कानूनी दांव पेंच में फंस गया है बीजेपी का प्रस्तावित भव्य मुख्यालय, हरदा ने अतिक्रमण का आरोप लगा कर की CBI जांच की मांग

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देहरादून: भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड में देहरादून के रिंग रोड स्थित लाडपुर में 12320 स्क्वॉयर मीटर की जमीन पर पार्टी का मुख्यालय बनाने जा रहा है। इस बिल्डिंग में 44 कमरे होंगे, चार हॉल होंगे, जबकि एक डिजिटल लाइब्रेरी होगी। यहां एक साथ 500 लोग बैठ सकते हैं। लेकिन उत्तराखंड में बीजेपी का नया प्रस्तावित प्रदेश मुख्यालय कानूनी दांव पेंच में फंसता नजर आ रहा है। बीजेपी का भव्य मुख्यालय बनाने का सपना टूटता दिख रहा है। दरअसल, देहरादून के अधिवक्ता विकेश नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित दायर की है

अधिवक्ता विकेश नेगी ने याचिका में दावा किया गया है कि रायपुर रिंग रोड पर बीजेपी प्रदेश मुख्यालय के रूप में प्रस्तावित भूमि तकनीकी रूप से सरकार की भूमि में विलय हो चुकी है। यहां अगर उत्तराखंड बीजेपी अपना मुख्यालय बनाती है तो यह खुलेआम सरकारी जमीन पर बीजेपी का अतिक्रमण होगा। अधिवक्ता विकेश नेगी ने कुछ पुराने एक्ट, शासनादेशों और कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए बताया कि साल 1960 में सीलिंग एक्ट आने के बाद साढ़े 12 एकड़ से ज्यादा भूमि रखने पर रोक लग गई थी और साढ़े 12 एकड़ से ज्यादा भूमि धारकों की भूमि को सीलिंग के जद में लिया जाने लगा।

इसी दौरान उन लोगों ने जिनके पास 12.5 एकड़ से ज्यादा भूमि थी तो सीलिंग से बचने के लिए अपनी जमीनों को चाय बागान में परिवर्तित करके जमीनों को बचाने की कोशिश की। वहीं, 10 अक्टूबर 1975 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए यह स्पष्ट किया कि इस तिथि यानी 10 अक्टूबर 1975 के बाद चाय बागान की किसी भी जमीन को अगर बेचा जाता है या उसका लैंड यूज चेंज किया जाता है तो वो सेल डीड शून्य हो जाएगा। अधिवक्ता विकेश नेगी का दावा है कि नियमों के अनुसार चाय बागान की जमीन को बेचे जाने पर सेल डीड स्वत: ही शून्य होकर यह जमीन सरकारी जमीन का हिस्सा बन जाने का प्रावधान है। इस हिसाब से यह अगर बीजेपी इसे अपनी जमीन बताती है तो यह बीजेपी का सरकारी जमीन पर अतिक्रमण होगा।

उत्तराखंड बीजेपी के प्रस्तावित प्रदेश कार्यालय के इस मामले पर कांग्रेस भी लगातार मुखर नजर आ रही है। कांग्रेस लगातार इस मामले को प्रमुखता से उठा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत का कहना है कि उनकी सरकार में जिस तरह से चाय बागान की जमीन को स्मार्ट सिटी के लिए इस्तेमाल किए जाने का प्रस्ताव रखा गया था और बीजेपी के कई नेताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया था, अब सामने आ रहा है कि चाय बागान की जमीनों को लेकर बीजेपी के लोगों की पहले से ही नजरें गड़ी हुई थी। हरीश रावत का कहना है कि इस मामले में अगर सीबीआई जांच की जाए तो वास्तविकता सामने आएगी और बीजेपी का वास्तविक चेहरा सार्वजनिक होगा।