दुनिया में उत्तराखंड की महिलाओं की सुंदरता की क्यों हो रही चर्चा… एक प्राचीन आभूषण ने सुंदरता में चांद लगा दिया

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  • अमेरिका हो या युरोपीय देश… पुरी दुनिया में उत्तराखंड की महिलाओं की पहचान पर पड़ी नजर
  • जिसने भी देखा… उसने कहा… इसे अपनाना चाहिए… ये खुबसूरती में चार चांद लगाने वाला है
  • देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता की जान… दुनिया ने दे दिया प्रमाण… ये तो शानदार है !

    अब आप कहेंगे… ये कौन सी चीज है… देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता की जान है… उनकी पहचान है…. जब दुनिया ने देखा तो उसने यही कहा… ये तो अपने पास भी होना चाहिए…. अमेरिका हो या कनाडा… युरोपीय देश हो या ऑस्ट्रेलिया… एशिया हो या अफ्रीका… हर जगह उत्तराखंड की महिलाओं की जिंदगी का जो है… दिनचर्या है…. उनकी जिंदगी का जो है अहम हिस्सा है… उसकी मांग बढ़ती ही जा रही है… दुनिया उसे तवज्जों देने लगी है… अपनी जिंदगी में स्थान देने लगी है… अपनाने लगी है… अपना बनाने लगी है…. जीहां उत्तराखंड की महिलाओं की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करती है नथ… भारत के अलग-अलग राज्यों में नथ के अलग-अलग प्रकार हैं…. उत्तराखंड में गढ़वाली- कुमाऊनी दोनों तरह की नथ को खूब पसंद किया जाता है…. पहाड़ की महिलाओं की खूबसूरती की पहचान और संस्कृति की प्रतीक बनी नथ का इतिहास भी सभी को जानना जरूरी है… बताया जाता है कि टिहरी में राजा रजवाड़ों का राज्य था और तभी राजाओं की रानियां सोने की नथ पहनती थी… माना ये भी जाता है कि पुराने वक्त में जब परिवार में मुनाफा होता था तो महिला की नथ का वजन बढ़ाया जाता था…

  • आज स्टाइलिश और अलग-अलग डिजाइन में सोने चांदी जैसे आभूषणों के साथ-साथ अब आर्टिफिशियल नथ भी बाजार में मिल रही है…उत्तराखंड में महिलाओं को नथ पहने देखते आम बात है… शादी विवाह के अलावा पूजन कीर्तन के दौरान भी नथ पहनी जाती है…. सभी महिलाएं शुभ अवसरों पर अपने पारंपरिक परिधान के साथ-साथ जब नथ पहनते हैं तो बहुत अच्छा लगता है….उत्तराखंड में महिलाएं विवाह समारोह या उत्सवों पर नथ के साथ-साथ गुलबन्द और पौछि पहनती हैं…. देहरादून में ज्यादातर ग्राहक वेडिंग सीजन के दौरान नथ और गढ़वाली ज्वेलरी बनाने के लिए आते हैं…. वैसे तो ज्वैलर्स के पास गढ़वाली और कुमाऊंनी दोनों तरह की नथ होते है लेकिन उसमें भी कई तरह के डिजाइन उनके पास उपलब्ध है…. कई लोग खुद के डिजाइन भी उनसे तैयार करवाते हैं…. अब भले ही आज कई तरह के जेवर बाजार में उपलब्ध है लेकिन अपने ट्रेडिशनल कल्चर से आज भी लोग जुड़े हुए हैं… गढ़वाली और कुमाऊंनी जेवर में नथ की डिमांड बहुत रहती है….
    इस बात के प्रमाण तो नहीं है कि नथ का प्रचलन कब शुरू हुआ लेकिन कुछ किताबों के लेखों से पता चलता है कि अकबर काल में प्रचलन में आई थी और अगर उत्तराखंड की बात की जाए तो कई किताबों में उत्तराखंड के टिहरी जनपद के राजाओं की रानियों के नथ पहनने की बात पता चलती है…महिलाओं के लिए नथ सुहाग की निशानी मानी जाती है…. इसलिए उसे 16 सिंगार में शामिल किया जाता है… पहले पहाड़ की महिलाएं प्रतिदिन उसे सुबह पहनती और रात को उतारती थी… रोजाना इतनी वजनी नथ को पहनकर काम करना उनके लिए मुश्किल होता था, इसीलिए नथ का वजन और साइज छोटा होता गया… अब ये फैशन का एक लाजवाब सेंस बन गया है… जिसे दुनिया भी अपना रही है…