जी हा दोस्तो उत्तराखंड सरकार ने माननीय को दे दिया जोर का झटका धीरे से तो नाराज नेताओं ने बोल दिया धावा। सुविधाओँ में कटौती पर क्यों भड़के पूर्व विधायक। दोस्तो सरकारी सुविधाएँ किसे अच्छी नहीं लगती बल लेकिन इस पर अपनी उत्तराखंड की सरकार ने चुपके से कर दिया बड़ा खेल और पूर्व में मंत्री रही नेताओं को भनक तक नहीं लगी और जब लगी तो पहुंच गए सचिवालय। दोस्तो सरकार का ये वाला फैसला उत्तराखंड में पूर्व विधायकों के लिए बड़ा झटका! सरकार ने सचिवालय में मिलने वाली सुविधाओं में कटौती कर दी है, जिससे कई नेता भड़क गए हैं। राजनीतिक गलियारों में इस फैसले को लेकर चर्चाओं का तूफ़ान मचा हुआ है। पूर्व विधायकों का कहना है कि ये कदम उनकी प्रतिष्ठा और सुविधाओं पर सीधे प्रभाव डालता है। अब देखना यह है कि सरकार और नेताओं के बीच इस मुद्दे पर क्या तल्खी सामने आती है और आगे का रुख क्या रहेगा, लेकिन आप खबर को वस्तार से समझिए हुआ क्या है। दरअसल दोस्तो अपने उत्तराखंड में पूर्व विधायकों को दी जाने वाली सुविधाओं में हाल ही में की गई कटौती ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। ये मामला तब और सुर्खियों में आया जब पूर्व विधायक संगठन सचिवालय में मुख्य सचिव आनंद वर्धन से मुलाकात कर अपनी नाराजगी जताई।
बैठक में पूर्व विधायकों ने कहा कि सरकार ने बिना किसी ठोस कारण के उनकी सुविधाओं में कटौती की है, जो न केवल असंवेदनशील है बल्कि वर्षों तक जनता की सेवा कर चुके प्रतिनिधियों के प्रति अन्यायपूर्ण भी है। अब सुविधाओं की बात है और उसमें अगर तनिक भी कटौती होगी तो गुस्सा नाराजगी जायज लगती है और अगर वो भी नेताओं के मामले में तो बात और बड़ी हो जाती है बल। वैसे दोस्तो जनता के हक में कितना भी बड़ा डाका क्यों न पड़ जाए। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता खास कर अपने नेताजी लोगों को लेकिन यहां बात पूर्व विधायकों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती पर हंगामा हो गया है। वैसे दोस्तो यहां खास बात ये है कि इस मामले में कांग्रेस और बीजेपी के विधायक हम एक हैं का नारा बुलंद कर रहे हैं बल। बीजेपी-कांग्रेस दोनों दलों से जुड़े पूर्व विधायक ने नाराजगी जाहिर की है। दोस्तो इसका मतलब ये है कि यॉे मुद्दा सिर्फ किसी एक दल का नहीं, बल्कि सभी पूर्व विधायकों के लिए संवेदनशील है। पूर्व विधायक संगठन ने सरकार से अनुरोध किया कि इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाए और उन्हें पहले जैसी सुविधाएं फिर से प्रदान की जाएँ। अब आपको बताने की कोशिश करता हूं कि कौन-कौन सी सुविधाएं प्रभावित हुईं हैं सरकार के इस कटौती वाले फैसले से जरा गौर कीजिएगा। दोस्तो पूर्व विधायकों ने की माने तो अब तक उन्हें यात्रा भत्ता, महंगाई भत्ता, और आवासीय सुविधाओं जैसी कई रियायतें दी जाती थीं। इसके अलावा, सरकारी अतिथि गृहों में प्राथमिकता, दिल्ली स्थित उत्तराखंड निवास में ठहरने की सुविधा और अन्य सुविधाएं पहले निश्चित दरों पर उपलब्ध थीं। लेकिन हालिया आदेश के अनुसार, अब दोस्तो पूर्व विधायकों को अतिथि गृह में सूची से हटा दिया गया है और दिल्ली निवास में ठहरने के लिए अब उन्हें 1500 रुपये की बजाय 3500 रुपये खर्च करने होंगे।
