बैंकों के निजीकरण पर बैंक यूनियन्स ने किया कड़ा विरोध, दिल्ली बैठक में उठाए सवाल

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यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स (UFBU), जो अधिकारी-कर्मचारियों की नौ ट्रेड यूनियनों का प्रतिनिधित्व करता है, 4 नवम्बर को दिल्ली विश्वविद्यालय के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में आयोजित डायमंड जुबली वैलेडिक्टरी लेक्चर के दौरान माननीय वित्त मंत्री द्वारा दिए गए वक्तव्य पर गंभीर चिंता और कड़ा विरोध दर्ज करता है। United Forum of Bank Unions एक छात्र द्वारा निजीकरण से बैंकिंग सेवाओं के केवल विशेष वर्ग तक सीमित होने की आशंका पर प्रतिक्रिया देते हुए, वित्त मंत्री ने इस चिंता को नज़रअंदाज़ किया और निजीकरण को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया। UFBU इस दृष्टिकोण को पूरी तरह अस्वीकार करता है और स्पष्ट करता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारत की वित्तीय समावेशन, सामाजिक न्याय आधारित ऋण व्यवस्था, ग्रामीण बैंकिंग और राष्ट्रीय आर्थिक स्थिरता की रीढ़ रहे हैं।

मुक्ति कार्यक्रम में एक छात्रा द्वारा यह आसन का व्यक्त किए जाने पर की निजीकरण से बैंकिंग सेवाएं केवल चुनिंदा विशेष वर्गों तक सीमित हो सकती है वित्त मंत्री ने इस आशंका को नजर अंदाज करते हुए निजीकरण को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया। फार्म के राष्ट्रीय महासचिव रूपम राय ने एक बयान में कहा कि फॉर्म का स्पष्ट मत निजीकरण राष्ट्रीय एवं सामाजिक हित के विरुद्ध है। यह वित्तीय समावेशित को कमजोर करेगा। यह रोजगार और सार्वजनिक धन की सुरक्षा को खतरे में डालेगा इसका लाभ नागरिकों को नहीं केवल कॉर्पोरेट घरानों को होगा। रॉयल ने फार्म की मांगे दोहराते हुए कहा कि भारत सरकार स्पष्ट घोषणा करें कि कोई भी सार्वजनिक क्षेत्र बैंक निजीकरण के लिए नहीं दिया जाएगा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूंजी तकनीकी एवं पारदर्शी शासन के माध्यम से मजबूत किया जाए। जमा करता हूं कर्मचारी एवं आम नागरिकों के हितों को प्रभावित करने वाले किसी भी निर्णय से पूर्व सार्वजनिक विमर्श एवं संसदीय बहस अनिवार्य की जाए।

निजीकरण की प्रशंसा वास्तविकताओं को नज़रअंदाज़ करती है —

  • निजी बैंक केवल लाभकारी क्षेत्रों में ऋण देते हैं, घाटे वाले क्षेत्रों में शाखाएँ बंद करते हैं, शुल्क बढ़ाते हैं और कमजोर वर्गों की उपेक्षा करते हैं।
  • ग्रामीण एवं अर्ध-शहरी भारत वित्तीय बहिष्कार का शिकार होगा — जबकि जन धन, DBT, पेंशन, मनरेगा भुगतान मुख्यतः PSB करते हैं।
  • निजीकरण से नौकरी में कटौती, ठेका-प्रथा, आरक्षण में कमी, यूनियन अधिकारों पर हमला होता है।
  • YES Bank, Global Trust Bank, Lakshmi Vilas Bank जैसे निजी बैंकों के ढहने पर सार्वजनिक बैंकों ने ही जमा-पूंजी और जनता को बचाया। भविष्य में जनता को कौन बचाएगा?
  • सार्वजनिक संपत्तियों को निजी उद्योग समूहों को सौंपने का खतरा — सार्वजनिक धन का निजी लाभ में रूपांतरण।