उत्तराकाशी सुरंग में कैसे हुई ‘बजरंगबली’ की एंट्री ? | Uttarakhand tunnel collapse

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घड़ी मुश्किल से भरी थी… उम्मीद खत्म हो रही थी… रास्ता कोई मिल नहीं रहा था
उत्तरकाशी टनल की आखिरी गुत्थी सुलझाई जाए तो कैसे… यही सब सोच रहे थे…. समस्या के समाधान नहीं मिला
तभी गजब हुआ…. एक तरह से कहिए चमत्कार हुआ… क्योंकि 41 मजदूरों के लिए उत्तरकाशी सुरंग में पहाड़ हटाने ‘हनुमान’ गए…

जीहां हनुमान ही आए… क्योंकि वो नहीं आते तो ऐसा होता नहीं रास्ता खुलता नहीं… उम्मीदें टूट जाती… सारी मेहनत बेकार हो जाती… भगवान राम की आखिरी उम्मीद भी तो हनुमान ही बने थे… जब उनके छोटे भाई लक्ष्मण अचेत पड़े हुए थे… वो मूर्च्छित पड़े… सबने हाथ खड़े कर दिए थे… एक दूसरे को निहार रहे थे… श्रीराम को तो अपने बल पर ही भ्रम होने लगा था… उसी दौरान हनुमान ने मोर्चा संभाला… वैध ने जो कहा था… जिस संजीवनी बूटी को लाने का आदेश दिया था… उसे लेने के लिए निकल पड़े संजीवनी बूटी की पहचान नहीं थी तो पूरा पहाड़ ही लेकर आ गए… उत्तरकाशी टनल में फंसे 41 मजदूरों के लिए 22 नवंबर को हनुमान ही ही थे… जिसकी वजह से रास्ता बन पाया… अगर वो नहीं होते तो वैसा नहीं हो पाता जैसी उम्मीद की जा रही थी…
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन कभी भी खत्म हो सकता है… बताया जा रहा है कि ये ऑपरेशन अंतिम स्तर पर है और कभी भी मजदूरों को बाहर निकाला जा सकता है… मजदूरों को निकालने के लिए टनल के भीतर एक स्टील का 3 फीट चौड़ा पाइप ड्रिल करके डाला जा रहा है, इस पाइप के सहारे मजदूरों को एक-एक कर बाहर निकाला जाएगा… लेकिन 22 नवंबर की शाम रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान टनल के बाहर मौजूद भीड़ मजदूरों के बाहर निकलने का इंतजार कर रही थी, तभी अचानक कुछ ऐसा हुआ कि सबकी सांसें अटक गई… सबके सब दहशत में आ गए… दरअसल स्टील के जिस पाइप को टनल के भीतर डाला जा रहा था… उसके सामने लोहे की रोड आ गई… ड्रिल मशीन बंद हो गई… यहां से महज कुछ मीटर की दूरी पर ही मजदूर फंसे थे… इसके बाद NDRF के जवान आगे आए कुछ ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जिसकी जितनी भी तारीख की जाए कम है… जिसकने भी ये कहानी सुनी उसने यही कही… ये हनुमान की भूमिका में आ गए… इन सबके अंदर बजरंगबली ने एंट्री मारी है… ये तो संकटमोचन हैं….
दरअसल 22 नवंबर की रात करीब 7 बजे ड्रिल मशीन के आगे लोहे का ब्लॉकेज आ गया… इसके बाद रेस्क्यू ऑपरेशन रुक गया…टनल के बाहर बाहर खड़े लोगों की धड़कने फिर बढ़ गईं… इसके बाद NDRF के जवानों ने ड्रिल मशीन के आगे धातु की रोड हटाने का बेड़ा उठाया…. जवान पीठ पर गैस कटर टांगकर 3 फीट चौड़े पाइप में घुस गए… ये काम बेहद मुश्किल और खतरों से भरा हुआ था… गैस कटर से वो झुलस सकते थे… उनकी जिंदगी खतरे में भी थी… कुछ भी हो सकता था… बहुत ही भीषण परिस्थितियों के लिए उन्हें दिमागी तौर पर तैयार रहना था… उन्हें इतने ज्यादा तापमान में कम करना था, जहां सांस लेना तक मुश्किल था… 22 नवंबर की रात 10 बजे तक छोटे से चैनल में गैस कटर की लपटों की वजह से जवान डिहाइड्रेट हो गए, लेकिन वो रुके नहीं… तीन जवान एक-एक कर पाइप के अंदर गए… ये लोग 10-10 मिनट के लिए अंदर गए… जवानों ने मेटल ब्लॉकेज को वहां से हटाया और बाहर निकाला… लेकिन अभी भी परेशानी खत्म नहीं हुई थी… मेटल रॉड के साथ वहां एक जाली थी, जो 32मिलीमीटर लोहे की सरिया से बनी थी… NDRF के जवानों को ऐसे मिशन के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं मिली थी…रात के 1 बज गए… अब तक ये समझ आ गया था कि जवानों को मदद की जरूरत है… शुरुआत में जो महज एक लोहे की रोड लग रही थी, वो ठोस जाली थी… इसे मैन्युअल रूप से काटना बेहद कठिन साबित हुआ… इस मिशन को अंजाम देने के लिए दिल्ली की प्राइवेट कंपनी ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेज के एक्सपर्ट्स को बुलाने का फैसला हुआ, जो अमेरिकी बरमा मशीन के भी मालिक हैं… काफी मशक्कत के बाद एनडीएफ की बहादुरी से इस काम में कामयाबी मिली… कुल मिलाकर ये सबसे कठिन ऑपरेशन था… बाद में, सीएम पुष्कर सिंह धामी ने NDRF के जवान से मुलाकात की और कार्यक्रम स्थल पर संबोधित लोगों के सामने उनके नामों का उल्लेख करना सुनिश्चित किया… उन्होंने फंसे मजदूरों को प्रवीण और बलविंदर और और एनडीआरएफ के जवानों के बारे में बताया..