शीतकाल के लिए आज बंद हुए पंचकेदार में शामिल विश्व के सबसे ऊंचे तृतीय केदार तुंगनाथ धाम के कपाट, अब यहां होगी पूजा

तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ धाम के कपाट बुधवार को पूर्वाह्न 11 बजे शीतकाल हेतु विधि विधान से बंद हो गये है।

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पंच केदारों में सबसे ऊंचाई वाले भूभाग में विराजमान Tungnath Dham Temple Doors Closed For Winters तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ धाम के कपाट बुधवार को पूर्वाह्न 11 बजे शीतकाल हेतु विधि विधान से बंद हो गये है। कपाट बंद होने की प्रक्रिया के अंतर्गत तुंगनाथ के स्वयंभू लिंग को समाधिस्थ किया गया। प्रात: से मंदिर में दर्शन हुए। प्रात: नौ बजे से कपाट बंद हेतु प्रक्रिया शुरू हूई। इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालुजन मौजूद रहे। तुंगनाथ के कपाट बंद होने के बाद तुंगनाथ भगवान की चल विग्रह डोली मंदिर परिसर में विराजमान हुई। मंदिर की परिक्रमा के पश्चात प्रथम पड़ाव चोपता के लिए प्रस्थान किया गया। जहां पर भगवान तुंगनाथ जी की डोली का भव्‍य स्वागत हुआ। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने भगवान तुंगनाथ के कपाट बंद होने के अवसर पर सभी श्रद्धालुजनों को बधाई दी और कहा कि पहली बार तुंगनाथ में एक लाख पैंतीस हजार से अधिक तीर्थयात्रियों ने दर्शन किए हैं।

बुधवार को देव डोली रात्रि विश्राम चोपता में करेगी। 2 नवंबर को देव डोली बड़तोली होते हुए भनकुन पहुंचेगी और रात्रि प्रवास भनकुन में रहेगा। 3 नवंबर को प्रात: देवडोली भनकुन से अपने शीतकालीन गद्दीस्थल श्री मार्कंडेय मंदिर मक्कूमठ पहुंच जायेगी‌। पूजा अर्चना के पश्चात डोली मंदिर गर्भगृह में विराजमान हो जायेगी। 4 नवंबर से भगवान तुंगनाथ की शीतकालीन पूजा मक्कूमठ में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ शुरू होगी। जिसके बाद शीतकाल में श्रद्धालु यहीं भगवान तुंगनाथ के दर्शन कर सकेंगे। मान्यता है कि इस मंदिर को पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद बनवाया था. युद्घ में हुए प्रचंड नरसंहार से नाराज शिवजी को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिरों का निर्माण करवाया गया था। यहां भगवान शिव भुजा रूप में विद्यमान हैं। तुंगनाथ मंदिर पंचकेदारों में से सबसे ऊंचाई पर है।