कांग्रेस पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने खुद पर लगे आरोपों को लेकर दिया ये बयान, करी SIT जांच की मांग

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देहरादून: मंदिर समिति के सदस्य आशुतोष डिमरी ने कांग्रेस पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल पर कांग्रेस शासनकाल 2012 से वर्ष 2017 के बीच भारी वित्तीय अनियमितताएं करने के आरोप लगाये हैं। जिसको लेकर गणेश गोदियाल ने प्रेस वार्ता के दौरान बताया कि 2012 के बाद बीकेटीसी अध्यक्ष के पद पर मुझे नामित किया गया। मैने अपने पद पर रहते हुए कही महत्वपूर्ण कार्य किया , जिस काम को कोई करना नही चाह रहा था उसे भी हमने करने का प्रयास किया। बीजेपी को मेरे किए गए काम खटकते रहे है। आशुतोष डिमरी को अगर कोई आपत्ति थी तो विभागीय मंत्री से मिलते धन सिंह रावत को ज्ञापन देने का मतलब क्या है।

मंदिर समिति के सदस्य की तरफ से गणेश गोदियाल पर 10 लाख रुपये का भ्रष्टाचार का आरोप लगा है। जिसके बाद गणेश गोदियाल ने न केवल बिंदुवार सफाई दी, बल्कि कहा कि धन सिंह पर उनकी तरफ से जो करप्शन के आरोप लगाए गए, इसे दबाने के लिए ये आरोप लगाए गए हैं। गणेश गोदियाल ने कहा इस मामले में उन पर लगे आरोपों की एसआईटी जांच कराई जाए। साथ ही धन सिंह रावत पर जो आरोप उन्होंने लगाए हैं उसकी भी एसआईटी जांच हो। गोदियाल ने कहा कि उन्होंने धन सिंह रावत पर जो आरोप लगाए हैं, उसको लेकर वह मुख्यमंत्री से मुलाकात करने वाले हैं। इन मामलों की एसआईटी की जांच की मांग करेंगे। ऐसा नहीं होता है तो वह मुख्यमंत्री के घर के आगे धरने पर बैठेंगे।

पौड़ी में मंदिर बनाने को लेकर लगाए गए आरोप को गणेश गोदियाल ने सिरे से नकार दिया है। बिनसर मंदिर का कुल बजट 4 करोड़ रुपए है जिसमे 3 करोड़ 25 लाख खर्च हुआ है। ये सिर्फ छबि धूमिल करने की बात है जो बीजेपी लगातार करती रहती है। कांग्रेस शासनकाल 2012 से वर्ष 2017 के बीच भारी वित्तीय अनियमितताएं करने के आरोप लगाये हैं। बीकेटीसी के सदस्य ने आरोप लगाए गए हैं कि 2012 से वर्ष 2017 में मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश गोदियाल के कार्यकाल में मंदिर समिति में भारी गड़बड़ियां हुई हैं। सदस्य की शिकायत के आधार पर प्रभारी मंत्री धन सिंह ने मुख्य सचिव और धर्मस्व सचिव को पत्र लिखकर जांच के आदेश दिए। डिमरी ने आरोप लगाते हुए लिखा है कि वर्ष 2015 में मंदिर समिति के पैसों से जनपद टिहरी में एक सड़क बना दी गई। वहीं, 2015 में पोखरी में स्थित एक शिवालय का उनके द्वारा पुनर्निर्माण करवाया गया, जो मंदिर समिति के अधीन ही नहीं था।