धंसता जोशीमठ: जोशीमठ में क्षमता से ज्यादा भार, 3 फीट से अधिक तक भूधंसाव.. अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

चमोली जिले के जोशीमठ में भूधंसाव पर जो रिपोर्ट सामने आई है, वह चौंकाने वाली है। रिपोर्ट में कुछ जगहों के 3 फीट से अधिक की गहराई तक धंसने और 1.4 मीटर तक खिसकने की बात का भी जिक्र है। वही, एनटीपीसी को अपनी रिपोर्ट में क्लीन मिली है।

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जोशीमठ में भूधंसाव पर वैज्ञानिकों की रिपोर्ट (Scientists’ report on landslide in Joshimath) आ गई है और उसे सार्वजनिक भी कर दिया गया है जिसमे चौकाने वाले खुलासे हुए है। 8 वैज्ञानिक संस्थानों की यह रिपोर्ट सैकड़ों वैज्ञानिकों ने कई महीनों की मेहनत के बाद करीब 718 पन्नों में तैयार की है। रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ में दरारें (cracks in joshimath) 100 फीट से अधिक गहराई तक फैली हुई हैं। रिपोर्ट में कुछ जगहों के 3 फीट से अधिक की गहराई तक धंसने और 1.4 मीटर तक खिसकने की बात का भी जिक्र है। वैज्ञानिक संस्थानों की रिपोर्ट में कहा गया है कि, जोशीमठ पर नए भारी निर्माण ना किए जाएं। रिपोर्ट में पूरे जोशीमठ के धंसने की आशंका को नगण्य करार दिया गया है। तमाम एजेसियों की जांच के बाद जीएसआई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ने एनटीपीसी को अपनी रिपोर्ट में क्लीन चिट दी है। इसका मतलब जोशीमठ में भू-धंसाव के पीछे एनटीपीसी की परियोजना वजह नहीं है।

रिपोर्ट के अनुसार, मोरेन क्षेत्र (moraine area) (ग्लेशियर की ओर से लाई गई मिट्टी) में बसे जोशीमठ की जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने की बात सामने आई है, जिसके कारण वहां भू-धंसाव हो रहा है। जोशीमठ नगर पालिका क्षेत्र में कुल नौ वार्ड प्राभावित हैं। इनमें गांधीनगर वार्ड में 156 भवनों में दरारें हैं। इनके अलावा पालिका मारवाड़ी में 53, लोवर बाजार में 38, सिंघधार में 156, मोहनबाग में 131, अपर बाजार में 40, सुनील में 78, परसारी में 55 और रविग्राम वार्ड में 161 भवनों में दरारें हैं। इस तरह से कुल 868 भवनों में दरारें हैं। इनमें से 181 भवन असुरक्षित क्षेत्र में हैं। एनडीआरआई व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (NDRI and Wadia Himalayan Geology Institute) की भांति इस बात का उल्लेख किया है कि जोशीमठ का भूभाग पुरातन भूस्खलन के ढेर पर बसा है। इसमें ढीले मलबे के साथ विशाल बोल्डर भी हैं। ये बोल्डर ढालदार क्षेत्र में ढीले मलबे में धंसे हैं। दूसरी तरफ इसी भूभाग पर समय के साथ शहरीकरण का अनियंत्रित भार भी पड़ा है, जिसके चलते भूधंसाव की जो प्रवृत्ति कई दशक से गतिमान थी, उसमें आंशिक तेजी आ गई है।