15 दिन पहले वर पक्ष के लोग लड़की के घर जाकर शादी की तारीख तय करते हैं. इसे ‘बात कट्टी’ कहा जाता है… वहीं, शादी के बाद गौने की रस्‍म को थारू जनजाति में ‘चाला’ कहा जाता है… ससुराल में पहली बार खाना बनाने पर दुल्‍हन पति को पैर से खिसकाकर थाली देती है… फिर दुल्‍हा खाना खाता है.
उत्‍तराखंड, उत्‍तर प्रदेश और बिहार में पाई जाने वाली थारू जनजाति में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले ऊंचा दर्जा हासिल होता है…. इसी कारण कई परिवारों में पुरुषों को रसोई घर में जाने की अनुमति भी नहीं होती है…. इस जनजाति में कन्‍या पक्ष को वर पक्ष की ओर से पैसे देकर और दुल्‍हन का अपहरण कर शादी करने की परंपरा भी है… हालांकि, अब वधूमूल्‍य और कन्‍याहरण विवाह कम ही होते हैं… विधवा-देवर विवाह को जनजाति में बाकायदा मान्यता मिली हुई है… थारू समाज के लोग परंपरा के अनुसार, भगवान शिव की वेदी बनाकर पूजा करते हैं. इसके अलावा माता काली की भी खूब पूजा करते हैं