अयोध्या के फैजाबाद संसदीय सीट और बद्रीनाथ में विधानसभा उपचुनाव मिली भारतीय जनता पार्टी (BJP) करारी हार मिली थी। Kedarnath Byelection इस हार के बाद अब सबकी नजर हिंदुत्व के गढ़ केदारनाथ पर टिकी हुई है। बीजेपी के लिए केदारनाथ उपचुनाव में जीत हासिल करना प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। तो वहीं, कांग्रेस इस चुनाव को जीतकर अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन फिर से वापस पाना चाहती है। भाजपा ने केदारनाथ सीट जीतने के लिए पूरा जोर लगा दिया है तो वहीं कांग्रेस भी एकजुट होकर केदारघाटी में भाजपा भगाओ के नारे के साथ जीत का दम भर रही है। माना जा रहा है कि 23 नवंबर को केदारनाथ उपचुनाव के परिणाम प्रदेश की सियासत का भविष्य भी तय करेगी। आइए जानने की कोशिश करते हैं कि केदारनाथ सीट पर उपचुनाव की जीत और हार को तय करने के लिए क्या प्रमुख फैक्टर हैं।
दिल्ली में केदारनाथ मंदिर निर्माण का काम भले ही स्थगित कर दिया गया हो लेकिन उपचुनाव में ये मुद्दा सबसे ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है। कांग्रेस इस मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहती है। कांग्रेस इस मुद्दे के सहारे अपनी नैया पार लगाना चाहती है। इस मुद्दे का असर भाजपा को परेशान भी कर रहा है। यही वजह है कि सीएम पुष्कर सिंह धामी को बाबा केदार की सौगंध खाकर इस बहस को खत्म करने की कोशिश की गई। कांग्रेस ने इस चुनाव में भी अंकिता भंडारी और महिला सुरक्षा को अहम मुद्दा बनाया हुआ है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा एक बेटी को न्याय नहीं दिला पाई है साथ ही महिला सुरक्षा पर सरकार को घेर रही है। हालांकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे का ज्यादा असर वोट पर नजर नहीं आया। लेकिन क्या केदारनाथ उपचुनाव में अंकिता का मुद्दा असर करेगा, ये भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
भाजपा और कांग्रेस उपचुनाव में केदारघाटी में आपदा और विकास को चुनावी मुद्दा बनाए हुए है। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार ने केदारघाटी में आपदा के समय में सही मेनेजमेंट के साथ काम नहीं किया और यात्रा व्यवस्था पूरी तरह से चौपट रही तो भाजपा और सीएम धामी केदारघाटी में आई आपदा के दौरान रेस्क्यू कार्य और विकास की योजनाओं को गिना रही है। भाजपा ने केदारनाथ उपचुनाव में सरकार के मंत्री,सांसद, संगठन के बड़े चेहरे और टिकट के दावेदार समेत सारी फौज केदारघाटी में उतारी हुई है। भाजपा ने धामी सरकार के मंत्रियों को चुनाव के ऐलान से पहले ही केदारघाटी में तैनात कर दिया था। इसके साथ ही संगठन के बड़े चेहरे और रणनीतिकारों को भेज दिया था। जिससे उपचुनाव में किसी तरह की कोई कमी न रह जाए। चुनाव के ऐलान के बाद सांसद भी पहुंचे और अब टिकट न मिलने से नाराज बताए जा रहे चेहरों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है।