रेस्क्यू का हर तरीका अपनाया! ड्रिलिंग से लेकर हेवी मशीन… टूट रहा मजदूरों का हौसला, जानें 9 दिनों में क्या कुछ हुआ|
हमारा घर जमीन ले लो लेकिन बचा लो उन्हे… उत्तराखंड टनल दुर्घटना पर फूट रहा परिजनों का गुस्सा… 9 दिनों से सुरंग में जिंदगी की जंग लड़ रहे 41 मजदूर
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में टनल धंसने से 41 मजदूर 9 दिनों से यहां फंसे हुए हैं. प्रशासन 9 दिन यानी 200 घंटों से ज्यादा समय से इन्हें बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है. रेस्क्यू का हर दिन बीतने के बाद आज 9वां दिन है. मजदूरों और उनके परिवार वालों की उम्मीद भी अब टूटने लगी है…. 12 नवंबर 2023 को ये मजदूर 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग का एक हिस्सा बनाने के काम में लगे हुए थे… उत्तराखंड जिले में सिल्कयारा प्रवेश द्वार से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर मलबा ढह गया और इसके नीचे ये मजदूर फंस गए… यह टनल भारी यात्रा वाली हर मौसम में चलने वाली चारधाम सड़क का एक घटक है, जो एक प्रमुख परियोजना है जो कई तीर्थ स्थानों को जोड़ती है… मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है… हर तरह से कोशिश की जा रही है… ड्रिलिंग से लेकर हेवी मशीन सभी चीजों का इस्तेमाल किया गया है. इसके बावजूद मजदूर इस टनल में अभी तक फंसे हुए हैं… पीएम मोदी भी इस हादसे पर नजर बनाए हुए हैं…. वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी लगातार यहां हाल-चाल जानने के लिए पहुंच रहे हैं…
सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए 9 दिन हमारे-आपके सोचने से भी ज्यादा हैं… हर एक दिन खासकर रात मजदूरों पर भारी पड़ रहा है…. पाइप की मदद से सीमित चीजें ही टनल के अंदर तक पहुंचाई जा सकती हैं… ऐसे में खाना भी इनके पास पूरी तरह से नहीं पहुंच पा रहा है…. उत्तरकाशी के सिलक्यारा गांव में निर्माणाधीन सुरंग धंसने के बाद उसमें 41 मजदूरों के फंसे होने की घटना को नौ दिन बीत गए हैं, लेकिन एक भी मजदूर को सुरक्षित बाहर नहीं निकाला जा सका है… इसकी वजह से प्रशासन के प्रति मजदूरों के परिजनों की नाराजगी बढ़ रही है…इन फंसे हुए मजदूरों में 22 साल के पुष्कर सिंह ऐरी भी हैं…. पुष्कर की मां गंगा देवी ने जब से सुना है कि बेटा दुर्घटनाग्रस्त टनल में फंसा हुआ है, उसके बाद से उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है. उनके बड़े भाई विक्रम दुर्घटना स्थल पर हैं…
दुखी परिवार ने प्रशासन के अधिकारियों से गुहार लगाई है कि अगर जरूरी हो तो घर और जमीन सब ले लीजिए लेकिन बेटे को सुरक्षित वापस निकालिए…एक रिपोर्ट के मुताबिक पुष्कर के चाचा महेंद्र सिंह ने बताया है कि 2 महीने पहले ही भतीजा छीनीगोठ स्थित अपने पैतृक गांव आया था… उसने बताया था कि वह प्रोजेक्ट में मजदूर के तौर पर काम कर रहा है… परिवार के साथ उसकी आखिरी बातचीत दिवाली के दिन हुई थी, जिस दिन दुर्घटना हुई… श्रमिकों के परिजनों ने एक न्यूज को बताया है कि पाइप के जरिए फंसे हुए मजदूरों से बातचीत हो रही है, लेकिन उनकी आवाज कमजोर होती जा रही है, क्योंकि वो अंदर से टूट रहे हैं… वो कमजोर होते जा रहे हैं. इस वजह से परिवार का मनोबल भी टूट रहा है. इसकी वजह से इन मजदूरों और परिजनों में मायूसी छायी हुई है… एक रिपोर्ट की मानें तो इन मजदूरों को निकालने के लिए दिल्ली से लाई गई ऑगर मशीन ने 17 नवंबर शाम से काम करना बंद कर दिया है… इंदौर से एक नई मशीन लाई गई है… अब हॉरिजेंटल यानी सामने से ड्रिलिंग के बजाय वर्टिकल यानी ऊपर से छेद किया जा रहा है ताकि मलबे को आसानी से हटाया जा सके…
टनल के अंदर 70 मीटर में फैले मलबे में 24 मीटर छेद किया जा चुका है… हालांकि ये आधा भी नहीं है इसलिए दावा किया जा रहा है कि अभी भी कम से कम 4-5 दिनों का समय मजदूरों को बाहर निकालने के लिए लग सकता है… एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक सुरंग के अंदर फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित निकालने के लिए सुरंग के दाएं और बाएं हिस्से में अलग से सुरंग बनाई जा रही है ताकि मजदूरों को वहां से निकाला जा सके… इसके लिए ड्रिलिंग का काम शुरू हो गया है… सुरंग में फंसे मजदूरों को पाइप जरिए अंदर फंसे मजदूरों तक ऑक्सीजन के साथ ही पोषक फूड सप्लीमेंट, ओआरएस भेजे जा रहे हैं… एक रिपोर्ट के मुताबिक टनल बनाने के प्रोजेक्ट में फंसे मजदूरों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि दुर्घटना स्थल पर भारी संख्या में परिवार के सदस्यों की मौजूदगी के बावजूद उनके रहने खाने की कोई व्यवस्था प्रशासन की ओर से नहीं की गई है….
आपको पको बता दें कि दिवाली के दिन 12 नवंबरको निर्माणाधीन सुरंग भूस्खलन के बाद धंस गई थी,जिसमें 41 मजदूर फंस गए हैं… दुर्घटना के 9 दिन बीत जाने के बाद भी अत्यधिक भारी मशीनों से भी मलबे को नहीं हटाया जा सकता है जिसकी वजह से परिजनों में नाराजगी है… ये टनल महत्वाकांक्षी चारधाम परियोजना का हिस्सा है, जो बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री तक कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए एक नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पहल का हिस्सा है…