वहीं दोस्तो बीजेपी के पूर्व विधायक केदार सिंह रावत कहते हैं कि पूर्व विधायक और सांसदों को सरकारी अतिथि गृहों में प्राथमिकता दी जाती थी, जिससे यात्रा और आवास की समस्या आसानी से हल हो जाती थी। लेकिन नए आदेश ने इस व्यवस्था को बदल दिया है। ये उन नेताओं के प्रति असम्मान का संदेश देता है जिन्होंने दशकों तक जनता की सेवा की है। इतना भर नहीं है पूर्व विधायक संगठन ने साफ किया कि वे सुविधाओं के दुरुपयोग के पक्ष में नहीं हैं। उनका उद्देश्य केवल ये है कि जो सुविधाएं पूर्व में दिए जाती रही हैं, उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना या एकतरफा तरीके से सीमित न किया जाए। उन्होंने कहा कि इस तरह की कटौती से न केवल नेताओं में नाराजगी पैदा होगी, बल्कि यह राज्य प्रशासन और राजनीतिक स्थायित्व के लिए भी गलत संकेत देगा.. वहीं कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हीरा सिंह बिष्ट ने कहते हैं कि पूर्व विधायकों को जो सम्मान और सुविधाएं मिलती थीं, उन्हें जारी रखना चाहिए। यह केवल सुविधा का मामला नहीं, बल्कि परंपरा और सम्मान का भी मामला है। सरकार से हमारी मांग है कि इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाए और पुराने प्रावधान बहाल किए जाएँ। दोस्तो पूर्व विधायक संगठन ने सिर्फ सुविधाओं की ही चिंता नहीं जताई। उन्होंने राज्य में बेरोजगारों, उपनल कर्मचारियों और किसानों की समस्याओं को भी मुख्य सचिव के समक्ष रखा। उनका कहना था कि सरकार को इन वर्गों की समस्याओं पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और ठोस कदम उठाने चाहिए।
दोस्तो राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ये कदम सरकार की ओर से पूर्व विधायकों पर अनुशासन और खर्च नियंत्रण का संकेत हो सकता है, लेकिन इसे बिना पूर्व सूचना और परामर्श के लागू करना संवेदनशील मामला बन गया है। पूर्व विधायकों ने साफ कहा है कि यदि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो संगठन इस मुद्दे को राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर उठाने से पीछे नहीं हटेगा, तो दोस्तो एक नई तरह की बहस सरकार के पूर्व विधायकों की सुविधायों की कटौती के बाद छिड़ चुकी है। उत्तराखंड सरकार द्वारा पूर्व विधायकों की सुविधाओं में की गई कटौती ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। पूर्व विधायक संगठन ने सरकार से अपील की है कि वह इस निर्णय पर पुनर्विचार करे और पुराने प्रावधानों को बहाल करे। यह मामला केवल सुविधा का नहीं, बल्कि सम्मान और परंपरा से जुड़ा हुआ है। अब देखना यह है कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और भविष्य में पूर्व विधायकों की सुविधाओं को लेकर क्या कदम उठाए जाते हैं, तो यह था उत्तराखंड में पूर्व विधायकों की सुविधाओं को लेकर चल रहे विवाद का हाल। सरकार ने खर्च को नियंत्रित करने और संसाधनों का बेहतर उपयोग करने के लिए कई तरह के कदम उठाए हैं। कई बार देश के अन्य राज्यों में भी पूर्व विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री इस तरह के फैसले लेते दिखाई देते हैं। लेकिन उत्तराखंड में देखिए, सुविधा में कटौती को लेकर विवाद और हंगामा तुरंत सामने आ गया। अब यह देखने वाली बात होगी कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है और पूर्व विधायकों की नाराजगी का समाधान कैसे करती है।