चारधामों में से एक बद्रीनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो गये हैं। कपाट बंद होने के दिन 10 हजार से भी ज्यादा श्रद्धालुओं ने भगवान बद्री विशाल के दर्शन किये और सुख एवं समृद्धि की कामना की। Badrinath Temple Door Closed बदरी विशाल के कपाट रात 9 बजकर 7 मिनट पर बंद कर दिया गया। इस मौके पर हजारों लोग खास पल के साक्षी बने। जबकि, बदरीनाथ मंदिर को करीब 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया। मंदिर के कपाट बंद होने के दौरान भक्तों ने ‘बेडू पाको बारमासा’ गीत भी गाया। श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद 18 नवंबर को देव डोलियां योग बदरी पांडुकेश्वर और जोशीमठ के लिए प्रस्थान करेंगी। यह यात्रा बद्रीनाथ धाम के शीतकालीन पूजाओं की शुरुआत का प्रतीक है।
इसके बाद 19 नवंबर से योग बदरी पांडुकेश्वर तथा श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ में शीतकालीन पूजाएं शुरू हो जाएंगी। हर साल सर्दी के मौसम में भारी बर्फबारी की संभावना होती है और मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद भगवान बद्री विशाल की पूजा और दर्शन पांडुकेश्वर और जोशीमठ स्थित शीतकालीन तीर्थ स्थानों पर होती है। बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने की परंपरा के अनुसार रावल अमरनाथ नंबूदरी स्त्री भेष धारण कर माता लक्ष्मी को श्री बदरीनाथ मंदिर के गर्भगृह में विराजमान करते हैं। पुजारी स्त्री भेष इसलिए धारण करते हैं कि लक्ष्मी जी की सखी के रुप में उन्हें गर्भगृह तक लाया जा सके। मान्यता है कि शीतकाल में बदरीनाथ धाम में देवताओं की ओर से मुख्य अर्चक नारद जी होते हैं। बदरीनाथ जी के कपाट बंद होने की पंच पूजाएं रावल अमरनाथ नंबूदरी, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, वेदपाठी रविंद्र भट्ट द्वारा संपन्न कराई गईं।